गुरुवार, 31 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 31 Aug 2023

यदि नारी की क्षमता को जगाया जाय, उसे योग्य बनाने की ओर ध्यान दिया जाय तो न केवल हमारे परिवार में स्वर्गीय वातावरण की सृष्टि हो सकेगी, वरन् समाज के लिए भी कई दृष्टियों से लाभकर स्थिति बन सकती है। गृह-व्यवस्था को सँभालने के बाद उसके पास जो समय बचता है वह बाहरी प्रयोजनों में ही तो लगेगा और जाग्रत् शक्ति क्षमतावान् नारी अपनी योग्यता से समाज के लिए सुखद परिस्थितियाँ तथा प्रगतिशील वातावरण बना सकेगी।

परिवार निर्माण का परोक्ष अर्थ है-नारी जागरण। अर्द्ध मूर्छि, पददलित, आलस्य, प्रमाद और पिछड़ेपन से ग्रस्त नारी अपने लिए और परिवार के लिए भार ही रहती है। रोटी, कपड़ा, पाती और बदले में रसोईदारिन, चौकीदारिन, जननी, धात्री और चलती-फिरती गुड़िया की हलकी भारी भूमिका निभाती है। इस पिछड़ेपन के रहते वह परिवार निर्माण जैसे असाधारीण कार्य को संपन्न कैसे कर सकेगी। इसके लिए सूझबूझ, संतुलन, अनरवत प्रयास की आवश्यकता पड़ती है। योजना का स्वरूप, परिमाण एवं अवरोधों का समाधान भी उसके सामने आना चाहिए।

महिलाएँ शिक्षा प्राप्त करें, ज्ञानार्जन करें, विचारवान् बनें तभी तो उनसे यह आशा की जा सकती है कि वे परिवार में और समाज समें अपने उत्तरदायित्वों को भलीभाँति निबाह सकेंगी।  यदि इन आवश्यक तत्त्वों की ओर से ध्यान हटाकर आभूषण प्रियता की संकीर्ण विचारधारा को ही अपनाया जाता रहा तो कर्त्तव्य पालन में व्यवधान आना स्वाभाविक है। नारी के विकास में बाधा स्वरूप इस कुरीति के प्रति अब अरुचि उत्पन्न होनी चाहिए और विचारशील महिलाओं को इस दिशा में कुछ करने के लिए तत्पर होना चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

बुधवार, 30 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 30 Aug 2023

जिन लोगों को सामाजिक नव निर्माण की इच्छा है, उन्हें अपने परिवार में सादगी को सर्वप्रथम प्रतिष्ठित करना चाहिए। परिवार के सदस्यों को डण्डे और डाँट के बल पर नहीं, अपितु तथ्यों और सच्चाइयों से अवगत कराकर देश, समाज की वास्तविकताओं से परिचित कराकर सादगी भरे जीवनक्रम को अपनाने की प्रेरणा देनी चाहिए। प्रबुद्ध जनों का यही सर्वोपरि दायित्व है और ऐसा करना स्वयं अपना उदाहरण उपस्थित करके ही संभव है, मात्र उपदेश द्वारा नहीं।

जातीय पतन के दौर में उच्च आदर्शों को विकृत रूप दे दिया गया। समर्पण की व्याख्या स्वार्थी मनुष्यों ने इस प्रकार की कि भारतीय नारी के इस उच्च आदर्श को चरणदासी बनने के रूप में ढाल दिया, पर अब ऐसी धूर्ततापूर्ण चालबाजियों और शाब्दिक मायाजाल का युग नहीं रहा। अतः अब यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि पुरुष के प्रति नारी का समर्पण अंधा और अविवेकपूर्ण नहीं होना चाहिए। प्रत्येक पुरुष न तो ईश्वर है और न देवदूत। श्रेष्ठता के लिए उसे प्रयास करना होगा। समर्पण कोई विवेशता नहीं, व्यक्तित्व की उत्कृष्टता है। अतः वह पुरुष के लिए भी साध्य और इष्ट होनी चाहिए।

मांसलता के उभार-अश्लील अभि-व्यंजनाएँ और सम्मोहक विन्यास में ही नारी जीवन की कृतकृत्यता बताने वाला एक वातावरण मानव द्रोही बधिकों द्वारा तैयार किया जा रहा है। प्रत्यक्ष नारी निन्दा से उसे शिक्षा की अपात्र तथा अवगुणों की खान बताने से जब दानवी भोग-लालसा अधिक समय तक तृप्त होने की आशा नहीं रही तो पशुता की उसी पतित प्रवृत्ति ने नये पैतरे बदल लिए हैं। नारी देह के भोग्या स्वरूप की प्रतिष्ठा को ही नारी जीवन की सार्थकता के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। जाग्रत् नारी को इस नये षड्यंत्र का निरीह शिकार बनना अस्वीकार करना होगा।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 परिवारिक संतुलन

