🌹 ‘‘विनाश नहीं सृजन’’ हमारा भविष्य कथन
🔷 उपासना का वर्तमान चरण सूक्ष्मीकरण की सावित्री साधना के रूप में चल रहा है। इस प्रक्रिया के पीछे किसी व्यक्ति विशेष की ख्याति, सम्पदा, वरिष्ठता या विभूति नहीं हैं। एक मात्र प्रयोजन यही है कि मानवी सत्ता और गरिमा के लड़खड़ाते हुए पैर स्थिर हो सकें। पाँच वीरभद्रों के कंधों पर वे अपना उद्देश्य लादकर उसे सम्पन्न भी कर सकते हैं। हनुमान के कंधों पर राम-लक्ष्मण दोनों बैठे फिरते थे। यह श्रेष्ठता प्रदान करना भर है। इसे माध्यम का चयन कह सकते हैं। एक गाण्डीव धनुष के आधार पर किस प्रकार इतना विशालकाय महाभारत लड़ा जा सकता था। इसे सामान्य बुद्धि से असम्भव ही कहा जा सकता है, पर भगवान् की जो इच्छा होती है वह तो किसी न किसी प्रकार पूरी होकर रहती है। महाबली हिरण्याक्ष को शूकर भगवान ने फाड़-चीरकर रख दिया था, उसमें भी भगवान् की ही इच्छा थी।
🔶 इस बार भी हमारी निज की अनुभूति है कि असुरता द्वारा उत्पन्न हुई विभीषिकाओं को सफल नहीं होने दिया जाएगा। परिवर्तन इस प्रकार होगा कि जो लोग इस महाविनाश में संलग्न हैं, इसकी संरचना कर रहे हैं, वे उलट जाएँगे या उनके उलट देने वाले नए पैदा हो जाएँगे। विश्व-शान्ति में भारत की निश्चित ही कोई बड़ी भूमिका हो सकती है।
🔷 समस्त संसार के मूर्धन्यों, शक्तिवानों और विचारवानों की आशंका एक ही है कि विनाश होने जा रहा है। हमारा अकेले का कथन यह है कि उलटे को उलटकर ही सीधा किया जाएगा। हमारे भविष्य कथन को अभी ही बड़ी गम्भीरता पूर्वक समझ लिया जाए। विनाश की घटाओं को तूफानी प्रवाह अगले दिनों उड़ाकर कहीं ले जाएगा और अँधेरा चीरते हुए प्रकाश से भरा वातावरण दृष्टिगोचर होगा। यह ऋषियों के पराक्रम से ही सम्भावित है, इसमें कुछ दृश्यमान व कुछ परोक्ष भूमिका भी हो सकती हैं।
🔶 यह मानकर चलना चाहिए कि सामान्य स्तर के लोगों की इच्छाशक्ति भी काम करती है। जनमत का भी दबाव पड़ता है। जिन लोगों के हाथ में इन दिनों विश्व की परिस्थितियाँ बिगाड़ने की क्षमता है, उन्हें जागृत लोकमत के सामने झुकना ही पड़ेगा। लोकमत को जागृत करने का अभियान ‘‘प्रज्ञा-आंदोलन’’ द्वारा चल रहा है। यह क्रमशः बढ़ता और सशक्त होता जाएगा। इसका दबाव हर प्रभावशाली क्षेत्र की समर्थ शक्तियों पर पड़ेगा और उनका मन बदलेगा कि अपने कौशल चातुर्य को विनाश की योजनाएँ बनाने की अपेक्षा विकास के निमित्त लगाना चाहिए। प्रतिभा एक महान शक्ति है। वह जिधर भी अग्रसर होती है, उधर ही चमत्कार प्रस्तुत करती जाती है।
🌹 क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/My_Life_Its_Legacy_and_Message/v2.171
http://literature.awgp.org/book/My_Life_Its_Legacy_and_Message/v4.21
🔷 उपासना का वर्तमान चरण सूक्ष्मीकरण की सावित्री साधना के रूप में चल रहा है। इस प्रक्रिया के पीछे किसी व्यक्ति विशेष की ख्याति, सम्पदा, वरिष्ठता या विभूति नहीं हैं। एक मात्र प्रयोजन यही है कि मानवी सत्ता और गरिमा के लड़खड़ाते हुए पैर स्थिर हो सकें। पाँच वीरभद्रों के कंधों पर वे अपना उद्देश्य लादकर उसे सम्पन्न भी कर सकते हैं। हनुमान के कंधों पर राम-लक्ष्मण दोनों बैठे फिरते थे। यह श्रेष्ठता प्रदान करना भर है। इसे माध्यम का चयन कह सकते हैं। एक गाण्डीव धनुष के आधार पर किस प्रकार इतना विशालकाय महाभारत लड़ा जा सकता था। इसे सामान्य बुद्धि से असम्भव ही कहा जा सकता है, पर भगवान् की जो इच्छा होती है वह तो किसी न किसी प्रकार पूरी होकर रहती है। महाबली हिरण्याक्ष को शूकर भगवान ने फाड़-चीरकर रख दिया था, उसमें भी भगवान् की ही इच्छा थी।
🔶 इस बार भी हमारी निज की अनुभूति है कि असुरता द्वारा उत्पन्न हुई विभीषिकाओं को सफल नहीं होने दिया जाएगा। परिवर्तन इस प्रकार होगा कि जो लोग इस महाविनाश में संलग्न हैं, इसकी संरचना कर रहे हैं, वे उलट जाएँगे या उनके उलट देने वाले नए पैदा हो जाएँगे। विश्व-शान्ति में भारत की निश्चित ही कोई बड़ी भूमिका हो सकती है।
🔷 समस्त संसार के मूर्धन्यों, शक्तिवानों और विचारवानों की आशंका एक ही है कि विनाश होने जा रहा है। हमारा अकेले का कथन यह है कि उलटे को उलटकर ही सीधा किया जाएगा। हमारे भविष्य कथन को अभी ही बड़ी गम्भीरता पूर्वक समझ लिया जाए। विनाश की घटाओं को तूफानी प्रवाह अगले दिनों उड़ाकर कहीं ले जाएगा और अँधेरा चीरते हुए प्रकाश से भरा वातावरण दृष्टिगोचर होगा। यह ऋषियों के पराक्रम से ही सम्भावित है, इसमें कुछ दृश्यमान व कुछ परोक्ष भूमिका भी हो सकती हैं।
🔶 यह मानकर चलना चाहिए कि सामान्य स्तर के लोगों की इच्छाशक्ति भी काम करती है। जनमत का भी दबाव पड़ता है। जिन लोगों के हाथ में इन दिनों विश्व की परिस्थितियाँ बिगाड़ने की क्षमता है, उन्हें जागृत लोकमत के सामने झुकना ही पड़ेगा। लोकमत को जागृत करने का अभियान ‘‘प्रज्ञा-आंदोलन’’ द्वारा चल रहा है। यह क्रमशः बढ़ता और सशक्त होता जाएगा। इसका दबाव हर प्रभावशाली क्षेत्र की समर्थ शक्तियों पर पड़ेगा और उनका मन बदलेगा कि अपने कौशल चातुर्य को विनाश की योजनाएँ बनाने की अपेक्षा विकास के निमित्त लगाना चाहिए। प्रतिभा एक महान शक्ति है। वह जिधर भी अग्रसर होती है, उधर ही चमत्कार प्रस्तुत करती जाती है।
🌹 क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/My_Life_Its_Legacy_and_Message/v2.171
http://literature.awgp.org/book/My_Life_Its_Legacy_and_Message/v4.21