रविवार, 25 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 25 Feb 2024

👉अपने माता-पिता गुरुजनों आदि के साथ मीठी भाषा बोलें, सभ्यता पूर्ण व्यवहार करें।

प्रायः लोग अपने आपको बहुत पठित एवं सभ्य व्यक्ति मानते हैं। परंतु जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती जाती है, उनमें सामर्थ्य बुद्धि बल विद्या शक्ति सत्ता अधिकार बढ़ता जाता है, वैसे वैसे यह देखने को मिलता है, कि उनमें इन सब चीजो का अभिमान भी बढ़ता जाता है। और बढ़ते बढ़ते यह अभिमान इतना बढ़ जाता है कि लोग सभ्यता से बोलना ही भूल जाते हैं। वे यह भी भूल जाते हैं कि हमारी इस संपूर्ण उन्नति का मुख्य आधार, हमारे माता पिता और गुरुजन हैं।

यह कोई सभ्यता नहीं है। जिन माता पिता आदि बड़े बुजुर्गों ने इतना तप करके आपको योग्य बनाया, सभी क्षेत्रों में आप की उन्नति करवाई, जिन के आर्थिक सामाजिक मार्गदर्शन विद्या आदि आदि सब प्रकार के सहयोग से आपने इतनी उन्नति की; कम से कम उनका उपकार भूलना नहीं चाहिए। उनके साथ असभ्यता से बात नहीं करनी चाहिए, सम्मान पूर्वक ही बोलना चाहिए।

हो सकता है माता पिता की आयु बड़ी हो जाने पर अर्थात वृद्धावस्था आ जाने पर कभी कभी उनकी कुछ बातें आपको पसंद न भी आएं। तब भी उनके साथ असभ्यता तो नहीं करनी चाहिए। क्योंकि यही घटना कल आपके साथ भी होने वाली है। आपके बच्चे भी आपको रोज देखते हैं, और आपसे ही सीखते हैं। जो व्यवहार आप अपने माता-पिता के साथ आज कर रहे हैं, कुछ समय बाद यही व्यवहार आपके बच्चे आपके साथ करेंगे। यह सोचकर ही अपने माता-पिता के साथ सभ्यतापूर्ण उत्तम व्यवहार करें।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 आत्मचिंतन के क्षण 25 Feb 2024

 🔹संसार में बहुत से प्राणी हैं। बड़े विचित्र विचित्र प्राणी हैं, मछलियां, चमगादड़, गिरगिट इत्यादि। इनमें से जो गिरगिट है, परमात्मा ने उसको ऐसी शक्ति और कला दी  है, कि जब उसे कहीं पर अपनी जान का खतरा दिखता है, तो वह अपने आसपास की रंगीली वस्तुओं के समान ही, अपने रंग भी बना लेता है। अर्थात खतरे की स्थिति में वह रंग बदलता है। जो परमात्मा ने उसको एक अच्छी कला दी है। इसका वह अपनी रक्षा के लिए उपयोग करता है।

परंतु एक छली कपटी बेईमान धूर्त मनुष्य तो अपनी रक्षा के लिए रंग नहीं बदलता। वह तो जब भी अवसर लगे, लूट झपट चालाकी धोखाधड़ी बेईमानी ठगी कुछ भी करना हो, दूसरे को कमजोर, मजबूर या अज्ञानी देखकर तुरंत रंग बदलता है। वह अपने स्वार्थ एवं मूर्खता के कारण रंग बदलता है, अपनी रक्षा के लिए नहीं। जब कि ईश्वर ने उसे वेदो में सावधान भी कर रखा है कि तुम लूटपाट चोरी चालाकी ठगी बेईमानी आदि पाप कर्म मत करना, ईमानदारी से जीना।

फिर भी मनुष्य कितना विचित्र प्राणी है कि पशु-पक्षियों, कीड़े मकोड़े आदि प्राणियों से भी गया गुजरा है। वह अपने स्वार्थ और मूर्खता के कारण कदम कदम पर रंग बदलता है। ऐसे मनुष्यों को ही ईश्वर अगले जन्मों में दंड देता है, और शेर भेड़िया मछली साँप बिच्छू गिरगिट चमगादड़ आदि विचित्र योनियों  में जन्म देकर दुख देता है।

ये कीड़े मकोड़े पशु पक्षी तो बेचारे अपने पिछले पापों का दंड भोग ही रहे हैं। बुद्धि कम होने से ये बेचारे समझ नहीं पा रहे, कि हम अपने पिछले पापों का दंड भोग रहे हैं।  परंतु मनुष्य में इतनी तो बुद्धि है कि वह इन प्राणियों को देखकर ही सीख जाए, कि मैं पाप न करूँ, अन्यथा मुझे भी इन कीड़े मकोड़े आदि प्राणियों की तरह से विभिन्न योनियों में दुख भोगने पड़ेंगे। ईश्वर सबको सद्बुध्दि देवे। सब लोग अच्छे काम करें, तथा अपने वर्तमान एवं भविष्य का सुधार करें।

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