कुटुम्ब में सब लोग एक प्रकृति के नहीं होते। जन्म-जन्मान्तरों से संग्रहीत उनके अपने स्वभाव-संस्कार होते हैं इसलिए अपनी रूचि के ढॉंचे में सबको मिट्टी के खिलौने की तरह नहीं ढाला जा सकता, अस्तु, बुद्धिमान लोग उस व्यक्ति को स्वीकार करते हैं जिससे अधिकाधिक सामंजस्य बना रहे। स्नेह-सदभाव और सहयोग की सौम्य-श्रृंखला में वे परस्पर बॅंधे-जकड़े रहें। अवांछनीय दोष-दुर्गुणों के निराकरण और सत्प्रवृत्तियों के सम्वर्धन का उत्तरदायित्व चतुर लोग इस प्रकार निबाहते हैं कि साँप मरे न लाठी टूटे। सुधार की उग्रता इतनी न हो कि जिससे स्नेह-सद्भाव का धागा टूटने और दाने बिखरने की ही स्थिति बन जाय। उतनी उपेक्षा भी न बरती जाय कि हर कोई अनियन्त्रित होकर मनमानी करने लगे और परिवार-संस्था का उद्देश्य ही नष्ट हो जाय।

कुटुम्ब के छोटे समूह को स्नेहसिक्त, संतुलित, प्रगतिशील, और सुसंस्कारी बनाने के लिए मध्यमार्गी किन्तु आदर्शवादी विधि-व्यवस्था अपनानी पड़ती है। जो इस सन्तुलन का अभ्यस्त है उसे परिवार सुख की कमी नहीं रहती। भले ही सम्बद्ध व्यक्ति उतने सुसंस्कारी एवं सुविकसित नहीं भी हों।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (३.३५)


मंगलवार, 29 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 29 Aug 2023

स्त्रियों को स्वतंत्रता देने का अर्थ यह नहीं है कि उनको कुछ भी करते रहने की छूट मिले और उनके उचित-अनुचित कार्यों की कोई आलोचना या टिप्पणी न की जाय। यह व्यवस्था-मर्यादा तो पुरुष के लिए भी लागू है। कोई व्यक्ति यदि अनुचित कार्य करता है तो आलोचना और निन्दा-भर्त्सना उसकी भी होती है। स्त्रियों को स्वतंत्रता देने का अर्थ यह है कि उन्हें भी अपनी क्षमताओं के विकास की छूट  दी जाय तथा उन पर दासी-बाँदी जैसे बंधन न कसे जायँ।

आत्म विकास और पारिवारिक जीवन की सुख-शान्ति के लिए स्त्री की ही तरह पुरुष में चारित्रिक दृढ़ता की आवश्यकता है। प्रेम तथी स्थायी रह सकता है, जब दोनों का अंतःकरण शुद्ध हो और कोई भी नाटक न करता हो। घर में पत्नी से निष्ठा की आकांक्षा रखना और बाहर स्वेच्छाचार के फेर में रहना प्रेम को वास्तविक नहीं रहने दे सकता। जहाँ ऐसी दोहरी मानसिकता और बनावटीपन है, वहाँ आत्मीयता का सूत्र निश्चय ही खण्डित होता रहेगा।

वस्तुतः पति-पत्नी दो इकाई मिलकर एक सम्मिलित व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं और जीवन यात्रा का उत्तरदायित्व इस सामूहिक व्यक्तित्व पर ही निर्भर करता है। दोनों का एक-दूसरे के काम में सहयोग आवश्यक अनिवार्य है। पति-पत्नी के कार्यों का विभाजन, उसकी सीमा रेखा कभी निश्चित नहीं की जा सकती। दाम्पत्य जीवन का सार इसी में है कि एक दूसरे के कामों में मदद करें, योग दें, चाहे वह काम घर के अन्दर का हो या बाहर का।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

सोमवार, 28 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 28 Aug 2023

🔷 आज भड़कीला शृंगार फैशन कहा जाता है और उसे कला, सुरुचि एवं सभ्यता का चिह्न कहकर पुकारा जाता है। कहा और माना जो कुछ भी जाय वास्तविकता ज्यों की त्यों रहेगी। हमारे उठती उम्र के बच्चे और बच्ची इस पतन पथ पर कदम न बढ़ाएँ इसका ख्याल रखा जाना चाहिए। उत्तेजक शृंगार की जड़ में वासना का विकार स्पष्ट है इससे देखने वालों के मन में विक्षोभ उत्पन्न होता है। इसलिए हम सफाई से रहें, स्वच्छता पसंद करें, सादगी से रहें और सभ्य वेशभूषा धारण करें।

