सचाई मनुष्य-जीवन की सबसे बड़ी सार्थकता है। इसके अभाव में जीवन हर ओर से कंटकाकीर्ण हो जाता है। क्या वैयक्तिक, क्या सामाजिक और क्या राष्ट्रीय। हर क्षेत्र में सचाई का बहुत अधिक महत्व है। व्यक्तिगत जीवन में मिथ्याचारी किसी प्रकार की आत्मिक उन्नति प्राप्त नहीं कर सकता, सामाजिक जीवन में अविश्वास एवं असम्मान का भागी बनता है और राष्ट्रीय जीवन में तो वह एक आपत्ति ही माना जाता है।
संसार का एक अंग होने से मनुष्य का जीवन भी परिवर्तनशील है। बचपन, जवानी, बुढ़ापा आदि का परिवर्तन। तृषा तृप्ति, काम, आराम, निद्रा, जागरण तथा जीवन-मरण के अनेक परिवर्तन मानव जीवन से जुड़े हुए हैं। इसी प्रकार सफलता-असफलता तथा सुख-दुःख भी इसी परिवर्तनशील मानव जीवन के एक अभिन्न अंग हैं। परिवर्तन जीवन का चिन्ह है। अपरिवर्तन जड़ता का लक्षण है। जो जीवित है, उसमें परिवर्तन आयेगा ही। इस परिवर्तन में ही रुचि का भाव रहता है। एकरसता हर क्षेत्र में ऊब और अरुचि उत्पन्न कर देती है।
बिना कठिनाइयों के मनुष्य का पुरुषार्थ नहीं खिलता, उसके आत्म-बल का विकास नहीं होता उसके साहस और परिश्रम के पंख नहीं लगते उसकी कार्य क्षमता का विकास नहीं होता। यदि कठिनाइयां न आवें तो मनुष्य साधारण रूप से रेलगाड़ी के पहिये की तरह निरुत्साह के साथ ढुलकता चला जाये। उसकी अलौकिक शक्तियों, उसकी दिव्य क्षमताओं, उसकी अद्भुत बुद्धि और शक्तिशाली विवेक के चमत्कारों को देखने का अवसर ही न मिले। उसकी सारी विलक्षणताएं अद्भुत कलायें और विस्मयकारक योग्यताएँ धरती के गर्भ में पड़े रत्नों की तरह की पड़ी-पड़ी निरुपयोगी हो जातीं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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