बुधवार, 20 नवंबर 2019

👉 निर्माण से पूर्व सुधार की सोचें (भाग ५)

कुरीतियों की दृष्टि से यों अपना समाज भी अछूता नहीं हैं, पर अपना देश तो इसके लिए संसार भर में बदनाम है। विवाह योग्य लड़के लड़कियों के उपयुक्त जोड़ों का विवाह कर दिया जाय और सार्वजनिक घोषणा के रूप में उनका पंजीकरण करा देना या घरेलू त्यौहार जैसा कोई हलका सा हर्षोत्सव कर देना यही औचित्य की मर्यादा है। पर अपने यहाँ उसे युद्ध जीतने या पहाड़ उठाने जैसा बना लिया गया है। उस धमाल में पैसों की, समय की जितनी बर्बादी होती है उसका हिसाब लगाने पर प्रतीत होता है कि आजीविका का एक तिहाई अंश इसी कुप्रचलन में होली की तरह जल जाता है। खर्चीली शादियाँ हमें किस तरह दरिद्र और बेईमान बनाती हैं। कितने ही परिवारों की सुख शान्ति और प्रगति किस प्रकार इस नरभक्षी पिशाचिनी की बलिवेदी पर नष्ट होती है इसे अधिकाँश लोग समझते भी हैं और कोसते भी हैं। फिर भी आश्चर्य यह है कि छोड़ते किसी से नहीं बनता। इसे कुरीतियों का माया जाल ही कहना चाहिए जो तोड़ने का दम−खम करने वालों को भी अपने शिकंजे से छूटने नहीं देता।

जाति-पाँति के नाम पर प्रचलित ऊँच-नीच की मान्यता के पीछे न कोई तर्क है न तथ्य, न प्रमाण, न कारण। फिर भी अपने समाज में ब्राह्मण-ब्राह्मण के, ठाकुर-ठाकुर के, अछूत-अछूत के बीच जो ऊँच-नीच का भेद-भाव चलता है उसे देखते हुए लगता है कि यह सवर्ण-असवर्ण के मध्य चलने वाला विग्रह नहीं है, वरन् हर बिरादरी वाले अपनी ही उपजातियों में ऊँच-नीच का भेद बरतते-बरतते इस प्रकार बँट गये हैं मानो उनका कोई एक देश, धर्म, समाज या संस्कृति रह ही नहीं गई हो। इस दुर्विपाक से सभी परिचित हैं, सभी दुःखी हैं, सभी विरुद्ध हैं। फिर भी कुरीतियों का कुचक्र तो देखिये कि बरताव में सुधारक भी पिछड़े लोगों की तरह ही आचरण करते हैं।

नर-नारी के बीच बरता जाने वाला भेदभाव कुरीतियों की दृष्टि से और भी घिनौना है। इसने पर्दे के प्रतिबन्ध में आये जन समुदाय को दूसरे दर्जे के नागरिक की, नजरबन्द कैदी की स्थिति में ले जाकर पटक दिया है। नारी आज की स्थिति में देश की अर्थ व्यवस्था में, सामाजिक प्रगति में कुछ योगदान दे सकने की स्थिति में रही ही नहीं। अशिक्षा, उपेक्षा, अयोग्यता, पराधीनता, अस्वस्थता के बन्धनों में जकड़ी हुई, अन्धाधुन्ध प्रजनन के प्राण घातक भार के अत्याचार से लदी हुई नारी अपने आपके लिए, नर समुदाय के लिए, समूचे समाज के लिए भारभूत बनकर रह रही है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 क्या तुम मनुष्य हो?

