दूसरों के साथ उदारता का व्यवहार केवल वे कर सकते है जो अपने प्रति कठोर होते है। जो अपने साथ रियायत चाहते है उन्हें दूसरों के साथ कठोर बनना पड़ता है। तराजू का एक पलड़ा ही झुक सकता है और वह भी तब, जब दूसरा ऊपर उठता है। यदि मनुष्य अपने लिए अधिक सुविधायें चाहेगा तो स्वभावतः उसे दूसरों की उपेक्षा करनी पड़ेगी दूसरों के प्रति जितनी अधिक ममता और करुणा होगी उतनी ही अपनी जरूरतें घटाकर, अपनी सुविधाएँ हटा कर उन्हें जरूरतमन्दों के लिए लगाने का भाव जागेगा उदार हृदय व्यक्ति अन्ततः बिल्कुल खाली हाथ और निरन्तर सेवा परायण हो जाता है। इसलिए उसकी महानता है।
जब तक आक्रमण की, प्रतिहिंसा की, बदला लेने की या किसी को चोट पहुँचाकर सन्तुष्ट होने की इच्छा जीवित है तब तक हमारे अन्दर असुरता एवं दुष्टता विद्यमान है यह मानना होगा। जब इस दिशा में उत्पन्न होने वाला उत्साह उपेक्षा में बदलने लगे तो समझना चाहिये वह दुष्टता शांत होती जाती है। जब दूसरों की भूलों के प्रति क्षमा का, दूसरों के प्रति करुणा का, और दूसरों के अभावों के प्रति सहानुभूति का भाव उदय होने लगे तो समझना चाहिए कि मानवता विकसित हो रही है। यह विकास इस सीमा तक पहुँच जाय कि हानि पहुँचाने और शत्रुता रखने वालों को भी सुख पहुँचाने का प्रयत्न किया जाय तो समझना चाहिए कि साधुता प्रकट होने लगी।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति 1961 जून Page 18
जब तक आक्रमण की, प्रतिहिंसा की, बदला लेने की या किसी को चोट पहुँचाकर सन्तुष्ट होने की इच्छा जीवित है तब तक हमारे अन्दर असुरता एवं दुष्टता विद्यमान है यह मानना होगा। जब इस दिशा में उत्पन्न होने वाला उत्साह उपेक्षा में बदलने लगे तो समझना चाहिये वह दुष्टता शांत होती जाती है। जब दूसरों की भूलों के प्रति क्षमा का, दूसरों के प्रति करुणा का, और दूसरों के अभावों के प्रति सहानुभूति का भाव उदय होने लगे तो समझना चाहिए कि मानवता विकसित हो रही है। यह विकास इस सीमा तक पहुँच जाय कि हानि पहुँचाने और शत्रुता रखने वालों को भी सुख पहुँचाने का प्रयत्न किया जाय तो समझना चाहिए कि साधुता प्रकट होने लगी।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति 1961 जून Page 18