सोमवार, 2 सितंबर 2019

👉 आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग ६०)

👉 अति विलक्षण स्वाध्याय चिकित्सा
स्वाध्याय चिकित्सा की उपयोगिता असाधारण है। इसके द्वारा पहले मन स्वस्थ होता है, फिर जीवन। चिकित्सा के सिद्धान्त एवं प्रयोगों के जो विशेषज्ञ हैं, उन सबका यही कहना है कि रोगी मन ही जीवन को रोगी बनाता है। यदि किसी तरह से मन को निरोग कर लिया जाय तो जीवन निरोग हो सकता है। बात सही भी है यदि हमारे सोच- विचार का तंत्र ही दूषित है तो उसके प्रभाव शारीरिक रोगों एवं व्यावहारिक गड़बड़ियों के रूप में क्यों न उभरेंगे। मानसिक आरोग्य की ओर ध्यान दिए बगैर शरीर को स्वस्थ करने की सोचना, या व्यावहारिक दोषों को ठीक करना, कुछ वैसा ही है, जैसे पत्तों को काटकर पेड़ की जड़ों को सींचते रहना। जब तक पेड़ की जड़ों को खाद- पानी मिलता रहेगा, पत्ते अपने आप ही हरे होते रहेंगे। इसी तरह से जब तक सोच- विचार के तंत्र में विकृति बनी रहेगी, शारीरिक व व्यावहारिक परेशानियाँ बनी रहेंगी।

सोच- विचार या बोध के तंत्र को निरोग करने की सार्थक प्रक्रिया स्वाध्याय से बढ़कर और कुछ नहीं है। लेकिन स्वाध्याय के इस गहरे अर्थ व प्रभाव से ज्यादातर लोग अपरिचित हैं। कुछ लोग तो स्वाध्याय को अध्ययन का पर्याय मान बैठते हैं। वे चाहे कुछ भी क्यों न पढ़ें उसे स्वाध्याय की संज्ञा देते हैं। जबकि इस तरह की पढ़ाई को मात्र अध्ययन कहा जा सकता है स्वाध्याय नहीं। अध्ययन केवल बौद्धिक विकास तक सीमित है, जबकि स्वाध्याय अपने बोध को संवारने की प्रक्रिया है। विशेषज्ञ हमारे बोध के दो आयाम बताते हैं। इनमें से पहला है बाह्य बोध या इन्द्रियों की सहायता से होने वाला बोध। दूसरा है आन्तरिक बोध यानि बौद्धिक विवेचन, विश्लेषण एवं आन्तरिक अनुभूतियों से होने वाला ज्ञान।

बोध के ये दोनों आयाम परस्पर गहरे में गुंथे हैं। जो इन्द्रियाँ अनुभव करती हैं, बुद्धि उस पर विचार किए बिना नहीं रहती। इसी तरह से हमारी आन्तरिक सोच में जो विचार, भावनाएँ, विश्वास, आस्थाएँ, अपेक्षाएँ व आग्रह समाए रहते हैं, वे इन्द्रिय अनुभूतियों को अपने रंग में रंगे बिना नहीं रहते। कहावत भी है जैसी दृष्टि- वैसी सृष्टि। यदि दृष्टिकोण को स्वस्थ बना लिया जाय तो जीवन के सभी आयाम अपने आप ही स्वस्थ हो जाते हैं। और स्वाध्याय इसी दृष्टिकोण की चिकित्सा करता है। स्वाध्याय को यदि अंग्रेजी भाषा में कहें तो ‘सेल्फ स्टडी’ न होकर ‘स्टडी ऑफ सेल्फ’ होगा। दरअसल यह स्वयं के सूक्ष्म अध्ययन की विधि है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ ८३

👉 आज का सद्चिन्तन Today Thought 2 Sep 2019




👉 प्रेरणादायक प्रसंग Prerak Prasang 2 Sep 2019


कर्मों से मुक्ति नहीं मिलती Karmo Se Mukti Nahin Milti | Dr Chinmay Pandya



Title

ज्ञान सम्पदा | Gayan_Sampda | Pt Shriram Sharma Acharya



Title

👉 गणेश चतुर्थी की मंगलकामनाएं।

गणपति जी से ग्रहण करने वाली जीवन शिक्षा -

1- विशाल मस्‍तक - जो हमें सिखाता है लीक से हट कर कुछ अलग सोचना और नया करना चाहिए।

2-विशाल आखें - ये बताती है जो दिख रहा उसके परे सत्‍य को देखना चाहिए। यानि सच केवल वो ही नहीं होता जो आंखों के सामने दिखता है।

3-  विशाल कान - ये कहते हैं कि सबकी सुनो और उसे समझो और हमेशा सर्तक रह कर हर धीमी से धीमी आवाज पर भी ध्‍यान दो। कोई भी बात आधी या अनसुनी मत रहने दो। -

4- टूटा दांत - त्‍याग ही सबसे बड़ी बुद्धिमत्‍ता है ये सिखाते हैं एकदंत।

5- कुल्‍हाड़ी - ये इस बात की प्रतीक है कि हमें भौतिकता से जुड़े हर बंधन को काटना होगा, तभी ईश्‍वर की प्राप्‍ति होगी।

6-  लड्डू - गणपति को मोदक प्रिय हैं जो ये कहते हैं कि परिश्रम का फल ही मीठा होता है।

7- विशाल उदर - ये हमें हर परस्‍थिति में अच्‍छे बुरे को पचाने और उचित आचरण करने की शिक्षा देता है।

8- मूषक - गणपति का वाहन मूषक इस बात का प्रतीक है कि वे हमारे मस्‍तिष्‍क के कोने कोने में पल रही हर अच्‍छी बुरी बात को जानते हैं इसलिए सोच हमेशा पवित्र होनी चाहिए।

गणराया तुझ्या येण्याने सुख, समृध्दी, शांती, आरोग्य लाभले सर्व संकटाचे निवारण झाले तुझ्या आशिर्वादाने यश लाभले असाच आशीर्वाद राहू दे…
गणेशचतुर्थीच्या हार्दिक शुभेच्छा !

May Lord Ganesha bless you with Wisdom, Happiness and Joy in your life.

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...