क्या तुम मुनष्य हो? इस अटपटे सवाल के बारे में यही कहना है कि प्रेम तुममें जितना गहरा है, तुम उतने ही श्रेष्ठ मनुष्य हो। इसके विपरीत तुममें साधन-सम्पत्ति का लोभ जितना ज्यादा है, मनुष्य के रूप में तुम उतने ही निम्न हो। प्रेम और परिग्रह जिन्दगी की दो दिशाएँ हैं। हृदय प्रेम से भरा हो, तो परिग्रह शून्य हो जाता है। और जिनका चित्त लोभ और परिग्रह से घिरा है, वहाँ प्रेम शून्य होता है।
  
एक महारानी ने अपने मौत के बाद अपनी कब्र के पत्थर पर निम्न पंक्तियाँ लिखने का हुक्म दिया था- ‘इस कब्र में अपार धनराशि गड़ी हुई है। जो व्यक्ति निहायत गरीब एवं एकदम असहाय हो, वह इसे खोदकर ले सकता है।’ उस कब्र के पास से हजारों दरिद्र एवं भिखमंगे निकले, लेकिन उनमें से कोई भी इतना दरिद्र एवं असहाय नहीं था जो धन के लिए मरे हुए व्यक्ति की कब्र खोदे। एक अत्यन्त बूढ़ा भिखमंगा तो वहाँ सालों-साल से रह रहा था। वह हमेशा उधर से गुजरने वाले प्रत्येक दरिद्र व्यक्ति को कब्र की ओर इशारा कर देता था।
  
हालांकि आखिर में वह व्यक्ति भी आ ही गया, जिसकी दरिद्रता इतनी ज्यादा थी कि उसने उस कब्र को खोद ही डाला। आप जानना चाहेंगे कि वह व्यक्ति कौन था? तो सुनिए वह स्वयं एक सम्राट था। और उसने इस कब्र वाले देश को बस अभी-अभी जीता था। उसने अपनी विजय के साथ इस कब्र की खुदाई शुरू करवा दी। पर उसे इस कब्र में एक पत्थर के सिवा और कुछ नहीं मिला। इस पत्थर पर लिखा हुआ था, ‘मित्र, तू अपने से पूछ, क्या तू मनुष्य है। क्योंकि धन के लिए कब्र में सोए हुए मुरदों को परेशान करने वाला मनुष्य हो ही नहीं सकता।’
  
वह सम्राट जब निराश होकर उस कब्र के पास से वापस लौट रहा था, तो उस कब्र के पास रहने वाले बूढ़े भिखमंगे को लोगों ने खूब जोर से हँसते हुए देखा। वह हँसते हुए कह रहा था ‘मैं कितने सालों से इन्तजार कर रहा था, आखिरकार आज धरती के दरिद्रतम निर्धन और सबसे ज्यादा असहाय व्यक्ति का दर्शन हो ही गया।’ सच में प्रेम विहीन व्यक्ति से बड़ा दरिद्र और दीन-दुःखी और कोई हो ही नहीं सकता। जो प्रेम के अलावा किसी और सम्पदा की खोज में लगा रहता है, एक दिन वही सम्पदा उससे सवाल करती है- क्या तुम मनुष्य हो?

✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १२७

👉 Gayatri Sadhna truth and distortions (Part 8)

Q.10. What is the relationship between Gayatri Mantra and other powers of God?

Ans. According to Savitri Upnishad, from the eternal omnipotence of God represented by Om, seven streams of divine power, known as Vyahritis, emanate. Three amongst these (Bhur , Bhuwaha and Swaha) form the prefix of Gayatri Mantra. The Vyahritis are also known as the ‘Sheersha’ (fountainhead) of Gayatri.

When Gayatri- the Primordial Power of the Divine, with Its totality of energy systems, interacts with the five basic elements of material universe (Panch Bhautik Prakriti - Savitri), complex, mysterious reactions are set into motion. Spirituality identifies these five basic elements (of which the entire material universe in its of solid, liquid and gaseous states and physical bodies of animate systems are composed) as Prithvi, Jal, Vayu, Tej and Akash. In course of interaction of the cosmic energies with these basic elements subtle sound waves similar to those produced by twenty-four letters of Gayatri Mantra are created.
In the course of thousands of years of research, Indian spiritual masters and yogis have evolved procedures for accessing divine energy by “tuning” into these cosmic sound waves by chanting of Gayatri Mantra, performance of Yagya and other associated procedures of Gayatri Sadhana.
(Also please see the answer to Q.No. 8)

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Gayatri Sadhna truth and distortions Page 23

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...