बुधवार, 20 दिसंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 20 Dec 2023

अपनी योग्यताओं का उपयोग लोग साँसारिक सुखोपभोग के साधन प्राप्त करने में भी कर सकते हैं किन्तु धन, स्त्री, पुत्र, मिष्ठान, पद, राजनैतिक महत्व आदि भौतिक विभूतियाँ भी स्थायी कहाँ हैं? माना इनमें कुछ सुख और सन्तोष मिलता है पर क्या यह किसी से छुपा है कि भोग अन्त में रोग ओर शोक के रूप में ही परिवर्तित होते हैं। इन्द्रियाँ कभी तृप्त नहीं होतीं। भोग-भोग की इच्छा को और भी अतृप्त बनाना है। वासना, वासना को ही भड़काती है फलस्वरूप मनुष्य दिन-प्रति दिन वृद्धावस्था और मृत्यु की ओर ही अग्रसर होता रहता है। साँसारिक कामनाओं में प्रत्येक दृष्टि से सन्तुष्ट व्यक्ति भी भय से नहीं बच पाते। रोग और शोक तो उन्हें भी घेरे रहते हैं।

अपने आपको जानना ही आत्म-ज्ञान प्राप्त करना है। अपने को शरीर मानना यह अविद्या है और आत्म-ज्ञान प्राप्त करना ही विद्या है। पहली मृत्यु है दूसरी अमरता, एक अन्धकार है दूसरा प्रकाश, एक जन्म-मृत्यु है दूसरा मोक्ष। एक बन्धन है दूसरा मुक्ति। नरक और स्वर्ग भी इन्हें ही कह सकते हैं। ये दोनों एक दूसरे से अत्यन्त विपरीत परिस्थितियाँ हैं, दोनों भिन्न-भिन्न दिशाओं को ले जाती हैं, इसलिये एक को ग्रहण करने के लिये दूसरे को त्यागना अनिवार्य हो जाता है।

बुद्धिमान होना अच्छा है किन्तु बुद्धिवादी होना उतना अच्छा नहीं है। आज हम अपने को विगत युगों के मानवों से अधिक बुद्धिमान तथा सभ्य मानते हैं। आज हम अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों पर गर्व करते हैं और कहते हैं कि हमने अपने पूर्वकालीन पूर्वजों से अधिक उन्नति और विकास किया है। यह ठीक है कि आज के मनुष्य ने उन्नति की है, किन्तु याँत्रिक क्षेत्र में। मानवता के क्षेत्र में नहीं। जब तक हम बुद्धि के बल पर मानव मूल्यों की प्रतिस्थापना नहीं करते, सही मानो में बुद्धिमान कहलाने के अधिकारी नहीं हो सकते।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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