गुरुवार, 2 जनवरी 2020

👉 जिसे आप नही पचा सकते हो उसे भला कोई और कैसे पचा पायेगा .....?

राजा अक्षय का राज्य बहुत सुन्दर, समृध्द और शांत था।  राजा महावीर और एक पराक्रमी योद्धा थे ! परन्तु सुरक्षा को लेकर अक्षय कुछ तनाव में रहते थे क्योंकि सूर्यास्त के बाद शत्रु अक्सर उनके राज्य पर घात लगाकर आक्रमण करते रहते थे परन्तु कभी किसी शत्रु को कोई विशेष सफलता न मिली क्योंकि उनका राज्य एक किले पर स्थित था और पहाडी की चढ़ाई नामुंकिन थी और कोई भी शत्रु दिन में विजय प्राप्त नही कर सकता था !

राज्य में प्रवेश के लिये केवल एक दरवाजा था और दरवाजे को बँद कर दे तो शत्रु लाख कोशिश के बावजूद भी अक्षय के राज्य का कुछ नही बिगाड़ सकते थे !
मंत्री राजकमल हमेशा उस दरवाजे को स्वयं बँद करते थे !

एकबार मंत्री और राजा रात के समय कुछ विशेष मंत्रणा कर रहे थे तभी शत्रुओं ने उन्हे बन्दी बनाकर कालकोठरी में डाल दिया !

कालकोठरी में राजा और मंत्री बातचीत कर रहे थे ......

अक्षय - क्या आपने अभेद्य दरवाजे को ठीक से बन्द नही किया था मंत्री जी ?

राजकमल - नही राजन मैंने स्वयं उस दरवाजे को बन्द किया था !

वार्तालाप चल ही रही थी की वहाँ शत्रु चंद्रेश अपनी रानी व उसके भाई के साथ वहाँ पहुँचा जब अक्षय ने उन्हे  देखा तो अक्षय के होश उड़ गये! और राजा अक्षय अपने गुरुदेव से मन ही मन क्षमा प्रार्थना करने लगे ! फिर शत्रु व उसकी रानी वहाँ से चले गये !

राजकमल - क्या हुआ राजन? किन विचारों में खो गये ?

अक्षय - ये मैं तुम्हे बाद में बताऊँगा पहले यहाँ से बाहर जाने की तैयारी करो !

राजकमल - पर इस अंधेर कालकोठरी से बाहर निकलना लगभग असम्भव है राजन !

अक्षय - आप उसकी चिन्ता न कीजिये कल सूर्योदय तक हम यहाँ से चले जायेंगे ! क्योंकि गुरुदेव ने भविष्य को ध्यान में रखते हुये कुछ विशेष तैयारियाँ करवाई थी !

कालकोठरी से एक गुप्त सुरंग थी जो सीधी राज्य के बाहर निकलती थी जिसकी पुरी जानकारी राजा के सिवा किसी को न थी और उनके गुरुदेव ने कुछ गहरी राजमय सुरंगों का निर्माण करवाया था और राजा को सख्त आदेश दिया था की इन सुरंगों का राज किसी को न देना, राजा रातोंरात वहाँ से निकलकर मित्र राष्ट्र में पहुँचे सैना बनाकर पुनः आक्रमण किया और पुनः अपने राज्य को पाने में सफल रहे।

परन्तु इस युध्द में उनकी प्रिय रानी, उनका पुत्र और आधी से ज्यादा जनता समाप्त हो चुकी थी! जहाँ चहुओर वैभव और समृद्धता थी राज्य शान्त था खुशहाली थी आज चारों तरफ सन्नाटा पसरा था मानो सबकुछ समाप्त हो चुका था!

राजकमल - हॆ राजन मॆरी अब भी ये समझ में नही आया की वो अभेद्य दरवाजा खुला कैसे? शत्रु ने प्रवेश कैसे कर लिया? जब की हमारा हर एक सैनिक पुरी तरह से वफादार है आखिर गलती किसने की ?

अक्षय - वो गलती मुझसे हुई थी मंत्रीजी! और इस तबाही के लिये मैं स्वयं को जिम्मेदार मानता हूँ यदि मैंने गुरू आदेश का उल्लंघन न किया होता तो आज ये तबाही न आती मॆरी एक गलती ने सबकुछ समाप्त कर दिया ..!

राजकमल - कैसी गलती राजन?

