सोमवार, 30 जुलाई 2018

👉 वेश की लाज

🔶 एक बहरूपिया राजा के दरबार में वेश बदल-बदल कर कई बार गया, परन्तु राजा ने उसे हर बार पहचान लिया और कहा कि जब तक तुम हमें ऐसा रूप न दिखाएँगे जो पहचानने में न आवे तब तक इनाम न मिलेगा। यह सुन वह चला गया और कुछ समय पश्चात् साधु का रूप बन, महल के पास ही धूनी रमा दी। न खाना, न पीना, भेंट की ओर देखना भी नहीं। राजा ने भी उस महात्मा की प्रशंसा सुनी तो वह भी भेंट लेकर उपस्थित हुआ। उसने भेंट के सच्चे मोती आग में झोंक दिये।

🔷 राजा उसकी त्याग वृत्ति देख भक्ति भाव से प्रशंसा करते हुए चले गये। दूसरे दिन बहरूपिया राज सभा में उपस्थित हुआ और अपने साधु बनकर राजा को धोखा देने की चर्चा करते हुए अपना इनाम माँगा। राजा ने प्रसन्न हो, इनाम दिया और पूछा-तुमने वे मोती, जो इनाम के मूल्य से भी अधिक मूल्यवान थे, आग में क्यों झोंक दिये। यदि उन्हें ही लेकर चले जाते तो बहुत लाभ में रहते? उसने उत्तर दिया-यदि मैं ऐसा करता तो इससे साधु-वेश कलंकित होता। साधुवेश को कलंकित करके धन लेने का अनैतिक कार्य कोई आस्तिक भला कैसे कर सकता हैं?”

📖 अखण्ड ज्योति से

👉 साधू की बात

🔷 एक बार एक राजा की सेवा से प्रसन्न होकर एक साधू नें उसे एक ताबीज दिया और कहा की राजन इसे अपने गले मे डाल लो और जिंदगी में कभी ऐसी परिस्थिति आये की जब तुम्हे लगे की बस अब तो सब ख़तम होने वाला है, परेशानी के भंवर मे अपने को फंसा पाओ, कोई प्रकाश की किरण नजर ना आ रही हो, हर तरफ निराशा और हताशा हो तब तुम इस ताबीज को खोल कर इसमें रखे कागज़ को पढ़ना, उससे पहले नहीं!

🔶 राजा ने वह ताबीज अपने गले मे पहन लिया! एक बार राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार करने घने जंगल मे गया! एक शेर का पीछा करते करते राजा अपने सैनिकों से अलग हो गया और दुश्मन राजा की सीमा मे प्रवेश कर गया, घना जंगल और सांझ का समय, तभी कुछ दुश्मन सैनिकों के घोड़ों की टापों की आवाज राजा को आई और उसने भी अपने घोड़े को एड लगाई, राजा आगे आगे दुश्मन सैनिक पीछे पीछे! बहुत दूर तक भागने पर भी राजा उन सैनिकों से पीछा नहीं छुडा पाया!

🔷 भूख प्यास से बेहाल राजा को तभी घने पेड़ों के बीच मे एक गुफा सी दिखी, उसने तुरंत स्वयं और घोड़े को उस गुफा की आड़ मे छुपा लिया! और सांस रोक कर बैठ गया, दुश्मन के घोड़ों के पैरों की आवाज धीरे धीरे पास आने लगी! दुश्मनों से घिरे हुए अकेले राजा को अपना अंत नजर आने लगा, उसे लगा की बस कुछ ही क्षणों में दुश्मन उसे पकड़ कर मौत के घाट उतार देंगे! वो जिंदगी से निराश हो ही गया था, की उसका हाथ अपने ताबीज पर गया और उसे साधू की बात याद आ गई! उसने तुरंत ताबीज को खोल कर कागज को बाहर निकाला और पढ़ा! उस पर्ची पर लिखा था — ”यह भी कट जाएगा “

🔶 राजा को अचानक ही जैसे घोर अन्धकार मे एक ज्योति की किरण दिखी, डूबते को जैसे कोई सहारा मिला! उसे अचानक अपनी आत्मा मे एक अकथनीय शान्ति का अनुभव हुआ! उसे लगा की सचमुच यह भयावह समय भी कट ही जाएगा, फिर मे क्यों चिंतित होऊं! अपने प्रभु और अपने पर विश्वासरख उसने स्वयं से कहा की हाँ, यह भी कट जाएगा!

