रविवार, 19 नवंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 19 Nov 2023

उपासना में इष्ट की अदला-बदली का अर्थ है कि आप उसकी गरिमा को कोई महत्व न देते हुये दैवी शक्तियों के साथ खिलौनों की तरह खेलते हैं। उनका महत्व आपकी रुचि पर निर्भर है। साथ ही इष्ट की अदला-बदली से यह भाव भी प्रकट होता है कि आप किसी एक दैवी विभूति को किसी दूसरी से कम या ज्यादा समझते हैं। उपासना के क्षेत्र में विषमता का यह भाव सबसे अधिक घातक है। इस प्रकार की चेष्टा से मानसिक चाँचल्य की वृद्धि होती है, जिसके कारण न उपासना में मन स्थिर हो पाता है और न उसका कोई फल होता है।

संसार में जितने भी महापुरुष हुये हैं, महापुरुष होने से पहले उनमें से कोई भी यह नहीं जानता था कि उनमें इतनी अपार शक्ति भरी हुई है। अपनी इस शक्ति की पहचान उन्हें तब ही हुई, जब उन्होंने कर्म क्षेत्र में पदार्पण किया। कर्म में प्रवृत्त होते ही मनुष्य के शक्ति कोष खुल जाते हैं। ज्यों-ज्यों मनुष्य कर्म-मार्ग पर बढ़ता जाता है, ज्यों-ज्यों उसकी शक्ति सामर्थ्य के स्तर एक के बाद दूसरे खुलते जाते हैं। कर्म-शक्ति रूपी अग्नि का ईंधन है मनुष्य ज्यों-ज्यों कर्म करता जाता है, उसकी शक्ति प्रज्वलित होती जाती है। कर्म से शक्ति और शक्ति से कर्म का संवर्धन हुआ करता है।

हम जो कुछ जैसा चाहें, वैसा ही हमारे सामने आये, ऐसा सोचना हमारी दम्भपूर्ण मूर्खता तथा स्वार्थपूर्ण भावना के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। परिस्थितियाँ किसी की गुलाम नहीं, सम्भावनाएँ किसी की अनुचरी नहीं। संयोग किसी के हाथ बिके नहीं हैं। और आकस्मिकतायें किसी के पास बन्धक नहीं हैं। फिर भला हमारा यह सोचना, कि हम जिस प्रकार की परिस्थितियाँ चाहें, वैसी ही हमारे सामने आवें, उपहासास्पद मूर्खता के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है?

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 चरित्र निर्माण

सही कहा गया है कि हर आदमी अपने-2 विचारों का पुतला है, पहले विचार उठता है, तब उस पर अमल होता है। बार-बार अमल करने से आदत बनती है और आदतों से आचरण निर्माण होता है।

बाज लोग सच्चरित्रता से यही मतलब निकालते हैं, कि ‘आदमी दूसरे की बहू-बेटियों को अपनी ही माँ-बहिन के समान देखता है, अथवा दूसरे की सम्पत्ति पर उसके मुँह में पानी नहीं आ जाता।’ यह बातें चरित्र में खास गुण होती हैं। मगर केवल इन्हीं दो एक बात से चरित्र नहीं ढलता। दुनिया की सभी अच्छी बातों के (जिनमें अपना, अपने समाज का, अपनी जाति और देश का मंगल हो) संग्रह को चरित्र कहते हैं। चीजों का सही ढंग से रखना, कपड़े कायदे से पहनना, दर्जा बदर्जा अपने छोटे-बड़ों की आवभगत करना, वक्त की पाबन्दी, मान-मर्यादा का हर दम विचार, उठना, बैठना, चलना, फिरना सभी चरित्र निर्माण की सामग्री हैं।

कुछ लोग छिप कर काम करते हैं। छिपकर काम करने से उनमें और भी खराब बान पड़ती है और उसके द्वारा चरित्र दूषित होता है। अगर उन चोरों और डाकुओं से जो अपने पेशे की घोषणा करने में जरा भी नहीं शर्माते पूछा जाए तो ये बतावेंगे, कि उनकी यह कुटेव चुपके-चुपके और छिप कर काम करने से पड़ी।

हर मनुष्य को चाहिए कि वह हर बात को सोचे और उस पर अमल करे, बात भी ऐसी हो जिससे सच्चरित्र निर्माण हो। चरित्र वही है, जिसके द्वारा अच्छे विचारों की और अच्छे काम करने की आदत पड़ जाए।

अखण्ड ज्योति मार्च 1943 पृष्ठ 14

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...