🔶 वर्तमान परिस्थितियों में प्रजनन कर्म में प्रवृत्त होने से पूर्व हर विवेकशील नर-नारी को हजार बार विचार करना चाहिए कि क्या वह सचमुच समुन्नत स्तर की संतान का निर्माण करने की मनःस्थिति और परिस्थिति में है? यदि नहीं, तो बुद्धिमत्ता इसी में है कि अपनी आर्थिक जननी की शारीरिक स्थिति को, बच्चों के भविष्य और देश की प्रगति को बर्बादी से बचाने के लिए संतानोत्पादन पर विराम लगाकर ही रखा जाय।

🔷 आज उस समय की उन मान्यताओं का समर्थन नहीं किया जा सकता जिनमें संतान वालों को सौभाग्यवान और संतानरहित को अभागी कहा जाता था। आज तो ठीक उलटी परिभाषा करनी पड़ेगी। जो जितने अधिक बच्चे उत्पन्न् करता है, वह संसार में उतनी ही अधिक कठिनाई उत्पन्न करता है और समाज का उसी अनुपात से भार बढ़ाता है, जबकि करोड़ों लोगों को आधे पेट सोना पड़ता है, तब नई आबादी बढ़ाना उन विभूतियों के ग्रास छीनने वाली नई भीड़ खड़ी कर देना है। आज के स्थित में संतानोत्पादन को दूसरे शब्दों में समाज द्रोह का पाप कहा जाय तो तनिक भी अत्युक्ति नहीं होगी।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 धैर्य

मनु भगवान ने धर्म के दस लक्षणों का वर्णन करते हुए धृति (धैर्य) को पहला स्थान दिया है। वास्तव में धैर्य का स्थान जीवन में इतना ही ऊँचा है कि उसे प्रारम्भिक सद्गुण माना जाए। हर एक कार्य कुछ समय उपरान्त फल देता है, हथेली पर सरसों जमते नहीं देखी जाती, किसान खेत बोता है और फसल की प्रतीक्षा करता रहता है। यदि हम अधीर होकर बोये हुए दानों का फल उसी दिन लेना चाहे तो उसे निराश ही होना पड़ेगा।

लोग किसी कार्य को उत्साहपूर्वक आरम्भ कर हैं किन्तु फल की शीघ्रता के लिए इतने उतावले होते हैं कि थोड़े समय तक प्रतीक्षा करना या धैर्य धारण करना उन्हें सहन नहीं होता, फलस्वरूप निराश होकर वे उस काम को छोड़ देते हैं और दूसरा काम आरम्भ करते हैं, फिर वह दूसरा काम छोड़ना पड़ता है, इसी प्रकार अनेकों अधूरे कार्य छोड़ते जाते हैं, सफलता किसी में भी प्राप्त नहीं होती। असफलताओं की एक लम्बी सूची अपने साथ लिये फिरते हैं, अयोग्य और मूर्ख बनते हैं तथा लोक हँसाई कराते हैं। प्रतिभा, योग्यता, कार्यशीलता, बुद्धिमत्ता सभी कुछ उनमें होती है पर अधीरता और उतावलेपन का एक ही दोष उन सारे गुणों पर पानी फेर देता है।

धर्म का आरम्भिक लक्षण धैर्य है। हमें चाहिए कि किसी कार्य को खूब आगा-पीछा सोच-समझने के बाद आरम्भ करें किन्तु जब आरम्भ कर दें तो दृढ़ता और धैर्य के साथ उसे पूरा करने में लगे रहें। विषम कठिनाइयाँ, असफलताएं, हानियाँ प्रायः हर एक अच्छे कार्य के आरम्भ में आती देखी गई हैं पर यह बात भी निश्चय है कि कोई व्यक्ति शान्त चित्त से उस मार्ग पर डटा रहे तो एक दिन पथ के वे काँटे फूल बन जाते हैं और सफलता प्राप्त होकर रहती है।

📖 अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1943 पृष्ठ 9

रविवार, 27 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 27 Aug 2023

आज दहेज का असुर भाषण-लेखों और प्रस्तावों की मार खाकर भी दहेज का असुर मरता नहीं। रक्तबीज की तरह वह चोट खाकर और भी अधिक विकराल बनता चला जा रहा है। इसका अंत ऐसे होगा कि युग निर्माण योजना के सदस्य बच्चे यह प्रतिज्ञा करेंगे कि वे विचारशील साथी से ही विवह करेंगे। दहेज और विवाहोन्माद में होने वाले भारी अपव्यय को हटाकर बिना खर्च की विधि से विवाह करेंगे। यदि अभिभावक इस निश्चय को मान्यता न देंगे तो वे आजीवन कुमार या कुमारी ही रहकर पवित्र जीवन व्यतीत करेंगे।

