★ भाग्य और भविष्य परमात्मा की जबर्दस्त शक्तियाँ हैं। मनुष्य की शक्ति इनके आगे छोटी है, पर वह अपने विवेक से यह निर्णय अवश्य ले सकता है कि उसका जन्म किसलिए हुआ है और वह ईश्वरीय विधान में किस हद तक सहायक हो सकता है। यदि वह इसके लिए तैयार हो सके तो इसी जीवन में अनेक आध्यात्मिक शक्तियों का विकास करता हुआ प्रत्येक व्यक्ति आत्म कल्याण का पथ प्रशस्त कर सकता है।
◆ अच्छाई के विकास में चिन्ता, दुःख और भय भी हमारे सामने आयें तो भी उनके सुखप्रद परिणाम की आशा से हमें उस प्रक्रिया को बंद नहीं कर देना चाहिए। सरल, शुद्ध और सहन करने योग्य दुःखों ने सदैव आत्मा को बलवान् ही बनाया है-उसे ईश्वरीय दिव्य शक्तियों की अनुभूति ही कराई है। यदि ये दुःख,चिन्ता,भय,आदि अवरोध प्रेम, दया, कृतज्ञता और विश्वास का अंत करते हों तब हमें एक वीर योद्धा की भाँति उनका सामना भी करना चाहिए।
◇ सत्य की उपेक्षा और प्रेम की अवहेलना करके छल, कपट और दम्भ के बल पर कोई कितना ही बड़ा क्यों न बन जाये, किन्तु उसका वह बड़प्पन एक विडम्बना के अतिरिक्त और कुछ भी न होगा।
★ हर मनुष्य के जीवन में अवसर आता है, किन्तु एक बार निराश होने पर दुबारा नहीं आता है। किसी भी अवसर से यह आशा करना मृग मरीचिका के तुल्य है कि वह आपका द्वार दुबारा खटखटायेगा। बुद्धिमान् लोग अवसर को आगे से आलिंगन करते हैं, घेरते हैं और पकड़ते हैं, क्योंकि इसके दुम नहीं होती जो आगे बढ़ जाने पर पकड़ी जा सके।
◆ हमें यह भ्रम निकाल ही देना चाहिए कि बेईमानी कुछ कमा सकती है। वह शराब की तरह उत्तेजना मात्र है, जिससे ठगने वाला और ठगा जाने वाला बुद्धिभ्रम में ग्रस्त हो जाते हैं। नशा उतरने पर नशेबाज की जो खस्ता हालत होती है वही पोल खुलने पर बेईमानी की होती है। उसका न कारोबार रहता है, न कोई ग्राहक, सहयोगी। अतएव हमें इस कंटकाकीर्ण पगडण्डी पर चलने की अपेक्षा ईमानदारी के राजमार्ग पर ही चलना चाहिए।
◆ अच्छाई के विकास में चिन्ता, दुःख और भय भी हमारे सामने आयें तो भी उनके सुखप्रद परिणाम की आशा से हमें उस प्रक्रिया को बंद नहीं कर देना चाहिए। सरल, शुद्ध और सहन करने योग्य दुःखों ने सदैव आत्मा को बलवान् ही बनाया है-उसे ईश्वरीय दिव्य शक्तियों की अनुभूति ही कराई है। यदि ये दुःख,चिन्ता,भय,आदि अवरोध प्रेम, दया, कृतज्ञता और विश्वास का अंत करते हों तब हमें एक वीर योद्धा की भाँति उनका सामना भी करना चाहिए।
◇ सत्य की उपेक्षा और प्रेम की अवहेलना करके छल, कपट और दम्भ के बल पर कोई कितना ही बड़ा क्यों न बन जाये, किन्तु उसका वह बड़प्पन एक विडम्बना के अतिरिक्त और कुछ भी न होगा।
★ हर मनुष्य के जीवन में अवसर आता है, किन्तु एक बार निराश होने पर दुबारा नहीं आता है। किसी भी अवसर से यह आशा करना मृग मरीचिका के तुल्य है कि वह आपका द्वार दुबारा खटखटायेगा। बुद्धिमान् लोग अवसर को आगे से आलिंगन करते हैं, घेरते हैं और पकड़ते हैं, क्योंकि इसके दुम नहीं होती जो आगे बढ़ जाने पर पकड़ी जा सके।
◆ हमें यह भ्रम निकाल ही देना चाहिए कि बेईमानी कुछ कमा सकती है। वह शराब की तरह उत्तेजना मात्र है, जिससे ठगने वाला और ठगा जाने वाला बुद्धिभ्रम में ग्रस्त हो जाते हैं। नशा उतरने पर नशेबाज की जो खस्ता हालत होती है वही पोल खुलने पर बेईमानी की होती है। उसका न कारोबार रहता है, न कोई ग्राहक, सहयोगी। अतएव हमें इस कंटकाकीर्ण पगडण्डी पर चलने की अपेक्षा ईमानदारी के राजमार्ग पर ही चलना चाहिए।