सोमवार, 3 दिसंबर 2018

👉 एक वेश्या ने कराया था विवेकानंद को संन्यासी होने का अहसास

स्वामी जी ने शिकागो की धर्म संसद में भाषण देकर दुनिया को ये एहसास कराया कि भारत विश्व गुरु है। अमेरिका जाने से पहले स्वामी विवेकानंद जयपुर के एक महाराजा के महल में रुके थे। महाराजा राजा विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस का भक्त था। विवेकानंद के स्वागत के लिए राजा ने एक भव्य आयोजन किया। इसमें वेश्याओं को भी बुलाया गया। शायद राजा यह भूल गया कि वेश्याओं के जरिए एक संन्यासी का स्वागत करना ठीक नहीं है। विवेकानंद उस वक्त अपरिपक्‍व थे। वे अभी पूरे संन्‍यासी नहीं बने थे। वह अपनी कामवासना और हर चीज दबा रहे थे। जब उन्‍होंने वेश्‍याओं को देखा तो अपना कमरा बंद कर लिया। जब महाराजा को गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने विवेकानंद से माफी मांगी।

महाराजा ने कहा कि उन्होंने वेश्या को इसके पैसे दे दिए हैं, लेकिन ये देश की सबसे बड़ी वेश्या है, अगर इसे ऐसे चले जाने को कहेंगे तो उसका अपमान होगा। आप कृपा करके बाहर आएं। विवेकानंद कमरे से बाहर आने में डर रहे थे। इतने में वेश्या ने गाना गाना शुरू किया, फिर उसने एक सन्यासी गीत गाया। गीत बहुत सुंदर था। गीत का अर्थ था- ''मुझे मालूम है कि मैं तुम्‍हारे योग्‍य नहीं, तो भी तुम तो जरा ज्‍यादा करूणामय हो सकते थे। मैं राह की धूल सही, यह मालूम मुझे। लेकिन तुम्‍हें तो मेरे प्रति इतना विरोधात्‍मक नहीं होना चाहिए। मैं कुछ नहीं हूं। मैं कुछ नहीं हूं। मैं अज्ञानी हूं। एक पापी हूं। पर तुम तो पवित्र आत्‍मा हो। तो क्‍यों मुझसे भयभीत हो तुम?''

विवेकानंद ने अपने कमरे इस गीत को सुना, वेश्‍या रोते हुए गा रही थी। उन्होंने उसकी स्थिति का अनुभव किया और सोचा कि वो क्या कर रहे हैं। विवेकानंद से रहा नहीं गया और उन्होंने कमरे का गेट खोल दिया। विवेकानंद एक वेश्या से पराजित हो गए। वो बाहर आकर बैठ गए। फिर उन्होंने डायरी में लिखा, ''ईश्‍वर से एक नया प्रकाश मिला है मुझे। डरा हुआ था मैं। जरूर कोई लालसा रही होगी मेरे भीतर। इसीलिए डर गया मैं। किंतु उस औरत ने मुझे पूरी तरह हरा दिया। मैंने कभी नहीं देखी ऐसी विशुद्ध आत्‍मा।'' उस रात उन्‍होंने अपनी डायरी में लिखा, ''अब मैं उस औरत के साथ बिस्‍तर में सो भी सकता था और कोई डर नहीं होता।''

सीख- इस घटना से विवेकानंद को तटस्थ रहने का ज्ञान मिला, आपका मन दुर्बल और निसहाय है। इसलिए कोई दृष्‍टि कोण पहले से तय मत करो।

👉 आज का सद्चिंतन 3 December 2018


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 3 December 2018


👉 Quest for Joy

Man wanders all the time, throughout his life, in search of joy, blissful peace, but remains dismayed and astray…. Acquisition of hoards of wealth, worldly comforts, good health, delicious food, palatial house, vehicles, servants, gorgeous cloths, beauty, beloved family, faithful friends, supporters all around, powers, prestige, name and fame, security…., and what not he looks for? People who lack in any of these strive for their possession; those, who already have, try to possess more with new passions…

This scenario is like that of the tale of the swan (flamingo), which is hunting for the pearl since Ages, but finds nothing but a drop of dew… Why? Because, it did not really search for the pearl; did not even turn his face in the direction of the grand Ocean “Mansarovar” where the pearl is hidden in the depths… It did not gather the courage and strength to fly so long… Short-sighted intellect and pleasure-hungry mind advised it – “what is the guarantee that you will find that unseen “Mansarovar”; and who knows whether there will really be any pearl and you would trace it” so it satisfied itself with the shining drops of dew; licked it and thought it has quenched the thirst…; it flew for sometime and the thirst recurred with greater intensity.

The cycle continued… This is what happens with most of us who keep searching for ‘immortal’ joy in the mirage of perishable world, keep accumulating more of what gives only a momentary pleasure but keeps us away from the sight of real bliss…

📖 Akhand Jyoti, March. 1940

👉 आनंद की खोज

आनंद की खोज में भटकता हुआ इंसान, दरवाजे-दरवाजे पर टकराता फिरता है। बहुत-सा रुपया जमा करें, उत्तम स्वास्थ्य रहे, सुस्वाद भोजन करे, सुंदर वस्त्र पहने, बढ़िया मकान और सवारियाँ हों, नौकर-चाकर हों, पुत्र, पुत्रियों, बंधुओं से घर भरा हो, उच्च अधिकार प्राप्त हों, समाज में प्रतिष्ठा हो, कीर्ति हो। ये चीजें आदमी प्राप्त करता है। जिन्हें ये चीजें उपलब्ध नहीं होतीं, वे प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। जिनके पास हैं, वे उससे अधिक लेने का प्रयत्न करते हैं।

इन सब तस्वीरों में आनंद की खोज करते-करते चिरकाल बीत गया, पर राजहंस को ओस ही मिली। मोती! उसकी तो खोज ही नहीं की, मानसरोवर की ओर तो मुँह ही नहीं किया, लंबी उड़ान भरने की तो हिम्मत ही नहीं बाँधी। मन ने कहा-जरा इसे और देख लूँ। आँखों से न दीख पड़ने वाले मानसरोवर में मोती मिल ही जाएंगे, इसकी क्या गारंटी है। फिर ओस चाटी और फड़फड़ाया, फिर यही पहिया चलता रहता है। आपने उनमें खोजा, कुछ क्षण पाया भी, परंतु ओस की बूंदें ठहरीं, वे दूसरे ही क्षण जमीन पर गिर पड़ीं और धूल में समा गईं।
यही नष्ट होने की आशंका अधिक संचय के लिए प्रेरित करती रहती है, फिर भी नाशवान चीजों का नाश होता ही है।

📖 अखण्ड ज्योति- मार्च 1940

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...