अक्षय - शत्रु की रानी का भाई जयपाल कभी मेरा बहुत गहरा मित्र हुआ करता था और उसके पिता अपनी पुत्री का विवाह मुझसे करना चाहते थे पर विधि को कुछ और स्वीकार था और फिर एक छोटे से जमीनी विवाद की वजह से वो मुझे अपना शत्रु मानने लगा! और इस राज्य में प्रवेश का एक और दरवाजा है जो गुरुदेव और मेरे सिवा कोई न जानता था और गुरुदेव ने मुझसे कहा था की शत्रु कब मित्र बन जाये और मित्र कब शत्रु, कोई नही जानता है इसलिये जिन्दगी में एक बात हमेशा याद रखना की जो राज तुम्हे बर्बाद कर सकता है उस राज को राज ही रहने देना कोई कितना भी घनिष्ठ क्यों न हो उसे भी वो राज कभी मत बताना जिसकी वजह से तुम्हारा पतन हो सकता है!

और बस यही पर मैंने वो गलती कर दी और वो राज उस मित्र को जा बताया जो शत्रु की रानी का भाई था! जो कभी मित्र था राजदार था वही आगे जाकर शत्रु हो गया इसीलिये आज ये हालात हो गये!

राजा राज्य को चारों तरफ से सुरक्षित करके मंत्री को सोप दिया और स्वयं वन को चले गये !

ऐसा कोई भी राज जो गोपनीय रखा जाना बहुत आवश्यक हो जिस राज के बेपर्दा होने पर किसी प्रकार का अमंगल हो सकता है सम्भवतः उसे घनिष्ठ से घनिष्ठ व्यक्ति को भी मत बताना क्योंकि काल के गर्भ में क्या छिपा कौन जाने? जिसे आप स्वयं राज नही रख सकते हो उसकी उम्मीद किसी और से क्यों करते हो की वो उस राज को राज बनाये रखेगा .......

आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलमय हो।

👉 अन्तराल के परिशोधन की प्रायश्चित प्रक्रिया (अन्तिम भाग)

आज की दुःखद परिस्थितियों के लिए भूतकाल की भूलों पर दृष्टिपात किया जा सकता है। इसी प्रकार सुखी समुन्नत होने के सम्बन्ध में भी पिछले प्रयासों को श्रेय दिया जा सकता है। इस पर्यवेक्षण का सीधा निष्कर्ष यही निकलता है कि अशुभ विगत को धैर्यपूर्वक सहन करें या फिर उसका प्रायश्चित करके परिशोधन की बात सोचें। शुभ पूर्वकृत्यों पर सन्तोष अनुभव करें और उस सत्प्रवृत्ति को आगे बढ़ाये। यह नीति निर्धारण की बात हुई। अब देखना यह है कि आधि-व्याधियों के रूप में अशुभ कर्मों की काली छाया सिर पर घिर गई है तो उसके निवारण का कोई उपाय है क्या?

जो कर्मफल पर विश्वास न करते हों, उन्हें भी मानवी अन्तःकरण की संरचना पर ध्यान देना चाहिए और समझना चाहिए कि वहाँ किसी के साथ कोई पक्षपात नहीं। पूजा प्रार्थना से भी दुष्कर्मों का प्रतिफल टलने वाला नहीं है। देव-दर्शन, तीर्थ-स्नान आदि से इतना ही हो सकता है कि भावनायें बदलें, भविष्य के दुष्कृत्यों की रोकथाम बन पड़े। अधिक बिगड़ने वाले भविष्य की सम्भावना रुके। पर जो किया जा चुका, उसका प्रतिफल सामने आना ही है। उसके उपचार के लिए शास्त्रीय परम्परा और मनःसंस्थान की संरचना को देखते हुए इसी निष्कर्ष पर पहुँचना होता है कि खोदी हुई खाई को पाटा जाय। प्रायश्चित के लिए भी वैसा ही साहस जुटाया जाय, जैसा कि दुष्कर्म करते समय मर्यादा उल्लंघन के लिए अपनाया गया था। यही एकमात्र उपचार हैं, जिससे दुष्कर्मों की उन दुःखद प्रक्रियाओं का समाधान हो सकता है, जो शारीरिक रोगों, मानसिक विक्षोभों, विग्रहों, विपत्तियों, प्रतिकूलताओं के रूप में सामने उपस्थित हो कर जीवन को दूभर बनाये दे रही हैं। यह विषाक्तता लदी ही रही, तो भविष्य के अन्धकारमय होने की भी आशंका है। अस्तु प्रायश्चित प्रक्रिया को अपनाकर वर्तमान भविष्य को और सुखद बनाना ही दूरदर्शिता है।

