🔶 उत्तरदायित्वों की जो बोझ मानकर उपेक्षा करता है। उस अच्छे परिणामों से वंचित रह जाना पड़ता है। प्रत्येक मानव की आजीविका कमाने में शर्म, संकोच का भाव नहीं रखना चाहिये। आत्म-निर्भरता तो जीवनोत्कर्ष के पथ पर अग्रसर करती है। परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाने का अद्भुत गुण मनुष्य में है। इसलिये अपने प्रत्येक कार्य की पूरी शक्ति से करना चाहिये। प्रत्येक कार्य ईश्वर का है, अतः उसे आत्म समर्पित भाव से करना चाहिये। कार्य में सद्भावना का प्रभाव उज्ज्वल चरित्र निर्माण के विकास के लिये होता है। कार्य करने का सौंदर्य, रुचिकर ढंग सफलता की निशानी है। कार्य की श्रेष्ठता में जीवन की श्रेष्ठता निहित है।
🔷 आत्म-विश्वास और परिश्रम के बल पर जीवन को सार्थकता प्रदान की जा सकती है। भाग्य का निर्माणकर्ता मनुष्य स्वयं है। ईश्वर निर्णयकर्ता और नियामक है। मनुष्य परिश्रम से चाहे तो अपने भाग्य की रेखाओं को बना सकता है-परिवर्तित कर सकता है। हैनरी स्ल्यूस्टर कहता है कि-“जिसे हम भाग्य की कृपा समझते हैं, वह और कुछ नहीं। वास्तव में हमारी सूझ-बूझ और कठिन परिश्रम का फल है।” विश्वास रखें परिश्रम और आत्मविश्वास एक दूसरे के बिना अधूरे है। दोनों मिलकर के ही लक्ष्य तक पहुँचने में समर्थ हो पाते हैं। संकल्प करें-बाधाओं को हमेशा हँस-हँस स्वीकार करना है। डर कर मार्ग से हटाना नहीं है। लक्ष्य विहीन नहीं होना है। हमेशा गतिमान रहना हैं-गतिहीन नहीं होना है।
🔶 परिश्रम और सफलता की आशा करते हुए हमें लक्ष्य प्राप्ति के बीच आने वाले दुष्परिणामों को भी सामान्य करने का साहस करना चाहिये। “सर्वश्रेष्ठ के लिये प्रयत्न कीजिये मगर निकृष्टतम के लिये तैयार रहिये।” अँग्रेजी की यह कहावत बड़ी सार्थक है। हैनरी फोर्ड से एक व्यक्ति ने उनकी सफलता का रहस्य पूछा, तो उन्होंने कहा, “सफलता का सबसे पहला रहस्य है, हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना।
🔷 आत्म-विश्वास और परिश्रम के बल पर जीवन को सार्थकता प्रदान की जा सकती है। भाग्य का निर्माणकर्ता मनुष्य स्वयं है। ईश्वर निर्णयकर्ता और नियामक है। मनुष्य परिश्रम से चाहे तो अपने भाग्य की रेखाओं को बना सकता है-परिवर्तित कर सकता है। हैनरी स्ल्यूस्टर कहता है कि-“जिसे हम भाग्य की कृपा समझते हैं, वह और कुछ नहीं। वास्तव में हमारी सूझ-बूझ और कठिन परिश्रम का फल है।” विश्वास रखें परिश्रम और आत्मविश्वास एक दूसरे के बिना अधूरे है। दोनों मिलकर के ही लक्ष्य तक पहुँचने में समर्थ हो पाते हैं। संकल्प करें-बाधाओं को हमेशा हँस-हँस स्वीकार करना है। डर कर मार्ग से हटाना नहीं है। लक्ष्य विहीन नहीं होना है। हमेशा गतिमान रहना हैं-गतिहीन नहीं होना है।
🔶 परिश्रम और सफलता की आशा करते हुए हमें लक्ष्य प्राप्ति के बीच आने वाले दुष्परिणामों को भी सामान्य करने का साहस करना चाहिये। “सर्वश्रेष्ठ के लिये प्रयत्न कीजिये मगर निकृष्टतम के लिये तैयार रहिये।” अँग्रेजी की यह कहावत बड़ी सार्थक है। हैनरी फोर्ड से एक व्यक्ति ने उनकी सफलता का रहस्य पूछा, तो उन्होंने कहा, “सफलता का सबसे पहला रहस्य है, हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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