हम गायत्री उपासक भगवान् की सर्वश्रेष्ठ सजीव प्रतिमा नारी के रूप में ही मानते हैं। नारी में भगवान् की अनन्त करुणा, पवित्रता और सदाशयता का दर्शन करना हमारी भक्ति-भावना का दार्शनिक आधार है। उपासना में ही नहीं, व्यावहारिक जीवन में भी हमारा दृष्टिकाण यही रहना चाहिए। नारी मात्र को हम पवित्र दृष्टि से देखें, वासना की दृष्टि से न उसे सोचें, न उसे देखें और न उसे छुएँ।

नारी को वासना के उद्देश्य से सोचना या देखना उसकी महानता का वैसा ही तिरस्कार करना है जैसे किसी देव मंदिर की प्रतिमा को चुराकर पत्थर को अपनी किसी आवश्यकता को पूर्ण करने के उद्देश्य से देखना। यह दृष्टि जितनी निन्दनीय और घृणित है उतनी ही हानिकारक और विग्रह उत्पन्न करने वाली भी। हमें उस स्थिति को अपने भीतर से और सारे समाज से हटाना होगा और नारी को उस स्वरूप में पुनः प्रतिष्ठित करना होगा। जिस की एक दृष्टि मात्र से मानव प्राणी धन्य होता रहा है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

शनिवार, 26 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 26 Aug 2023

🔶 परमार्थ के लिए स्वार्थ को छोड़ना आवश्यक है। आत्म-कल्याण के लिए भौतिक  श्री-समृद्धि की कामनाओं से मुँह मोड़ना पड़ता है। दोनों हाथ लड्डू मिलने वाली उक्ति उस क्षेत्र में चरितार्थ नहीं हो सकती। उन बाल बुद्धि लोगों से हमें कुछ नहीं कहना जो थोड़ा सा पूजा-पाठ करके विपुल सुख-साधन और स्वर्ग-मुक्ति दोनों ही पाने की कल्पनाएँ करते रहते हैं।

🔷 साधु-ब्राह्मणों का यह एक परम पवित्र कर्त्तव्य है कि इस समय जिस धर्म के आश्रय में वे अपनी आजीविका चलाते हैं और पूजा-सम्मान प्राप्त करते हैं उस धर्म रक्षा के लिए उन्हें कुछ काम भी करना चाहिए-कष्ट भी उठाना चाहिए। आज जबकि धर्म संकट में है, देश की सुरक्षा एवं प्रगति का प्रश्न है तब तो उन्हें उन आदर्शों को परिपुष्ट करने के लिए अपना समय लगाना ही चाहिए। ऐसी विषम परिस्थितियों में भी दक्षिणा बटोरने और पैर पुजाने का ही धंधा करते रहे, कर्त्तव्य की तिलांजलि दिये बैठे रहे तो आगामी पीढ़ियँ उन्हें क्षमा न करेंगी।

🔶 ईश्वर और धर्म की मान्यताएँ केवल इसीलिए है कि इन आस्थाओं को हृदयंगम करने वाला व्यक्ति निजी जीवन में सदाचारी और सामाजिक जीवन में परमार्थी बने। यदि यह दोनों प्रयोजन सिद्ध न होते हों-इन दोनों कसौटियों पर वास्तविकता सिद्ध न होती हो तो यही कहना पड़ेगा कि यह तथाकथित ईश्वर भक्ति और धर्मात्मापन दम्भ मात्र था।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 "विचार कर के देखें"

एक व्यक्ति को रास्ते में यमराज मिल गये वो व्यक्ति उन्हें पहचान नहीं सका। यमराज ने पीने के लिए पानी मांगा उस व्यक्ति ने उन्हें पानी पिलाया। पानी पीने के बाद यमराज ने बताया कि वो उसके प्राण लेने आये हैं लेकिन चूँकि तुमने मेरी प्यास बुझाई है इसलिए मैं तुम्हें अपनी किस्मत बदलने का एक मौका देता हूँ।

यह कहकर यमराज ने उसे एक डायरी देकर कहा तुम्हारे पास 5 मिनट का समय है इसमें तुम जो भी लिखोगे वही होगा लेकिन ध्यान रहे केवल 5 मिनट। उस व्यक्ति ने डायरी खोलकर देखा तो पहले पेज पर लिखा था कि उसके पड़ोसी की लाॅटरी निकलने वाली है और वह करोड़पति बनने वाला है। उसने वहाँ लिख दिया कि पड़ोसी की लाॅटरी ना निकले।

अगले पेज पर लिखा था उसका एक दोस्त चुनाव जीतकर मंत्री बनने वाला है उसने लिख दिया कि वह चुनाव हार जाये। इसी तरह वह पेज पलटता रहा और अंत में उसे अपना पेज दिखाई दिया। जैसे ही उसने कुछ लिखने के लिए अपना पैन उठाया यमराज ने उसके हाथों से डायरी ले ली और कहा वत्स तुम्हारा 5 मिनट का समय पूरा हुआ अब कुछ नहीं हो सकता।

