🔶 ब्रह्मचर्य का अभाव - प्राणशक्ति, स्फूर्ति बुद्धि और ओज यह वस्तुएं वीर्य से ही बनती हैं इसलिए उसे अमूल्य रत्न समझते हुए जी-जान इसकी रक्षा का प्रयत्न करना चाहिये। शरीर और मन का स्वास्थ्य वीर्य की शक्ति से प्राप्त होता है इसलिए क्षणिक इन्द्रिय सुख के लिए नष्ट करना धूति के बदले हीरा बेचना है। अखण्ड ब्रह्मचर्य धारण कीजिये। यदि विवाहित हैं तो केवल सन्तान उत्पन्न करने के उद्देश्य से धर्मपूर्वक उसका उपयोग कीजिए। इससे आपकी शक्ति सुरक्षित रहेगी।
🔷 कुसंग- मनुष्य शरीर एक प्रभावशाली विद्युत धारण किये हुए है जो अपने पास वालों पर अनिवार्य रूप से असर डालती है मजबूत विचारों से दूसरों पर जरूर असर पड़ता है अगर आप आरम्भिक अभ्यासी हों तो बुरे चरित्र और अपने दुष्ट विचार वालों से दूर रहिये उनके कार्यों में कोई दिलचस्पी मत लीजिये। हो सके तो अरुचि प्रकट कीजिये इससे आप उनके संक्रामक असर से बचे रहेंगे। सत्संग की महिमा अपार है श्रेष्ठ पुरुषों का साथ गंगा के समान है जिसमें गोता लगाने से क्लेश कटते हैं श्रेष्ठ पुरुषों के साथ रहने से, उनके मौखिक या लेखबद्ध विचारों के मनन करने से आत्मोत्थान होता है। हाँ, यदि आप अपने को अत्यन्त सुदृढ़ समझते हैं तो सुधार की दृष्टि से बुरे विचार वाले को अपने साथ ले सकते हैं परन्तु सावधान! कहीं उसका उलटा असर आप पर न हो जाय।
🔶 परदोष दर्शन - दूसरे के अवगुण देखना अपनी बुद्धि को दूषित करना है। फोटो खींचने के कैमरे के सामने जो चीज रखी जाती है उसी का अक्ष भीतर प्लेट पर खिंच जाता है। यदि आप दूसरों की बुराइयाँ ही देखेंगे तो उनके चित्र अपने अन्दर अंकित करके उन्हें खुद भी ग्रहण कर लेंगे। इसलिए दूसरों के सद्गुणों पर ही दृष्टि रखिये। सब में परमात्मा का स्वरूप देखिये और उन्हें प्रेम की दृष्टि से देखिये आपका हृदय प्रसन्न रहेगा। यदि किसी में बुराई दिखाई पड़े तो उससे घृणा मत कीजिये और जहाँ तक हो सके सुधारने का प्रयत्न कीजिये। परदोष दर्शन के कारण जो घृणा और द्वेश मन में उत्पन्न होते हैं वह भीतर ही भीतर अशान्ति उत्पन्न करके मन को निश्चित पथ से डिगा देते हैं। साधना को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है कि किसी की गन्दगी टटोलकर अपनी नाक को दुर्गन्धित न किया जाय।
🔷 संकीर्णता - अपने मजहब, विचार या विश्वासों पर दृढ़ रहना उचित है। परन्तु दूसरों के विश्वासों को घृणा की दृष्टि से देखना या झूठा समझना अनुचित है। हम सब सत्य के आस-पास चक्कर काट रहे हैं किन्तु कोई पूर्ण सत्य तक नहीं पहुँच सका है। इसलिए हमें एक दूसरे के दृष्टिकोण को ध्यानपूर्वक देखना चाहिए। कट्टरता एक ऐसा दुर्गुण है जिसके कारण आदमी न तो अपनी बुराइयों को छोड़ सकता है और न अच्छाइयों को ग्रहण कर सकता है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🔷 कुसंग- मनुष्य शरीर एक प्रभावशाली विद्युत धारण किये हुए है जो अपने पास वालों पर अनिवार्य रूप से असर डालती है मजबूत विचारों से दूसरों पर जरूर असर पड़ता है अगर आप आरम्भिक अभ्यासी हों तो बुरे चरित्र और अपने दुष्ट विचार वालों से दूर रहिये उनके कार्यों में कोई दिलचस्पी मत लीजिये। हो सके तो अरुचि प्रकट कीजिये इससे आप उनके संक्रामक असर से बचे रहेंगे। सत्संग की महिमा अपार है श्रेष्ठ पुरुषों का साथ गंगा के समान है जिसमें गोता लगाने से क्लेश कटते हैं श्रेष्ठ पुरुषों के साथ रहने से, उनके मौखिक या लेखबद्ध विचारों के मनन करने से आत्मोत्थान होता है। हाँ, यदि आप अपने को अत्यन्त सुदृढ़ समझते हैं तो सुधार की दृष्टि से बुरे विचार वाले को अपने साथ ले सकते हैं परन्तु सावधान! कहीं उसका उलटा असर आप पर न हो जाय।
🔶 परदोष दर्शन - दूसरे के अवगुण देखना अपनी बुद्धि को दूषित करना है। फोटो खींचने के कैमरे के सामने जो चीज रखी जाती है उसी का अक्ष भीतर प्लेट पर खिंच जाता है। यदि आप दूसरों की बुराइयाँ ही देखेंगे तो उनके चित्र अपने अन्दर अंकित करके उन्हें खुद भी ग्रहण कर लेंगे। इसलिए दूसरों के सद्गुणों पर ही दृष्टि रखिये। सब में परमात्मा का स्वरूप देखिये और उन्हें प्रेम की दृष्टि से देखिये आपका हृदय प्रसन्न रहेगा। यदि किसी में बुराई दिखाई पड़े तो उससे घृणा मत कीजिये और जहाँ तक हो सके सुधारने का प्रयत्न कीजिये। परदोष दर्शन के कारण जो घृणा और द्वेश मन में उत्पन्न होते हैं वह भीतर ही भीतर अशान्ति उत्पन्न करके मन को निश्चित पथ से डिगा देते हैं। साधना को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है कि किसी की गन्दगी टटोलकर अपनी नाक को दुर्गन्धित न किया जाय।
🔷 संकीर्णता - अपने मजहब, विचार या विश्वासों पर दृढ़ रहना उचित है। परन्तु दूसरों के विश्वासों को घृणा की दृष्टि से देखना या झूठा समझना अनुचित है। हम सब सत्य के आस-पास चक्कर काट रहे हैं किन्तु कोई पूर्ण सत्य तक नहीं पहुँच सका है। इसलिए हमें एक दूसरे के दृष्टिकोण को ध्यानपूर्वक देखना चाहिए। कट्टरता एक ऐसा दुर्गुण है जिसके कारण आदमी न तो अपनी बुराइयों को छोड़ सकता है और न अच्छाइयों को ग्रहण कर सकता है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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