🔶 एक बार गुरु नानक पानीपत गए, जहां शाहशरफ नामक एक प्रसिद्ध सूफी फकीर रहते थे। गुरु नानक से शाहशरफ ने पूछा, 'फकीर होकर आपने गृहस्थों वाले कपड़े क्यों पहन रखे हैं और संन्यासियों की तरह आपने अपना सिर क्यों नही मुंडा रखा है?' नानक ने उत्तर दिया, 'मूंड़ना मन को चाहिए, सिर को नहीं और मिट्टी की तरह नम्र होकर ही मन को मूंड़ा जा सकता है। जो मनुष्य परमेश्वर के दर पर अपने सुख, स्वाद और अहंकार को त्यागकर गिर पड, वह जो भी वस्त्र धारण करे, परमात्मा उसे स्वीकार करता है। दरवेश का चोगा और टोपी यही है कि वह ईश्वरीय ज्ञान को अपनी आत्मा में बसा ले। जो कोई मन जीत ले, सुख-दुख में एक समान रहे और हर समय सहजावस्था में विचरण करे, उसके लिए हर तरह का वेश शोभनीय है।'
🔷 शाहशरफ ने पूछा, 'आप की जाति क्या है, आप का मत क्या है, गुजर कैसे होती है?' इस पर गुरुजी बोले, 'मेरा मत है सत्यमार्ग, मेरी जाति वही है जो अग्नि और वायु की है, जो शत्रु-मित्र को एक समान समझती है। मेरा जीवन वृक्ष और धरती की तरह है। नदी की तरह मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि मुझ पर कोई धूल फेंकता है या फूल और मैं जीवित उसी को समझता हूं, जिसका जीवन चंदन के समान दूसरों के लिए घिसता हुआ संसार में अपनी सुगंध फैला रहा है।
🔶 यह सुन कर शाहशरफ ने कहा- दरवेश कौन है? नानक ने कहा, 'जो जिंदा ही मरे की तरह अविचल रहे। जागते हुए सोता रहे, जान बूझकर अपने आप को लुटाता रहे। जो क्रोध में न आए, अभिमान न करे। न स्वयं दुखी हो, न किसी को दुख दे। जो हमेशा ईश्वर में मग्न रहे और वही सुने जो उसके अंदर से ईश्वर बोलता है और उसी अंतर्यामी परमात्मा को हर व्यक्ति, हर स्थान में देखे। यह सुनकर शाहशरफ काफी प्रसन्न हुए।
🔷 शाहशरफ ने पूछा, 'आप की जाति क्या है, आप का मत क्या है, गुजर कैसे होती है?' इस पर गुरुजी बोले, 'मेरा मत है सत्यमार्ग, मेरी जाति वही है जो अग्नि और वायु की है, जो शत्रु-मित्र को एक समान समझती है। मेरा जीवन वृक्ष और धरती की तरह है। नदी की तरह मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि मुझ पर कोई धूल फेंकता है या फूल और मैं जीवित उसी को समझता हूं, जिसका जीवन चंदन के समान दूसरों के लिए घिसता हुआ संसार में अपनी सुगंध फैला रहा है।
🔶 यह सुन कर शाहशरफ ने कहा- दरवेश कौन है? नानक ने कहा, 'जो जिंदा ही मरे की तरह अविचल रहे। जागते हुए सोता रहे, जान बूझकर अपने आप को लुटाता रहे। जो क्रोध में न आए, अभिमान न करे। न स्वयं दुखी हो, न किसी को दुख दे। जो हमेशा ईश्वर में मग्न रहे और वही सुने जो उसके अंदर से ईश्वर बोलता है और उसी अंतर्यामी परमात्मा को हर व्यक्ति, हर स्थान में देखे। यह सुनकर शाहशरफ काफी प्रसन्न हुए।