तुमने अपना पूरा समय दूसरों का बुरा करने में निकाल दिया और अपना जीवन खतरे में डाल दिया अतः तुम्हारा अन्त निश्चित है। यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत पछताया लेकिन सुनहरा समय निकल चुका था।

यदि ईश्वर ने आपको कोई शक्ति प्रदान की है तो कभी किसी का बुरा न सोचो न करो। दूसरों का भला करने वाला सदा सुखी रहता है और ईश्वर की कृपा सदा उस पर बनी रहती है।

प्रण लें आज से हम किसी का बुरा नहीं करेंगे।

गुरुवार, 24 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 24 Aug 2023

मनुष्य शरीर में प्रसुप्त देवत्व का जागरण करना ही आज की सबसे बड़ी ईश्वर पूजा है। युगधर्म इसी के लिए प्रबुद्ध आत्माओं का आवाहन कर रहा है। नवयुग निर्माण की आधारशिला यही है। जिस असुरता की दुष्प्रवृत्तियों ने संसार को दुःख दारिद्रय भरा नरक बनाया, जिस अविवेक ने परमात्मा के पुत्र आत्मा को निकृष्टतम कीड़े से गये गुजरे स्तर पर ला पटका, उसका उन्मूलन देवत्व के अभिवर्धन से ही होना है। अंधकार को मिटाने के लिए प्रकाश उत्पन्न करने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं।

देवत्व का जागरण एवं पोषण करने की तैयारी ही वह प्रयत्न है जिसके फलस्वरूप वर्तमान असुर अंधकार का निराकरण होगा। परिपुष्ट देवत्व से वह व्यापक प्रभाव उत्पन्न होगा जिससे प्रभावित होकर लोग पशुता और पिशाच वृत्ति का दुष्परिणाम समझ सकने योग्य विवेक एवं उन दुष्प्रवृत्तियों को त्याग सकने योग्य साहस कर सकें।

आशा करनी चाहिए कि वह दिन हम लोग अपनी इन्हीं आँखों से इसी जीवन में देखेंगे, जबकि अगणित देव प्रवृत्ति के व्यक्ति अपने-अपने स्वार्थों को तिलांजलि देकर विश्व के नवनिर्माण में ऐतिहासिक महापुरुषों की तरह प्रवृत्त होंगे और इन दिनों जिस पशुता एवं पैशाचिक प्रवृत्ति ने लोकमानस पर अपनी काली चादर बिछा रखी है उसे तिरोहित करेंगे। अनाचार का अंत होगा और हर व्यक्ति अपने चारों ओर प्रेम, सौजन्य, सद्भाव, न्याय, उल्लास, सुविधा एवं सज्जनता से भरा सुख-शान्तिपूर्ण वातावरण अनुभव करेगा। उस शुभ दिन को लाने का उत्तरदायित्व देव वर्ग का है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

मंगलवार, 22 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 22 Aug 2023

🔶 जीवन जीने की कला, संसार में दृष्टिगोचर होने वाली कलाओं में सर्वश्रेष्ठ है। जिसको सही रीति से जिन्दगी जीना आ गया उसे अत्यन्त उच्चकोटि का कलाकार कहना चाहिए। वह दूसरों को प्रभावित, आकर्षित करने से लेकर अन्तःकरण को प्रमुदित करने तक के उन समस्त लाभों को कहीं अधिक मात्रा में प्राप्त करता है जो भौतिक विशेषताओं से सम्पन्न कलाकारों में से किसी-किसी को कभी-कभी या कठिनाई से ही उपलब्ध होते हैं।

🔷 बालकों जैसा स्वच्छ हृदय छल, कपट से सर्वथा रिक्त सरल व्यवहार सौम्य सादगी से भरी सरलता-विनम्र सज्जनता-निर्दोष क्रिया-कलाप-मधुरता और ममता से भरे वचन व्यवहार किसी भी व्यक्तित्व को इतना सुकोमल बना देते हैं कि उसका आन्तरिक सौंदर्य देखते-देखते दर्शकों की आंखें ही तृप्त नहीं ऐसे पारिजात पुष्प पर न जाने कितने मधु लोलुप कीट-पतंग मंडराते रहते हैं और उसके पराग से लाभान्वित होकर धन्य बनते रहते हैं।

