प्रवचनों और लेखों की सीमित शक्ति से युग निर्माण का कार्य संपन्न हो सकना संभव नहीं, यह तो तभी होगा जब हम अपना निज का जीवन एक विशेष ढाँचे में ढालकर लोगों को दिखावेंगे। प्राचीनकाल के सभी धर्मोपदेशकों ने यही किया था। उनने अपने तप और त्याग का अनुपम आदर्श उपस्थित करके लाखों-करोड़ों अंतःकरणों को झकझोर डाला था और लोगों को अपने पीछे-पीछे अनेक कष्ट उठाते हुए भी चले आने के लिए तत्पर कर लिया था। जनता ने प्रकाश उनकी वाणी से नहीं, कृतियों से ग्रहण किया था।
युग निर्माण योजना का आरंभ दूसरों को उपदेश देने से नहीं, वरन् अपने मन को समझाने से शुरू होगा। यदि हमारा अपना मन हमारी बात मानने के लिए तैयार नहीं हो सकता तो दूसरा कौन सुनेगा? मानेगा? जीभ की नोंक से निकले हुए लच्छेदार प्रवचन दूसरों के कानों को प्रिय लग सकते हैं, वे उनकी प्रशंसा भी कर सकते हैं, पर प्रभाव तो आत्मा का आत्मा पर पड़ता है, यदि हमारी आत्मा खोखली है तो उसका कोई प्रभाव किसी पर न पड़ेगा।
आज की परिस्थिति में अधिक बच्चे उत्पन्न करना भले ही आवश्यक न रहा हो, पर विचार संतान का उत्पन्न् करना निश्चय ही एक श्रेष्ठ परमार्थ है। सद्विचारों और सत्कर्मों की अभिवृद्धि के उद्देश्य से बनाई गई युग निर्माण योजना की वंश परम्परा हममें से हर एक को बढ़ानी चाहिए। जिस प्रकार अनेक स्वार्थ साधनों के लिए हम दूसरों को तरह-तरह से प्रभावित करते, बदलते और फुसलाते हैं उसी प्रकार इस परमार्थ साधन के क्षेत्र में उन सबको घसीट लाने का प्रयत्न करना चाहिए जिनसे हमारा संपर्क है, जिन पर हमारा प्रभाव है।
युग निर्माण योजना का आरंभ दूसरों को उपदेश देने से नहीं, वरन् अपने मन को समझाने से शुरू होगा। यदि हमारा अपना मन हमारी बात मानने के लिए तैयार नहीं हो सकता तो दूसरा कौन सुनेगा? मानेगा? जीभ की नोंक से निकले हुए लच्छेदार प्रवचन दूसरों के कानों को प्रिय लग सकते हैं, वे उनकी प्रशंसा भी कर सकते हैं, पर प्रभाव तो आत्मा का आत्मा पर पड़ता है, यदि हमारी आत्मा खोखली है तो उसका कोई प्रभाव किसी पर न पड़ेगा।
आज की परिस्थिति में अधिक बच्चे उत्पन्न करना भले ही आवश्यक न रहा हो, पर विचार संतान का उत्पन्न् करना निश्चय ही एक श्रेष्ठ परमार्थ है। सद्विचारों और सत्कर्मों की अभिवृद्धि के उद्देश्य से बनाई गई युग निर्माण योजना की वंश परम्परा हममें से हर एक को बढ़ानी चाहिए। जिस प्रकार अनेक स्वार्थ साधनों के लिए हम दूसरों को तरह-तरह से प्रभावित करते, बदलते और फुसलाते हैं उसी प्रकार इस परमार्थ साधन के क्षेत्र में उन सबको घसीट लाने का प्रयत्न करना चाहिए जिनसे हमारा संपर्क है, जिन पर हमारा प्रभाव है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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