बुधवार, 31 जुलाई 2024

👉 उपासना, साधना व आराधना (भाग 5)

🔸 अगर आपका मन संसार की ओर अधिक लगा हुआ है, तो आप आध्यात्मिकता की ओर कैसे बढ़ पाएँगे? फिर आपका मन पूजा- उपासना में कैसे लगेगा? आप इस दिशा में आगे कैसे बढ़ेंगे? गोली चलाने वाला अगर निशाना न साधे, तो उसका काम कैसे चलेगा? वह कभी इधर को भटके, कभी उधर को भटके, तो उससे निशाना कैसे साधा जाएगा? बीस जगह ध्यान रहा, तो आप विजेता नहीं बन सकते हैं। भगवान् आपको अपनाने के लिए हाथ बढ़ा रहा है, परन्तु ये तीन हथकड़ियाँ वासना, तृष्णा एवं अहंता आपको भगवान् तक पहुँचने में रुकावट पैदा कर रही हैं। आपको इनसे लोहा लेना होगा। आप अगर अपने हाथों को नहीं खोलेंगे, तो भगवान् की गोद में आप कैसे जाएँगे?

🔹 मित्रो, साधना में आपको अपने मन को समझाना होगा। अगर मन नहीं मानता है, तो आपको उसकी पिटाई करनी होगी। बैल जब खेतों में हल नहीं खींचता है तथा घोड़ा जब रास्ते पर चलने अथवा दौड़ने को तैयार नहीं होता है, तो उसकी पिटाई करनी पड़ती है। हमने अपने आपको इतना पीटा है कि उसका कहना नहीं। हमने अपने आपको इतना धुलने का प्रयास किया है कि उसे हम कह नहीं सकते। इस प्रकार धुलाने के कारण हम फकाफक कपड़े के तरीके से आज धुले हुए उज्ज्वल हो गये। हमने अपने आपको रूई की तरह से धुनने का प्रयास किया है, जो धुनने के पश्चात् फूलकर इतनी स्वच्छ और मोटी हो जाती है कि उससे नयी चीज का निर्माण होता है।

🔸 भगवान् का भजन करने एवं नाम लेने के लिए अपना सुधार करना परम आवश्यक है। वाल्मीकि ने जब यह काम किया, तो भगवान् के परमप्रिय भक्त हो गये। उनकी वाणी में एक ताकत आ गयी। उसने डकैती छोड़ दी, उसके बाद भगवान् का नाम लिया, तो काम बन गया। कहने का मतलब यह है कि आप अपने आपको धोकर इतना निर्मल बना लें कि भगवान् आपको मजबूर होकर प्यार करने लग जाए। राम नाम के महत्त्व से ज्यादा आपकी जीभ का महत्त्व है। आप जीभ पर कंट्रोल रखिए, तब ही काम बनेगा। जीभ पर काबू रखें, आप ईमानदारी की कमाई खाएँ, बेईमानी की कमाई न खाएँ।

> 👉 अमृतवाणी:- पूजा उपासना के मर्म | Puja Upashan Ke Marm https://youtu.be/6npDP9lYPGo?si=zY7vwCwdh-xByz2u

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🔹 हमने अपनी जीभ को साफ किया है। उसे इस लायक बनाया है कि गुरु का नाम लेकर जो भी वरदान देते हैं, वह सफल हो जाता है। आप भी जीभ को ठीक कीजिए न! आप अपने आपको सही करें। अपने जीवन में सादा जीवन उच्च विचार लाएँ। इस सिद्धान्त को जीवन का अंग बनाने से ही काम बनेगा। आपको खाने के लिए दो मुट्ठी अनाज और तन ढँकने के लिए थोड़ा- सा कपड़ा चाहिए, जो इस शरीर के द्वारा आप सहज ही पूरा कर सकते हैं। फिर आप अपने जीवन को शुद्ध एवं पवित्र क्यों नहीं बनाते। अगर यह काम करेंगे, तो आप भगवान् की गोदी के हकदार हो जाएँगे। ऐसा बनकर आदमी बहुत कुछ काम कर सकता है।

..... क्रमशः जारी
✍🏻 पूज्य पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी

http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Lectures/112

👉 साधक के समक्ष पाँच महा बाधायें

एक नगर मे एक महान सन्त साधकों को अतिसुन्दर कथा-अमृत पिला रहे थे वो साधना के सन्दर्भ मे अति महत्तवपूर्ण जानकारी दे रहे थे। सन्त श्री कह रहे थे की साधना-पथ पर साधक के सामने पंच महाबाधाये आती है और साधक वही जो हर पल सावधानी से साधना-पथ पर चले!