🔷 और हुआ भी यही, दुश्मन के घोड़ों के पैरों की आवाज पास आते आते दूर जाने लगी, कुछ समय बाद वहां शांति छा गई! राजा रात मे गुफा से निकला और किसी तरह अपने राज्य मे वापस आ गया!

👉 आज का सद्चिंतन 30 July 2018


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 July 2018


👉 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार 1 (भाग 15)

👉 प्रतिभा परिवर्धन के तथ्य और सिद्धांत

🔷 प्रतिभाएँ एकाकी बढ़कर अपने अग्रगमन की क्षमता का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। फिर सर्वत्र उनकी मनस्विता का लोहा माना जाने लगता है। दूसरे लोग भी उनका अनुकरण करते हैं, जिनकी जिम्मेदारियाँ भारी हैं, वे ऐसे ही लोगों को तलाश करते रहते हैं। प्रामाणिकता की परख होने पर सब ओर से एक-से-बढ़कर एक भारी-भरकम जिम्मेदारियाँ उनके ऊपर आग्रहपूर्वक डाली जाने लगती हैं। वे उन्हें स्वीकार करते और जो कार्य लिया गया है, उसे सर्वांगपूर्ण ढंग से संपन्न कर दिखाते हैं।
  
🔶 रेल का इंजन एकाकी चलता है। स्वयं दौड़ता है और अपने साथ भरे डिब्बों की लंबी शृंखला को घसीटते हुए निर्धारित लक्ष्य की दिशा में पटरी पर दौड़ता चला जाता है। सर्वविदित है कि डिब्बों की तुलना में इंजन को अधिक महत्त्व मिलता है। अधिक मूल्यांकन भी होता है। यह और कुछ नहीं साहस भरी व्यवस्था का परिचय देने वाली ऊर्जा की ही परिणति है। प्रतिभाओं में यह सद्गुण उनके द्वारा स्वउपार्जित स्तर का, बड़ी मात्रा में पाया जाता है। वे औरों का मुँह ताकते हुए नहीं बैठे रहते, वरन आगे बढ़कर औरों को अपने चुंबकत्व के कारण जोड़ते और साथ चलने के लिए बाधित करते हैं। सफलताओं का यही स्रोत है।
  
🔷 यों प्रतिभा का दुरुपयोग भी हो सकता है। धन का, बल का, सौंदर्य का, कौशल का, नियोजन यदि भ्रष्ट-चिंतन और दुष्ट आचरण में किया जाए तो वैसा भी हो सकता है। आतंकवादी, अनाचारी, उच्छृंखल, उद्धत लोग प्राय: वैसा करते भी हैं। इतने पर भी यह निश्चित है कि कोई इस आधार पर न तो स्थिर प्रगति कर सकता है और न ही कोई ऐसी परंपरा पीछे छोड़ सकता है, जिसे सराहा जा सके। आज नहीं तो कल-परसों ऐसे लोग आत्मप्रताड़ना, लोकभर्त्सना से लेकर राजदंड और दैवी प्रकोप के भाजन बनते ही हैं। लानत और घृणा तो भीतर-बाहर से उन पर निरंतर बरसती ही रहती है। 

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार पृष्ठ 19

👉 Thirst for What?

🔷 Instead of giving content, the worldly desires – even if fulfilled, always lead to newer ones with greater thirst. It is said that a human life is just a sojourn in the endless journey of the individual self in its quest for completeness. However, if a human being gets rid of all cravings then he can attain absolute evolution in this life itself. Trisna (thirst for fulfillment of desires, ambitions) is the root cause of all thralldoms, which entraps the individual self in the cycle of life and death. How a person enslaved by cravings would ever be liberated? Salvation means freedom from all worldly desires and expectations. Those having quest for realization of
absolute knowledge, truth should best begin with a vigilant watch on their own aspirations and control them prudently.

