गुरुवार, 11 मई 2023

👉 अपनी वासनाएं काबू में रखिए (भाग 1)

किसी समय एक चोर ने न्यायाधीश के समक्ष अपनी चोरी की सफाई देते हुए इस भाँति कहा हुजूर मैंने चोरी तो अवश्य की है, परन्तु सच्चा अपराधी मैं नहीं हूँ। मेरे पड़ोसी ने अपना सोने का चमकदार कंठा दिखाकर मेरे मन को मोहित कर लिया और मुझे उसको चुरा लेने के लिए लाचार किया। अतएव सच्चा अपराधी वही है और सजा उसी को होनी चाहिए। अपराधी की ये बाते सुनकर जज साहब को उसकी युक्ति पर हँसी आ गई उन्होंने अपराधी को एकान्त वास की सजा देकर कहा कि अब तुम्हारा मन लुभाने के लिए तुम्हारे सामने कोई मनुष्य न आवेगा।

यदि सच पूछा जाये तो नैतिक संसार में मनुष्य प्रतिदिन इसी प्रकार की युक्तियों का उपयोग करता रहता है। अमुक मनुष्य मेरे कार्य में बाधा डालता है, अमुख ने मुझसे ऐसी बात कहीं जिससे मुझे क्रोध आ गया, चार आदमियों में बैठते हैं तो लाचार होकर ऐसा काम करना ही पड़ता है-, इत्यादि बातें अपने दोषों को दूसरों के सिर मढ़ने के प्रयत्न नहीं तो क्या हैं?

कितना अच्छा हो यदि मनुष्य कोई अपराध करने के साथ ही उसे स्वीकार करने में आना-कानी न करे। नैतिक उन्नति की सबसे पहली सीढ़ी यही है कि मनुष्य अपने अपराधों को समझने लगें। हजारों मनुष्य तो बुरे कार्यों को करते रहते और उन बेचारों को रंच मात्र भी खबर नहीं कि ये कार्य वास्तव में बुरे हैं। जिस समय चोर चोरी को सचमुच बुरा समझने लगे उसी समय से जान लो कि अब वह रास्ते पर आ रहा है। परन्तु केवल दिखाऊ मन की इच्छा से अथवा किसी की हाँ में हाँ मिलाने के अभिप्राय से बुरे कार्य बुरा कह देने से कोई नहीं ।

इससे तो उलटी हानि है। कुकार्य से घृणा होने की बात तो दूर रही, ऐसा करने से तो उसने अपने आपको ही ठगा कहना चाहिए। प्रवंचना अथवा मायाजाल इसी का नाम है परन्तु देखा जाता है कि लोक में मनुष्यों ने इसे ही सभ्यता और शिष्टाचार मान रखा है। ऐसे लौकिक व्यवहार की अवहेलना करने से समाज भले ही असंतुष्ट हो जाए, परन्तु उन्नति की इच्छा रखने वाले मनुष्य को इसमें आगा-पीछा न करना चाहिए।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 महात्मा जेम्स ऐलन
📖 अखण्ड ज्योति अप्रैल 1950 पृष्ठ 9

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1950/April/v1.9


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👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 11 May 2023

हर मनुष्य में हर स्तर की क्षमता बीज रूप में विद्यमान है। प्रयत्नपूर्वक उन्हें जगाया और बढ़ाया जा सकता है। अधिक समय लगे और अधिक श्रम करना पड़े, यह बात दूसरी है, पर मंद गति कहे जाने वाले भी अध्यवसाय का सहारा लेकर उतने ही ऊँचे उठ सकते हैं, उतने ही सफल हो सकते हैं, जितने कि जन्मजात प्रतिभा वाले देखे जाते हैं।

जाति-पाँति के आधार पर किसी को हेय, हीन या छोटा समझना अध्यात्मवाद के सर्वथा विपरीत है। दुष्टता और सज्जनता के आधार पर किसी को नीच-ऊँच माना जाय, किसी कुकर्मी का तिरस्कार और श्रेष्ठ सत्पुरुष का सम्मान किया जाय यह बात दूसरी है, उसमें औचित्य है, पर केवल इसलिए किसी को नीच मानना कि वह अमुक जाति में पैदा हुआ है, सर्वथा अनुचित है।

जिस प्रकार बिजली से जीरो पावर का मद्धिम प्रकाश उत्पन्न होता है, उससे सौ किलोवाट का तेज चौंधिया देने वाली रोशनी का बल्ब भी जल सकता है। उसी प्रकार जिन शक्तियों और साधनों से हम अपना रोज का काम चलाते हैं, उन्हीं साधनों और शक्तियों से अपनी निर्धनता को भी दूर भगा सकते हैं, पर हमारी स्थिति ऐसी है जैसे इस उधेड़बुन में उलझे हुए व्यक्ति की जिसे जीरो पावर बल्ब को जलाने वाली बिजली की बड़ी सामर्थ्य पर ही शंका होती है। जिन क्षमताओं और शक्तियों का सहारा लेकर निर्धन से निर्धन और धनवान् से धनवान व्यक्ति अपना निर्वाह करते और काम चलाते हैं, वे हैं-बुद्धि, शक्ति, स्वास्थ्य और समय।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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