■ कठिनाइयों से, प्रतिकूलताओं से घिरे होने पर भी जीवन का वास्तविक प्रयोजन समझने वाले व्यक्ति कभी निराश नहीं होते, वे हर प्रकार की परिस्थितियों में अपने लक्ष्य से ही प्रेरणा प्राप्त करते तथा श्रेष्ठता के पथ पर क्रमशः आगे बढ़ते जाते हैं।
□ श्रम की उपयोगिता निःसन्देह बहुत अधिक है। शारीरिक अङ्गो के परिचालन रक्त संचार में क्रिया- शीलता तथा पाचन संयत्रों को मजबूत बनाये रखने के लिये परिश्रम का बड़ा महत्त्व है। इसमें आलस्य करने से स्वास्थ्य गिरता है, शक्ति क्षीण होती है और स्फूर्ति चली जाती है। आलस्य और प्रमाद से शारीरिक शक्तियाँ शिथिल पड़ जाती हैं, मनोबन गिरता है और समाज का गौरव नष्ट हो जाता है। परिश्रम जीवन का प्रकाश है। जिससे मनुष्य सरलता पूर्वक अपनी विकास- यात्रा पूरी कर लेता है।
◆ धर्म मनोवैज्ञानिक दृष्टि से शरीर एवं मन को स्वस्थ बनाने का सशक्त माध्यम है। संयम नीति- मर्यादाओं के पालन एवं उच्चस्तरीय आदर्शों को अपनाने से मन स्वस्थ एवं प्रसन्न रहता है। फलस्वरूप उसका प्रभाव आरोग्य के रूप में दिखाई पड़ता है।
◇ मनुष्य अपनी उत्कृष्टता, योग्यता बढ़ाने के लिये प्रयत्नशील रहे। पराक्रम में कमी न आने दे। साथ ही यह भी ध्यान रखे कि सामाजिक परिस्थितियों तथा अदृश्य की गतिविधियाँ भी उसे प्रभावित करती हैं। सच तो यह है कि अदृश्य की हलचलें, कर्म- दीपक की तरह ही पृथ्वी के वातावरण तथा प्राणियों की स्थिति पर छाई रहती है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
□ श्रम की उपयोगिता निःसन्देह बहुत अधिक है। शारीरिक अङ्गो के परिचालन रक्त संचार में क्रिया- शीलता तथा पाचन संयत्रों को मजबूत बनाये रखने के लिये परिश्रम का बड़ा महत्त्व है। इसमें आलस्य करने से स्वास्थ्य गिरता है, शक्ति क्षीण होती है और स्फूर्ति चली जाती है। आलस्य और प्रमाद से शारीरिक शक्तियाँ शिथिल पड़ जाती हैं, मनोबन गिरता है और समाज का गौरव नष्ट हो जाता है। परिश्रम जीवन का प्रकाश है। जिससे मनुष्य सरलता पूर्वक अपनी विकास- यात्रा पूरी कर लेता है।
◆ धर्म मनोवैज्ञानिक दृष्टि से शरीर एवं मन को स्वस्थ बनाने का सशक्त माध्यम है। संयम नीति- मर्यादाओं के पालन एवं उच्चस्तरीय आदर्शों को अपनाने से मन स्वस्थ एवं प्रसन्न रहता है। फलस्वरूप उसका प्रभाव आरोग्य के रूप में दिखाई पड़ता है।
◇ मनुष्य अपनी उत्कृष्टता, योग्यता बढ़ाने के लिये प्रयत्नशील रहे। पराक्रम में कमी न आने दे। साथ ही यह भी ध्यान रखे कि सामाजिक परिस्थितियों तथा अदृश्य की गतिविधियाँ भी उसे प्रभावित करती हैं। सच तो यह है कि अदृश्य की हलचलें, कर्म- दीपक की तरह ही पृथ्वी के वातावरण तथा प्राणियों की स्थिति पर छाई रहती है।
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