युग परिवर्तन के प्राचीन इतिहास के साथ एक महायुद्ध जुड़ा हुआ है। इस बार भी उसकी पुनरावृत्ति होगी, पर यह पूर्वकालिक शस्त्र युद्धों से भिन्न होगा। यह क्षेत्रीय नहीं, व्यापक होगा। इसमें विचारों के अस्त्र प्रयुक्त होंगे और घर-घर में इसका मोर्चा खुला रहेगा। भाई-भाई से, मित्र-मित्र से और स्वजन-स्वजन से लड़ेगा। अपनी दुर्बलताओं से हर किसी को स्वयं लड़ना पड़ेगा।
जहाँ कहीं अखण्ड ज्योति, युग निर्माण पत्रिकाएँ पहुँचती हैं, वहाँ यह कर्त्तव्य भी साथ ही जा पहुँचता है कि इन्हें अखबार, पुस्तक न समझा जाय, वरन् प्रकाश पुञ्ज मानकर इससे दूसरों को भी लाभान्वित होने दिया जाय। सज्जन लोग अपने कुएँ से दूसरों की प्यास बुझाते, अपने द्वार की बत्ती से दूसरों को रास्ता पाते देखते हैं तो प्रसन्नता अनुभव करते हैं। यह प्रसन्नता हममें से हर एक को अनुभव करनी चाहिए।
विज्ञान और धन की वृद्धि ने संसार को जितना सुख पहुँचाया है, उससे अधिक विपत्ति उत्पन्न की है। आर्थिक प्रगति यदि रावण के बराबर भी हर आदमी कर ले तो भी इस संसार में रत्ती भर भी खुशहाली नहीं बढ़ेगी। उस बढ़ी हुई सम्पदा के साथ जुड़ी दुर्बुद्धि ६० लाख यादवों की परस्पर लड़ कटकर मर जाने का ही पथ प्रशस्त करेगी।
जहाँ कहीं अखण्ड ज्योति, युग निर्माण पत्रिकाएँ पहुँचती हैं, वहाँ यह कर्त्तव्य भी साथ ही जा पहुँचता है कि इन्हें अखबार, पुस्तक न समझा जाय, वरन् प्रकाश पुञ्ज मानकर इससे दूसरों को भी लाभान्वित होने दिया जाय। सज्जन लोग अपने कुएँ से दूसरों की प्यास बुझाते, अपने द्वार की बत्ती से दूसरों को रास्ता पाते देखते हैं तो प्रसन्नता अनुभव करते हैं। यह प्रसन्नता हममें से हर एक को अनुभव करनी चाहिए।
विज्ञान और धन की वृद्धि ने संसार को जितना सुख पहुँचाया है, उससे अधिक विपत्ति उत्पन्न की है। आर्थिक प्रगति यदि रावण के बराबर भी हर आदमी कर ले तो भी इस संसार में रत्ती भर भी खुशहाली नहीं बढ़ेगी। उस बढ़ी हुई सम्पदा के साथ जुड़ी दुर्बुद्धि ६० लाख यादवों की परस्पर लड़ कटकर मर जाने का ही पथ प्रशस्त करेगी।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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