1. पहली बाधा - नियमभंग की बाधा:-

जब भी आप ईष्ट के प्रति कोई नियम लोगे तो संसार आपके उस नियम को येनकेन प्रकारेण खंडित करने का प्रयास करेगा!
जैसे किसी ने नियम लिया की वो एकादशी को कुछ भी नही खायेगा तो फिर कई व्यक्ति कहेंगे की अरे इतना सा तो खालो, फल तो खालो फिर उसके सामने कुछ न कुछ लाकर जरूर रखेंगे और उसे खाने पर विवश कर देंगे!

इसलिये इससे बचने के लिये आप गोपनीयता रखो मूरखों की तरह व्यर्थ प्रदर्शन न करो माला को गोमुखी मे जपो साधना का प्रदर्शन मत करो की मैंने इतना जप किया! जब कोई अपना जीवन नियम से जीता है और जिस दिन उसका नियम टूटता है तो व्याकुलता बढ़ती है और यही व्याकुलता हमें ईश्वर की और ले जाती है!

2. दुसरी बाधा है बाह्यय लोगो से विरोध:-

इससे बचने के लिये मदमस्त हाथी की तरह चलना सब की भली बुरी सुनते हुये चलना कोई कटाक्ष करे तो इस कान से सुनकर उस कान से निकाल देना व्यर्थ के प्रपंच से बचते हुये बिल्कुल अर्जुन की तरह एकाग्रचित्त होकर चलना!

3. तीसरी बाधा है साधु सन्तों द्वारा कसौटी परख:-

आपके सामने नाना प्रकार के प्रलोभन आयेंगे सिद्धियों का प्रलोभन आयेगा पर आप वैभव और सुख सुविधा का त्याग करते हुये आगे बढ़ना! जैसे आपने एक वर्ष का एक व्रत रखा और कहा की एक वर्ष तक अमुख दिन नमकीन और मीठा न खाऊंगा तो उस दिन तुम्हारे सामने नमकीन और मीठा जरूर आयेगा अब वहा जिह्वा की परीक्षा होगी इस प्रकार कई तरह की परीक्षाओ से गुजरना पड़ेगा!
इससे बचने के लिये आप त्यागी बन जाना!

4. चौथी बाधा है देवताओं द्वारा राह अवरोधन:-

जब भी किसी की साधना बढ़ती है उसका प्रभाव बढ़ता है तो देवता उसकी राह मे बड़ी बाधा उत्पन्न करते है!
कामदेव की पुरी सैना पुरी शक्ति लगा देती है जैसे विशवामित्र जी का तप भंग नारद जी को अहंकार से घायल करना इससे बचने के लिये अपनी सम्पुर्ण आसक्ति और प्रीति ईष्ट के चरणों मे रखना जब ईष्ट के चरणों मे प्रीति होगी तो देवताओं की प्रतिकूलता भी अनुकुलता मे बदल जायेगी!

सद्गुरु का सानिध्य, समर्थ सच्चे सन्त का माथे पर हाथ, ईष्ट मे एकनिष्ठ एवं सच्ची प्रीति और अविरल निष्काम सात्विक साधना से देवताओं की प्रतिकूलताओं को अनुकुलता मे बदला जा सकता है!

> 👉 *अमृतवाणी:- साधक कैसे बनें? | Amritvanni Sadhak Kaise Banen* 

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5. पाँचवी बाधा है अपनो का विरोध:-

गैरों की तो छोड़ो अपने भी विरोधी हो जाते है अपने ही शत्रु बन जाते है और इससे बचने के लिये आप इस सत्य को सदा याद रखना की हरी के सिवा यहाँ हमारा कोई नही है! सारा जगत है एक झूठा सपना और केवल हरी ही है हमारा अपना! और जब इस पाँचवी बाधा को भी साधक पार कर लेता है तो फिर साधक अपने ईष्ट मे समा जाता है फिर उसे संसार की नही केवल सार की परवाह रहती है!

इन बाधाओं से जब सामना हो तो घबराना मत बस अटूट प्रीति रखना ईष्ट मे और बुद्धि की रक्षा करना!

बुद्धि कई प्रकार की है पर जो बुद्धि परमतत्व से मिला दे वही सार्थक है बुद्धि ऊपर की ओर ले जाती है और श्रद्धा भीतर की ओर, इसलिये बुद्धि से श्रद्धा की ओर बढ़ो!

इष्टदेव के प्रति अटूट सार्थक नियम से प्रेम का जन्म होगा प्रेम से ईष्टदेव के श्री चरणों मे प्रीति बढेगी और जब प्रीति बढेगी तो श्रद्धा का जन्म होगा और जब श्रद्धा का जन्म होगा तो जीवन मे सच्चे सन्त का आगमन होगा और जब जीवन मे सच्चे सन्त सद्गुरु का आगमन होगा तो फिर ईश्वर के मिलने मे समय न लगेगा!

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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