.....समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
(गुरुदेव के बिना पानी पिए लिखे हुए फोल्डर-पत्रक से)

👉 सम्भावनाओं की सुबह, संघर्षों के दिन

इक्कीसवीं सदी के इस नववर्ष ने देश और धरती को सम्भावनाओं की सुबह का अनूठा उपहार दिया है। इस नये वर्ष 2020 में सम्भावनाएँ हैं, भविष्य के नये उजाले की, नयी मुस्कराहटों की, नयी समृद्धि एवं खुशहाली की। लेकिन इन सम्भावनाओं को साकार करने में संघर्ष भी कम नहीं है। सुबह यदि सम्भावनाओं की है तो दिन संघर्षों का है। हाँ यह सच है कि नववर्ष की हर नयी सुबह-सम्भावनाओं के नये संदेश लायेगी, पर इन्हें साकार वही कर पायेंगे जो नये साल के हर दिन को अपने संघर्षों की चुनौती समझेंगे। यह सच व्यक्ति के जीवन का है तो परिवार के जीवन का भी। समाज, राष्ट्र और विश्व भी इससे अलग नहीं है।
  
नववर्ष के पटल पर उभर रहे दृश्यों की गहरी पड़ताल करें तो एक ही सच सब के लिए है कि प्रकृति एवं प्रवृत्ति में बढ़ रहे अंधाधुंध प्रदूषण को रोकना है। क्योंकि इसी ने उज्ज्वल भविष्य की सभी सम्भावनाओं को रोक रखा है। प्रकृति में असंतुलित प्रदूषण ने ही भूकम्प, बाढ़ जैसी विनाशकारी आपदाओं के भयावह दृश्य खड़े किये हैं। दिल-दहला देने वाली इन महा-आपदाओं से उपजी करुण-कराह की अनसुनी भला कौन कर सकता है? ठीक यही, बल्कि इससे भी कहीं ज्यादा तबाही इंसानी प्रवृत्तियों में आये प्रदूषण ने की है।
  
इंसान की अपनी ही प्रदूषित प्रवृत्तियाँ हैं जो रोज नये बम धमाके करती हैं। सामूहिक हत्या एवं खौफनाक संहार के विद्रूप आयोजन करती हैं। इंसानियत का संघर्ष इन्हीं से है। संवेदनशीलों को अपने अंदर बलिदानी साहस पैदा करना है। प्रकृति एवं प्रवृत्ति के इस विनाशकारी ताण्डव नर्तन को आज और अभी से रोकना है। अब यह न पूछें कि शुरुआत कहाँ से करनी है?
  
क्योंकि इसके जवाब में सारी ऊँगलियाँ हमारी अपनी ओर ही उठ रही हैं। व्यक्ति के रूप में हमें ही व्यक्तिगत शुरुआत करनी है। समाज के जिम्मेदार घटक के रूप में हमें ही इसके सामूहिक आयोजन करने हैं। यह जिम्मेदारी राष्ट्रीय भी है और विश्व भर की भी। स्वस्थ प्रकृति एवं स्वच्छ प्रवृत्ति को अपना ध्येय वाक्य माने बिना उज्ज्वल भविष्य की सम्भावनाएँ साकार नहीं होंगी। लेकिन इसे कर वही पायेंगे जो अपनी हर सुबह को सम्भावनाओं की सुबह और हर दिन को संघर्षों का दिन बना लेंगे।

✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १५०

👉 गायत्री का अवलम्बन परम श्रेयस्कर

गायत्री उपासना से मानव शरीर में सन्निहित अगणित संस्थानों में से कितने ही जाग्रत एवं प्रखर हो चलते हैं। इस जागृति का प्रभाव मनुष्य के व्यक्तित्व को समान रूप से विकसित होने में सहायक सिद्ध होता है।
  
व्यायाम से शरीर पुष्ट होता है, अध्ययन से विद्या आती है, श्रम करने से धन कमाया जाता है, सत्कर्मों से यश मिलता है। सद्गुणों से मित्र बढ़ते हैं। इसी प्रकार उपासना द्वारा अंतरंग जीवन में प्रसुप्त पड़ी हुई अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ सजग हो उठती हैं और उस जागृति का प्रकाश मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में एक विशिष्टता का रूप धारण करके प्रकट करता हुआ प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है। गायत्री उपासक में तेजस्विता की अभिवृद्धि स्वाभाविक है। तेजस्वी एवं मनस्वी व्यक्ति स्वभावतः हर दिशा में सहज सफलता प्राप्त करता चलता है।
  
