अपने समय में विचार क्षेत्र की भ्रान्तियाँ और विकृतियाँ ही लोक चिन्तन को भ्रष्ट और आचरण प्रचलन को दुष्ट बनाने के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं। अन्यथा विज्ञान शिक्षा और उद्योग क्षेत्र की वर्तमान प्रगति के रहते मनुष्य हर दृष्टि से सुखी सम्पन्न रह सकता था। आस्था संकट ही अपने समय का सबसे बड़ा विग्रह है। उसी ने व्यक्ति और समाज के सम्मुख अगणित समस्याएँ, विपत्तियाँ और विभीषिकाएँ खड़ी की हैं। समाधान के लिए प्रचलित सुधार इसी से सफल नहीं हो पाते कि भावनाओं, मान्यताओं, विचारणाओं, आकांक्षाओं में सुधार परिष्कार का प्रयत्न नहीं हुआ। मात्र अनाचारों के दमन, सुधार की बात सोची जाती रही। सड़ी कीचड़ यथा स्थान बनी रहे तो मक्खी मच्छर पकड़ने, मारने, पीटने से क्या काम बने? रक्त में विषाक्तता भरी रहे तो फुन्सियों पर मरहम लगाने भर से क्या बात बने? एक सुधार पूरा होने से पूर्व ही सौ नये बिगाड़ उठे तो चिरस्थायी सुधार की संभावना नहीं रहेगी।
अपने समय की समस्त समस्याओं का एक ही हल है विचारक्रान्ति अभियान, लोक मानस का परिष्कार। इसके लिए स्वाध्याय और सत्संग की ढाल तलवार का प्रयोग करना होगा। युगान्तरीय चेतना का प्रतिनिधित्व प्रज्ञा साहित्य करता है। उसे पढ़ने- पढ़ाने की प्रक्रिया यदि द्रुतगामी बनाई जा सके, तो अब तक चल रही प्रगति में तूफानी उभार आ सकता है। नगण्य से साधनों पर पिछले दिनों २४ लाख व्यक्तियों का प्राणवान देव परिवार खड़ा किया जा सका है, तो कोई कारण नहीं कि उसी कार्य को व्यवस्थित प्रज्ञा संस्थान संभाल ले तो देखते- देखते जन जागरण की प्रक्रिया को सैकड़ों गुनी अधिक प्रचंड बनाया जा सकेगा। देखने में यह छोटा सा उपचार कितना महत्त्वपूर्ण है, उसका संदर्भ घने अंधकार से निपटने में छोटे से दीपक की भूमिका से समझा समझाया जा सकता है।
स्वाध्याय मंडल प्रज्ञा संस्थानों को भी बड़े प्रज्ञापीठों के लिए निर्धारित कार्य पद्धति अपनानी होगी। जन जागरण के लिए जन सम्पर्क, जन सम्पर्क से जन समर्थन और सहयोग मिलने, उस आधार पर युग परिवर्तन का ढाँचा खड़ा होने का सरंजाम जुटने की बात बार- बार कही जाती रही है। इस प्रयोजन के लिए प्रज्ञा साहित्य का पठन- पाठन और दीवारों पर आदर्श वाक्य लेखन की प्रक्रिया को स्वाध्याय कहा जा सकता है। प्रज्ञापीठों की पंच सूत्री योजना में सत्संग को व्यापक बनाने के लिए स्लाइड प्रोजेक्टर, टेपरिकार्डर, प्रदर्शनी और जन्म दिवसोत्सवों को प्रमुखता दी गई है। इनके माध्यम से एक व्यक्ति भी सैकड़ों को हर दिन युग चेतना से अवगत अनुप्राणित करते रहने की प्रक्रिया नियमित रूप से चलाता रह सकता है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
(गुरुदेव के बिना पानी पिए लिखे हुए फोल्डर-पत्रक से)