🔶 संयम की शोभा देखते ही बनती है। इन्द्रिय संयम की महिमा पर जिसे विश्वास है, उसकी आँखों का तेज, वाणी का प्रभाव, चेहरे का ओज, संपर्क में आने वालों को सहज ही प्रभावित करेगा। बुद्धि की प्रखरता और विवेकशील दूरदर्शिता की कमी न रहेगी। वासना और तृष्णा पर नियंत्रण करने वाला व्यक्ति सहज ही इतने साधन और अवसर प्राप्त कर लेता है जिससे महानता के उच्च-शिखर पर चढ़ सकना तनिक भी कष्टकर न रहकर अत्यन्त सरल बन जाय। ऐसे लोग शरीर और मन के दोनों ही क्षेत्रों में समुचित समर्थता से सम्पन्न रहते हैं। न तो वे रुग्ण रहते हैं और न दीन दुर्बल। उन्हें कभी भी कातर स्थिति में नहीं देखा जा सकता है। विपत्तियाँ भी उनके धैर्य और साहस को चुनौती नहीं दे सकतीं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 प्रतिकूल परिस्थिति में विचलित न हों

हमें चाहिए कि हम अपने आप को परिस्थितियों के अनुरूप ढालें और जिस परिस्थिति में हों, उससे असंतोष या घृणा न प्रकट करें। दिन कभी एक से नहीं रहते। हमें चाहिए कि हम दु:ख के विषम पथ पर धैर्य न खो बैठें। प्रत्येक परिस्थिति की अपनी-अपनी हानि होती है और अपना-अपना लाभ। संसार की कोई भी ऐसी परिस्थिति नहीं, जिसका कुछ-न-कुछ लाभ न हो।

हमें लाभ की ओर ही ध्यान देना चाहिए। जिन मजदूरों को मिट्ïटी में कार्य करना पड़ता है, स्वास्थ्य भी तो उन्हीं का बढ़ता है। ज्ञान तो केवल यही है कि हमें प्रतिकूल परिस्थिति में हिम्मत नहीं खो बैठना चाहिए और जब हम देखें कि परिस्थिति में तब्दीली आती ही नहीं, तो हमें उस परिस्थिति से संतोष करना चाहिए। नीच वह नहीं, जिसका कार्य आप नीच बतलाते हैं, बल्कि नीच वह है जो अपने कार्य में, चाहे वह कार्य कितना ही छोटा हो, दिलचस्पी नहीं लेता और केवल काम चलाऊ काम करता है। इस जिंदगी में कभी पक्की सडक़ें आती है और कभी कच्ची।

हमें दोनों प्रकार की सडक़ों को अपनाना है, सहर्ष और एक जैसे उत्साह से। कभी फूलों के बिछौने पर सोना है, तो कभी कंटकों की सेज भी अपनानी है। शांति प्राप्त करने का यही प्रथम साधन है कि हम अपने को प्रतिकूल परिस्थिति में विचलित न होने दें।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

सोमवार, 21 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 21 Aug 2023

असत्य का त्याग करना जीवन में आनन्द और विकास के बीज बोने के समान है। ‘सत्य शिव सुन्दरम्’ सत्य ही शिव है- कल्याणकारी है और वही सुन्दर है। असत्य का आचरण हर प्रकार से अमाँगलिक होता है। मनीषियों ने सत्य को मनुष्य के हृदय में रहने वाला ईश्वर बताया है। सत्य ही वह सार्वकालिक और सार्वदेशिक तथ्य है जो सूर्य के समान हर स्थल पर समान रूप से चमकता है।

एकाकी रोते-कलपते रहने वाला मनुष्य श्मशान में रहने वाले प्रेत-पिशाच की तरह उद्विग्न रहता है। जिसके आँसू पोंछने वाला कोई नहीं-जिसे सहानुभूति और आश्वासन के शब्द सुनने को नहीं मिलते वह अपनी घुटन में आप घुटता है और अपनी जलन में आप जलता है। यह एकाकीपन उस दुख से भी भारी पड़ता है जिसने कसक और कराह की स्थिति उत्पन्न की। दुख कष्टकर अवश्य होते हैं पर वे तब मधुर भी लगते हैं जब इस बहाने मित्रों की सहानुभूति और संवेदना उस दुखिया पर बरसती है।

हमें ऐसे विश्वासी चरित्रनिष्ठ और परिष्कृत दृष्टिकोण के मित्र तलाश करने चाहिए जो स्वयं गिरने से बचे रह सकें हों ओर दूसरों की गिरी स्थिति से उबारने की सामर्थ्य संग्रह कर सके हों। इस प्रकार के साथी केवल उन्हें ही मिलते हैं जिनने स्वयं आगे बढ़ कर समय-समय पर दूसरों के दुख बंटाये हैं जो कष्टों को बंटाने वाली करुणा से सम्पन्न हैं उनके कष्टों को बंटाने वाले सहज ही उत्पन्न होते हैं और विपत्ति का बोझ हलका करने में कन्धा लगाते हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

शनिवार, 19 अगस्त 2023

👉 जिन्दगी जीने की समस्या (अन्तिम भाग)

