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हम सभी साधक- जो वर्षों से साधना कर रहे हैं, उनमें से प्रायः सभी को आँधियों का अनुभव है। हम सभी के अन्तर्गगन आँधियों के धूल- गुबार से भरे हुए हैं। संस्कारों, प्रवृत्तियों एवं कर्मों के भयावह जंगल में ये आँधियाँ जोर- शोर से उठती हैं। शुरूआती दौर में हम ज्यों- ज्यों साधना करते हैं, त्यों- त्यों इनका शोर बढ़ता है। आँधी की गर्द- गुबार तेज होती है। कभी- कभी तो इनके बढ़ने की दर साधना के बढ़ने के हिसाब से ही तेज होती है।
बड़ी विकट एवं विपन्न स्थिति होती है इस समय साधक की। ऐसे में उसके लिए गुरुभक्ति का ही सहारा होता है। गुरुभक्ति का रक्षा कवच ही उसे सुरक्षा प्रदान करता है। जो इस सुरक्षा का सम्बल बनाए अन्त तक टिके रहते हैं, उनके जीवन में आँधियों का यह शोर कम हो जाता है और इसका स्थान एक नीरव- निस्तब्धता ले लेती है।
क्रमशः जारी
डॉ. प्रणव पण्डया
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