🔶 क्या हम जिन्दगी भर, अपने बीबी-बच्चों को ही खिलाते रहेंगे? जिस पर मनुष्य का भविष्य टिका है, क्या उसके लिए कुछ नहीं कर सकेंगे? अपने लिये अधिक, समाज के लिए इतना कम। यह कैसे होगा? मेरे गुरु ने दुखियारों की सेवा, समाज की सेवा कम की है, परन्तु उसने सारे विश्व को हिला दिया है। दूसरों के दुःखों को देखकर यह सोचते हैं कि इसके लिए हम क्या करें? उस समय मैं रो पड़ता हूँ तथा उसे सहायता किये बिना मेरा मन नहीं मानता है। यह क्रम चलेगा ही। परन्तु एक काम और है, इनसान को ऊँचा उठाने का। हम सोचते हैं कि और यदि यह काम भी किया होता तो मजा आ जाता। आप जितने लोग बैठे हैं, अगर आपको हम फुटबॉल की तरह ऊँचे उछाल दिये होते तो मजा आ जाता।
🔷 आप लोगों को उछाल दें तो आप में से हर एक आदमी हनुमान, ऋषि विवेकानन्द दिखाई पड़ेगा। आप लोगों में से एक भी आदमी ऐसा नहीं है, जो रैदास की तुलना में गरीब हो। परन्तु आप इतने भारी हैं कि आपके सेल्स काम नहीं कर रहे हैं, आपके हाथ उठ नहीं पा रहे हैं। मानसिक दृष्टि से एक-एक बेड़ियाँ इतनी भारी हैं जैसे हजार मन की हों। ऐसे में आपको कैसे उठाऊँ? आपकी बेड़ियों को मैं काटूँगा क्योंकि हमारे बाद इन बच्चों को खिलाने वाला, नर्सिंगहोम चलाने वाला कहाँ से लायेंगे? यह अस्पताल बन्द हो जाने पर आपके अनुभव के बिना इनका ऑपरेशन कौन करेगा? इनसान को उठाया नहीं जा सका तो बात कैसे बनेगी?
🔶 इसी काम के लिए हम समय लगाना चाहते हैं। सवाल हमारे समय का है, आप तो केवल पूजा के पीछे पड़े हैं। देवी-देवता के पीछे लगे हैं कि मनोकामना पूरी हो जाए। किसी दिन मेरे दिमाग में गुस्सा आ गया तो पूजा को ही बन्द कर दूँगा और कहूँगा कि इसी के पीछे पड़ा है। पूजा के चक्कर में पड़ा है। पूजा से आज्ञाचक्र जगेगा। सुन लेना एक दिन मैं पूजा को गालियाँ दूँगा, यदि यही रटता रहा कि सब कुछ पूजा से मिल जाएगा और यही समझता रहा कि माला घुमाने को पूजा कहते हैं। देवी-देवता को पकड़ने का नाम पूजा है। अज्ञानी लोग, भ्रमित लोग मनुष्य को दबाने तथा चक्कर में डालने के नाम को पूजा कहते हैं।
🔷 देवी-देवताओं को पकड़ने के लिए, मनोकामना पूर्ण करने के लिए जो आपने पूजा का स्वरूप बना रखा है, वह बहुत ही घटिया रूप है। पूजा ऐसी नहीं हो सकती, ध्यान ऐसा नहीं हो सकता, जैसा कि आप लोगों ने समझ रखा है कि अगरबत्तियाँ चढ़ाएँगे, चावल चढ़ाएँगे, शक्कर की गोली चढ़ाएँगे और मनोकामना पूर्ण हो जाएगी। इतना घटिया अध्यात्म नहीं हो सकता है जैसा कि आप लोगों ने सोच रखा है। आपकी पूजा घटिया, आपके देवता घटिया सब घटिया हैं। इसको समझना चाहिए।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)
🔷 आप लोगों को उछाल दें तो आप में से हर एक आदमी हनुमान, ऋषि विवेकानन्द दिखाई पड़ेगा। आप लोगों में से एक भी आदमी ऐसा नहीं है, जो रैदास की तुलना में गरीब हो। परन्तु आप इतने भारी हैं कि आपके सेल्स काम नहीं कर रहे हैं, आपके हाथ उठ नहीं पा रहे हैं। मानसिक दृष्टि से एक-एक बेड़ियाँ इतनी भारी हैं जैसे हजार मन की हों। ऐसे में आपको कैसे उठाऊँ? आपकी बेड़ियों को मैं काटूँगा क्योंकि हमारे बाद इन बच्चों को खिलाने वाला, नर्सिंगहोम चलाने वाला कहाँ से लायेंगे? यह अस्पताल बन्द हो जाने पर आपके अनुभव के बिना इनका ऑपरेशन कौन करेगा? इनसान को उठाया नहीं जा सका तो बात कैसे बनेगी?
🔶 इसी काम के लिए हम समय लगाना चाहते हैं। सवाल हमारे समय का है, आप तो केवल पूजा के पीछे पड़े हैं। देवी-देवता के पीछे लगे हैं कि मनोकामना पूरी हो जाए। किसी दिन मेरे दिमाग में गुस्सा आ गया तो पूजा को ही बन्द कर दूँगा और कहूँगा कि इसी के पीछे पड़ा है। पूजा के चक्कर में पड़ा है। पूजा से आज्ञाचक्र जगेगा। सुन लेना एक दिन मैं पूजा को गालियाँ दूँगा, यदि यही रटता रहा कि सब कुछ पूजा से मिल जाएगा और यही समझता रहा कि माला घुमाने को पूजा कहते हैं। देवी-देवता को पकड़ने का नाम पूजा है। अज्ञानी लोग, भ्रमित लोग मनुष्य को दबाने तथा चक्कर में डालने के नाम को पूजा कहते हैं।
🔷 देवी-देवताओं को पकड़ने के लिए, मनोकामना पूर्ण करने के लिए जो आपने पूजा का स्वरूप बना रखा है, वह बहुत ही घटिया रूप है। पूजा ऐसी नहीं हो सकती, ध्यान ऐसा नहीं हो सकता, जैसा कि आप लोगों ने समझ रखा है कि अगरबत्तियाँ चढ़ाएँगे, चावल चढ़ाएँगे, शक्कर की गोली चढ़ाएँगे और मनोकामना पूर्ण हो जाएगी। इतना घटिया अध्यात्म नहीं हो सकता है जैसा कि आप लोगों ने सोच रखा है। आपकी पूजा घटिया, आपके देवता घटिया सब घटिया हैं। इसको समझना चाहिए।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)