अपने सदगुणों को प्रकाश में लाइए
हमारा तात्पर्य यह नहीं कि आप भूलों, त्रुटियों और गलतियों की ओर से ओंखें बंद कर लें और बार-बार उनको दुहराते चलें, आपको चाहिए कि ' भूलों को दूर करने की और पुनरावृत्ति रोकने का भरसक प्रयत्न करें। फिर भी यदि कभी ठोकर खाकर गिर पड़े, प्राचीन बुरे संस्कारों के खिंचाव से परास्त होकर कोई गलती कर बैठें तो उसकी विशेष चिंता न करें। सच्चा पश्चाताप यही है कि दुबारा वैसी गलती न करने का प्रण किया जाए उपवास आदि से आत्मशुद्धि की जाए जिसे हानि पहुँचती है उसकी या उसके समक्ष की क्षति पूर्ति कर दी जाए मन पर जो बुरी छाप पड़ी है अच्छे कार्य की छाप द्वारा हटाया जाए। साबुन से मैला कपडा स्वच्छ किया जाता है, भूलों का परिमार्जन, श्रेष्ठ कार्यों द्वारा करने के लिए खुला द्वार आपके सामने मौजूद है, फिर की अप्रिय स्मृतियों को जगा-जगा कर नित्य दु रू भ्र्राल स्थ्य? व क्या प्रयोजन? यदि सदैव अपने ऊपर दोषारोपण ही करते रहेंगे, अपने को कोसते ही रहेंगे, भर्त्सना, ग्लानि और तिरष्कार में जलते रहेंगे तो अपनी बहुमूल्य योग्यताओं को खो बैठेंगे, अपनी कार्यकारिणी शक्तियों नष्ट कर डालेंगे। अपने को अयोग्य मत मानिए। ऐसा विश्वास मत कीजिए कि आपमें मूर्खता, दुर्भावना, कमजोरी के तत्त्व अधिक हैं।
इस प्रकार की मान्यता को मन में स्थान देना झूँठा,भ्रमपूर्ण गिराने वाला और आत्मघाती है। यह किसी भी प्रकार नहीं माना जा सकता कि मानव शरीर के इतने ऊँचे स्थान पर चढ़ता आ आ पहुँचने वाला जीव अपने में बुराइयाँ अधिक भरे हुए हैं। यदि सचमुच ही वह नीची श्रेणी की योग्यताओं वाला होता तो किसी कीट-पतंग या पक्षी की योनि में समय बिताता होता। उन योनियों को उत्तीर्ण करके मनुष्य योनि में, विचार पूर्ण भूमिका में प्रवेश करने का अर्थ ही यह है कि मानवोचित सद्गुणों का पर्याप्त मात्रा में विकास हो गया है। भले ही आप अन्य सद्गुणी लोगों से कुछ पीछे हों पर इसी कारण अपने को पतित क्यों समझें? एक से एक आगे है, एक से एक पीछे है। इसलिए इस प्रकार तो बडे भारी बुद्धिमान को भी कहा जा सकता है क्योंकि उससें भी अधिक बुद्धिमान भी कोई न कोई निकल ही आवेगा। आप अपने को बुद्धिमान और सद्गुणी मानें इसके लिए एक आधार है कि बहुत से लोग आप से भी कम योग्यता वाले हैं। जब इस दुनियाँ में आप से भी कम अच्छाइयों के मनुष्य हैं तो यह मान्यता सत्य है कि आप अधिक बुद्धिमान हैं,अधिक अच्छे हैं,अधिक धर्मनिष्ठ हैं। इस सत्य को खुले ह्रदय से स्वीकार करके गहरे अंतःस्थल में उतार लीजिये कि आपकी सुयोग्यता बढ़ी हुई है,आप श्रेष्ठ हैं,सक्षम है,उन्नतिशील हैं।
चौरासी लाख बडे-ब,डे मोर्चे फतह कर चुके हैं, अंतिम मोर्चे पर विजयी होने की तैयारी कर रहे हैं, फिर छोटे- छोटे जीवन प्रसंगों का तो कहना ही क्या? छुट-पुट समस्याएँ जो प्रतिदिन स्वभावत: सामने आया ही करती हैं उनको हल कर लेना, उन पर विजय प्राप्त करना भला यह भी कोई बडी बात है? दस-पाँच असफलताओं के कारण खिन्न मत हूजिएं अपने बारे में गिरे हुए विचार मत रखिए असंख्य सफलताएं प्रतिदिन प्राप्त करते हैं, इससे भी अधिक आगे प्राप्त करेंगे। आप विजय की मूर्तिमान प्रतिमा हैं सफलताएँ आपके लिए बनाई गई है। बढ़ना, उन्नति करना और विजय प्राप्त करना-इन तीन क्रियाओं से आपका भूतकाल का इतिहास भरा पड़ा है, यह क्रम आज भी जारी है और आगे भी जारी रहेगा।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आंतरिक उल्लास का विकास पृष्ठ २८
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