गीता एक ऐसे समाज की कल्पना करती है, जिसमें प्रत्येक मानव को स्वतंत्रता और समानता का अधिकार है। मनुष्य और मनुष्य के बीच धर्म, जाति, वर्ण, लिंग और धन की दीवारें नहीं हैं। प्रत्येक मानव अपने स्वभाव के अनुसार अनासक्त और निष्काम होकर मानव जाति की सेवा में लगा रहना अपना कर्त्तव्य समझता है तथा अकर्मण्यता, आलस्य और असुरता को त्याज्य मानता है। उसकी अपनी कामनाएँ नहीं हैं। समाज की प्रगति और संपन्नता ही उसकी प्रगति और संपन्नता है।
परिवार का संतुलन सही रखना हो तो मोह से बचते हुए कर्त्तव्य तक सीमित रहना होगा। परिवार के लोगों के प्रति असाधारण मोह ही उनका स्तर गिराने और अपने कर्त्तव्य च्युत होने का प्रधान कारण होता है। यदि परिजनों की उचित-अनुचित माँगों को, प्रसन्नता-अप्रसन्नता को महत्त्व न दिया जाय और विवेक दृष्टि रखते हुए उनके कल्याण एवं अपने कर्त्तव्य भर की बात सोची जाय तो प्रत्येक परिवार का स्तर ऊँचा रह सकता है और उसमें से नर-रत्नों के उत्पन्न होने का आधार बन सकता है।
आदर्शवादी जीवन जीने का-महानता के प्रगति पथ पर चलने का हर किसी को अवसर मिल सकता है, यदि वासना, तृष्णा पर अंकुश रखा जाय और श्रेष्ठता अभिवर्धन की साध को जीवन्त, ज्योतिर्मय बनाया जाय। यह अति सरल है व कठिन भी। सरल इन अर्थों में कि निर्वाह के साधन सरल हैं, वे महानता के मार्ग पर चलते हुए भी सहज ही उपलब्ध होते रह सकते हैं। कठिन इसलिए कि पशु प्रवृत्तियों से पिण्ड छुड़ाना अति साहस का काम है।
परिवार का संतुलन सही रखना हो तो मोह से बचते हुए कर्त्तव्य तक सीमित रहना होगा। परिवार के लोगों के प्रति असाधारण मोह ही उनका स्तर गिराने और अपने कर्त्तव्य च्युत होने का प्रधान कारण होता है। यदि परिजनों की उचित-अनुचित माँगों को, प्रसन्नता-अप्रसन्नता को महत्त्व न दिया जाय और विवेक दृष्टि रखते हुए उनके कल्याण एवं अपने कर्त्तव्य भर की बात सोची जाय तो प्रत्येक परिवार का स्तर ऊँचा रह सकता है और उसमें से नर-रत्नों के उत्पन्न होने का आधार बन सकता है।
आदर्शवादी जीवन जीने का-महानता के प्रगति पथ पर चलने का हर किसी को अवसर मिल सकता है, यदि वासना, तृष्णा पर अंकुश रखा जाय और श्रेष्ठता अभिवर्धन की साध को जीवन्त, ज्योतिर्मय बनाया जाय। यह अति सरल है व कठिन भी। सरल इन अर्थों में कि निर्वाह के साधन सरल हैं, वे महानता के मार्ग पर चलते हुए भी सहज ही उपलब्ध होते रह सकते हैं। कठिन इसलिए कि पशु प्रवृत्तियों से पिण्ड छुड़ाना अति साहस का काम है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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