🔶 It is said that inner content is the biggest fulfillment. No amount of wealth could match it. One may be free and independent in worldly terms, but in reality, he, like most of us is the slave of his mind. The one whose mind is captured by trisna cannot be free for any moment. Even the most affluent man of the world is like a beggar because of his trisna: because he would always expect something from the world in terms of greater success, wealthier resources and what not. So if you want to rise and make proper use of your life, you will have to restrain your desires, selfish ambitions. Don’t escape from your duties, you must be constructive and must transact your duties sincerely; only you leave out the expectations or attachments with the results. Every action has a corresponding reaction here. The Law of appropriate consequences of your karma is absolute.

🔷 So don’t be desperate for any result, don’t think that the world or the circumstance would conform to your expectations. Renounce your trisna and be a free being…

📖 Akhand Jyoti, Mar. 1942

👉 तप में प्रमाद न करें


🔷 तप से प्रजापति ने इस सृष्टि को सृजा। सूर्य तपा और संसार को तपाने में समर्थ हुआ। तप के बल से शेष पृथ्वी का वजन उठाते हैं। शक्ति और वैभव का उदय तप से ही होता है।

🔶 तपाने पर धातुओं के उपकरण ढलते हैं। सोने के आभूषण बनते हैं। बहुमूल्य रस, भस्में तपाये जाने पर ही अमृतोपम गुण दिखाती हैं।

🔷 तपस्वी बलवान् बनता है, विद्वान् और मेधावी बनता है। ओजस्, तेजस् और वर्चस् प्राप्त करने के लिए तपश्चर्या का अवलम्बन लेना पड़ता है।

🔶 विलासी, आलसी और कायर मरते हैं। प्रतिभा गवां बैठते हैं। प्रामाणिकता न रहने पर उन्हें लक्ष्मी छोड़कर चली जाती है। वे पराधीन की भाँति जीते और दीन- दुर्बल की तरह उपहासास्पद बनते हैं।

🔷 अस्तु, तपस्वी होना चाहिए। तप में प्रमाद नहीं होना चाहिए। तपस्वी को रोको मत। तपस्वी को डराओ मत।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 अन्धकार को दीपक की चुनौती

🔷 अन्धकार की अपनी शक्ति है। जब उसकी अनुकूलता का रात्रिकाल आता है, तब प्रतीत होता है कि समस्त संसार को उसने अपने अञ्चल में लपेट लिया। उसका प्रभाव- पुरुषार्थ देखते ही बनता है। आँखें यथा स्थान बनी रहती हैं। वस्तुएँ भी अपनी जगह पर रखी रहती हैं, किन्तु देखने लायक विडम्बना यह है कि हाथ को हाथ नहीं सूझ पड़ता। पैरों के समीप रखी हुई वस्तुएँ ठोकर लगने का कुयोग बना देती हैं।

🔶 अन्धकार डरावना होता है। उसके कारण एकाकीपन की अनुभूति होती है और रस्सी का साँप, झाड़ी का भूत बनकर खड़ा हो जाता है। नींद को धन्यवाद है कि वह चिरस्मृति के गर्त में धकेल देती है, अन्यथा जगने पर करवटें बदलते वह अवधि पर्वत जैसी भारी पड़े।

🔷 इतनी बड़ी भयंकरता की सत्ता स्वीकार करते हुए भी दीपक की सराहना करनी पड़ती है, जो जब अपनी छोटी सी लौ प्रज्वलित करता है, तो स्थिति में कायाकल्प जैसा परिवर्तन हो जाता है। उसकी धुंधली आभा भी निकटवर्ती परिस्थिति तथा वस्तु व्यवस्था का ज्ञान करा देती है। वस्तु बोध की आधी समस्या हल हो जाती है।

🔶 दीपक छोटा ही सही अल्प मूल्य का सही, पर वह प्रकाश का अंशधर होने के नाते सुदूर फैलाव को चुनौती देता है और निराशा के वातावरण को आशा और उत्साह से भर देता है। इसी को कहते हैं नेतृत्व।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...