मानवीय मस्तिष्क में जो शक्ति केन्द्र भरे पड़े हैं, उनका पूरी तरह उपयोग कर सकना तो दूर, अभी मनुष्य को उनका परिचय भी पूरी तरह नहीं मिला है। मनोवैज्ञानिकों को अंतर्मन की जितनी जानकारी अभी तक विशाल अनुसंधानों के बाद मिल सकी है, उसे वे दो प्रतिशत जानकारी मानते हैं। इसी प्रकार शरीर शास्त्री डॉक्टरों ने बाहरी मस्तिष्क का केवल आठ प्रतिशत ज्ञान प्राप्त किया है शेष के बारे में वे अभी भी अनजान हैं। मस्तिष्क सचमुच एक जादू का पिटारा है। इसमें सोचने समझने की क्षमता तो है ही, साथ ही उसमें ऐसे चुम्बक तत्त्व भी हैं, जो अनंत आकाश में भ्रमण करने वाली अद्भुत सिद्धियों, विभूतियों एवं सफलताओं को अपनी ओर खींचकर आकर्षित कर सकते हैं, सूक्ष्म जगत् में अपने अनुकूल वातावरण बना सकते हैं। मनोबल बढ़ने से ऐसी विद्युत धारा अंतर्मन के प्रसुप्त क्षेत्रों में गतिशील हो जाती है कि अब तक अपने प्रयोजन में आया हुआ मस्तिष्कीय चुम्बक सक्रिय हो उठता है और वे उपलब्धियाँ सामने लाकर खड़ी कर देता है, जिन्हें आमतौर से सिद्धियाँ, विभूतियों का वरदान एवं दैवीय सहायता कहा जा सके।
  
उपासना में बरती गई तपश्चर्या से द्रवित होकर गायत्री माता ने अमुक सिद्धि या सफलता प्रदान की। यह भावुक भक्त का दृष्टिकोण है। इसी तथ्य का वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह है कि कठोर नियम, प्रतिबंधों का पालन करने में जो प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ी, उसने मनोबल का विकास किया। उसने अंतर्मन के प्रसुप्त शक्ति केन्द्रों का चुम्बकत्व जगाया और उसी जागरण ने अभीष्ट सफलताएँ खींचकर सामने ला खड़ी कर दीं। मनुष्य अपने आप में एक देवता है। उसके भीतर वे समस्त दैवी शक्तियाँ बीज रूप में विद्यमान रहती हैं, जो इस विश्व में अन्यत्र कहीं भी हो सकती हैं। अन्यत्र रहने वाले देवता अपनी निर्धारित जिम्मेदारियाँ पूरी करने में लगे रहते हैं। वे हमारे व्यक्तिगत कामों में इतनी अधिक दिलचस्पी नहीं ले सकते कि अगणित उपासकों या भक्तों की अगणित प्रकार की समस्याओं के सुलझाने में सहयोगी हो सकें। हमारी समस्याओं को हल करने की क्षमता हमारे अपने भीतर रहने वाले देवता में ही होती है और उसी को किसी अनुष्ठान द्वारा सशक्त एवं गतिशील बना करके साधक को अपना प्रयोजन वस्तुतः आप ही पूरा करना पड़ता है।
  
गायत्री उपासना मनुष्य जीवन को बहिरंग एवं अंतरंग दोनों ही दृष्टियों से समृद्ध और समुन्नत बनाने का राजमार्ग है। बाह्य उपचार से बाह्य जीवन की प्रगति होती है, पर अंतरंग विकास के बिना उसमें पूर्णता नहीं आ पाती। बाहरी जीवन की विशेषताएँ छोटा सा शोक, संताप, रोग, कष्ट अवरोध एवं दुर्दिन सामने आते ही अस्त-व्यस्त हो जाती है, पर जिस व्यक्ति के पास आंतरिक दृढ़ता, समृद्धि एवं क्षमता है, वह बाहर के जीवन में बड़े से बड़ा अवरोध आने पर भी सुस्थिर बना रहता है और भयानक भँवरों को चीरता हुआ अपनी नाव पार ले जाता है। भौतिक समृद्धि और आत्मिक शांति के लिए उपासना की वैज्ञानिक प्रक्रिया अचूक साधना है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform > 👉 शांतिकुंज हरिद्वार के प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए Youtube Channel `S...