गौरव की, प्रतिष्ठा की, बड़प्पन की, सम्मान की सब कोई इच्छा करते है। पर कितने लोग हैं, जिनने यह सीखा हो कि अपना आदर्श एवं दृष्टिकोण महान रखने पर ही सच्ची और स्थिर प्रतिष्ठा प्राप्त हो सकती है। जो भी काम करें उसमें अपने व्यक्तित्व की महानता की छाप छोड़ी जाय जिसके परिणाम में हमें सच्चा गौरव प्राप्त हो, इस बात को कौन सोचता है? आज तो लोग फैशन, श्रृंगार, अकड़, शान और शौकत, शेखी, अपव्यय, बहुसंचय, कोठी, मोटर, दावत, पार्टी जैसी बनावटों के आधार पर बड़े बनने की कोशिश कर रहे हैं।

काश, उन्हें कोई यह समझा देता कि यह बाल-क्रीड़ाऐं व्यर्थ हैं। जो भी काम करो उसे आदर्श, स्वच्छ, उत्कृष्ट, पूरा, खरा, तथा शानदार करो। अपनी ईमानदारी और दिलचस्पी को पूरी तरह उसमें जोड़ दो, इस प्रकार किये हुए उत्कृष्ट कार्य ही तुम्हारे गौरव का सच्चा प्रतिष्ठान कर सकने में समर्थ होंगे। अधूरे, अस्त-व्यस्त फूहड़, निकम्मे, गन्दे, नकली, मिलावटी, झूठे और कच्चे काम, किसी भी मनुष्य का सबसे बड़ा तिरस्कार हो सकते है, यह बात वही जानेगा जिसे जीवन विद्या के तथ्यों का पता होगा।

अपनी आदतों का सुधार, स्वभाव का निर्माण, दृष्टिकोण का परिष्कार करना जीवन विद्या का आवश्यक अंग है। ओछी आदतें, कमीने स्वभाव, और संकीर्ण दृष्टिकोण वाला कोई व्यक्ति सभ्य नहीं गिना जा सकता। उसे किसी का सच्चा प्रेम और गहरा विश्वास प्राप्त नहीं हो सकता। कोई बड़ी सफलता उसे कभी न मिल सकेगी। कहते है कि बड़े आदमी सदा चौड़े दिल और ऊँचे दिमाग के होते है।” यहाँ लम्बाई चौड़ाई से मतलब नहीं वरन् दृष्टिकोण की ऊँचाई का ही अभिप्राय है। जिसे जीवन से प्रेम है वह अपने आपको सुधारता है, अपने दृष्टिकोण को परिष्कृत करता है। फलस्वरूप उसके सोचने और काम करने के तरीके ऐसे हो जाते है जिनके आधार पर महानता दिन-दिन समीप आती जाती है।

वचन का पालन, समय की पाबन्दी, नियमित दिनचर्या, शिष्टाचार, आहार विहार की नियमितता, सफाई व्यवस्था आदि कितनी ही बातें ऐसी है जो सामान्य प्रतीत होते हुए भी जीवन की सुव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पाश्चात्य देशों में इन छोटी बातों पर बहुत ध्यान दिया जाता है, फलस्वरूप भौतिक उन्नति के रूप में उन्हें उसका लाभ भी प्रत्यक्ष मिल रहा है। स्वास्थ्य, समृद्धि और ज्ञान की दृष्टि से पाश्चात्य देशों ने जो उन्नति की है उसमें इन छोटी बातों का बड़ा योग है। इन बातों के साथ-साथ यदि आध्यात्मिक सद्गुणों का समन्वय भी हो जाय तो फिर सोना और सुगन्धि वाली कहावत ही चरितार्थ हो जाती है।

ऊपर की पंक्तियों में जीवन विद्या के कुछ पहलुओं की थोड़ी चर्चा की गई है। ऐसे कितने ही कोणों से मिलकर एक सन्तुलित जीवन बनता है। यह सन्तुलित जीवन व्यक्ति को स्वस्थ विकास की ओर ले जाता है। और ऐसे ही सुविकसित व्यक्तियों का समाज किसी राष्ट्र को गौरवशाली बनाता है।

आज चारों ओर अगणित कठिनाइयाँ, परेशानियाँ और उलझने दिखाई पड़ती है उनका कारण एक ही है- अनैतिक, असंस्कृत जीवन। समस्याओं को ऊपर-ऊपर से सुलझाने से काम न चलेगा वरन् भूल कारण का समाधान करना पड़ेगा मनुष्य के जीवन दिव्य देवालयों की तरह पवित्र, ऊँचे और शानदार हों तभी क्लेश और कलह से, शोक और संताप से, अभाव और आपत्ति से छुटकारा मिलेगा। व्यक्ति यदि भगवान के दिव्य वरदान मानव जीवन का समुचित लाभ उठाना चाहता हो तो उसे जिन्दगी जीने की समस्याओं पर विचार करना होगा और सुलझे हुए दृष्टिकोण से अपनी गति विधियों का निर्माण करना होगा।

.... समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति,  जून 1961 पृष्ठ 7
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1961/June/v1.7

शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

👉 जिन्दगी जीने की समस्या (भाग 4)

लोग धन कमाने में लगे है अपनी क्षमता के अनुरूप कमाते और खर्चते भी है। पर यह भूलते रहते है कि अन्य मूल्यवान वस्तुऐं, जो धन से भी अधिक उपयोगी है, उपार्जित की जा रही है या नहीं? स्वास्थ्य का मूल्य क्या धन से कम है? ज्ञान वृद्धि क्या व्यर्थ की चीज है? आमोद प्रमोद का क्या जीवन में कोई स्थान नहीं है? पूजा उपासना क्या निरुपयोगी ही है? स्त्री बच्चों को व्यक्तिगत दिलचस्पी से दूर रखकर क्या उन्हें रोटी कपड़ा देते रहना ही पर्याप्त है? जिस समाज में हम जन्मते और पलते है क्या उसके प्रति हमारे कोई कर्तव्य नहीं है?

इन बातों पर यदि विचार किया जाय तो यही निष्कर्ष निकलेगा कि धन कमाने की तरह यह सब बातें भी उतनी ही आवश्यक है। केवल एक ही काम में सारा समय और मनोयोग खर्च कर देना उचित नहीं वरन् सर्वतोमुखी उत्कर्ष की आवश्यकता है। जिस प्रकार केवल घी खाने से ही स्वास्थ्य नहीं सध सकता, उसके लिए अन्न, शाक, लवण आदि से सम्मिश्रित सन्तुलित भोजन चाहिए इसी प्रकार हमारे उपार्जन भी सर्वतोमुखी-सन्तुलित होने चाहिए। जीवन विद्या का यह पहला पाठ है।

कितने लोग है जिनने यह पाठ पढ़ा है और व्यवहारिक जीवन में उतारा है? जो इस शिक्षा से विमुख रहे वे भले ही धन या जो अभीष्ट है वह एक वस्तु अधिक मात्रा में कमा लें पर इतने मात्र से उन्हें जीवन का सर्वतोमुखी आनन्द कदापि प्राप्त न हो सकेगा।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति,  जून 1961 पृष्ठ 6

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1961/June/v1.6


गुरुवार, 17 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 17 Aug 2023

हम जिन्दगी जीने की कला सीखें। अपने दृष्टिकोण, चिन्तन, व्यवहार को कलात्मक बनायें। व्यवस्था का प्रत्येक क्रिया-कलाप में समावेश करें। सौंदर्यवान अपने प्रत्येक संबद्ध पदार्थ को स्वच्छ बनाये। अपने वचन और व्यवहार जीवन जिया जा सकता है। कलाकारिता का यह अति महत्वपूर्ण क्षेत्र हर किसी के सामने खुला पड़ा है-इस मार्ग पर कदम बढ़ाते हुए हममें से कोई भी सर्वोत्कृष्ट कलाकारिता की उपलब्धि का रसास्वादन कर सकता है।

जो करना है उसके गुण, दोषों पर-भली बुरी सम्भावनाओं पर हजार बार विचार करना चाहिए। उजेले ओर अँधेरे पक्षों की गम्भीरतापूर्वक विवेचना करनी चाहिए। इसमें थोड़ी देर लगती हो तो हर्ज नहीं। आवेशग्रस्त उतावली, मनःस्थिति में बढ़े-चढ़े निर्णय कर डालना और फिर प्रस्तुत कठिनाइयों को देखकर निराश हो बैठना बचकाना तरीका है। इससे अपनी हिम्मत टूटती है और जग हँसाई होती है। एक पक्षीय विचार करने की दुर्बलता ही अक्सर ऐसे कदम उठा देती है जो वर्तमान परिस्थितियोँ में नहीं उठाये जाने चाहिए थे। 

जो करना है उसके गुण, दोषों पर-भली बुरी सम्भावनाओं पर हजार बार विचार करना चाहिए। उजेले ओर अँधेरे पक्षों की गम्भीरतापूर्वक विवेचना करनी चाहिए। इसमें थोड़ी देर लगती हो तो हर्ज नहीं। आवेशग्रस्त उतावली, मनःस्थिति में बढ़े-चढ़े निर्णय कर डालना और फिर प्रस्तुत कठिनाइयों को देखकर निराश हो बैठना बचकाना तरीका है। इससे अपनी हिम्मत टूटती है और जग हँसाई होती है। एक पक्षीय विचार करने की दुर्बलता ही अक्सर ऐसे कदम उठा देती है जो वर्तमान परिस्थितियोँ में नहीं उठाये जाने चाहिए थे। 

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...