नाव में लगे रहने वाले पतवार कितने ही तुच्छ प्रतीत क्यों न हों, नौका की दिशा बदल देने का श्रेय उन्हीं को मिलता है। रेल की लाइन बदलने वाले, मोटर को घुमाने वाले, जहाजों की दिशा फेरने वाले पुर्जे छोटे-छोटे होते हैं, पर इन शक्तिशाली यंत्रों का संचालन इन्हीं के आधार पर संभव होता है। घोड़े के मुँह पर रहने वाली लगाम, बैल की नाथ, हाथी का अंकुश, सरकस के शेर का हंटर जरा-जरा से ही तो होते हैं, पर उन्हीं से यह शक्तिशाली पशु नियंत्रण में रखे और उपयोग में लाए जाते हैं। समाज भी एक प्रबल पशु एवं शक्तिशाली यंत्र वाहन के समान है। इस पर नियंत्रण करने के लिए ऐसे जननायकों की आवश्यकता होती है, जो पतवार बन कर जन-प्रवृत्ति को नौका की तरह सही दिशा में मोड़ सकें।
हमारे मार्गदर्शक गुरुदेव ने इतना ही कहा था कि हमारे परामर्षों को आदर्शो की कसौटी पर कसते रहना। यदि वे खरे हों, तो अपनी अनगढ़ अक्ल को उसमें विक्षेप-व्यतिरेक उत्पन्न न करने देना। इसी समर्पण को उन्होंने भक्ति का सार-संक्षेप बताया। इन दिनों हमारे अन्तराल में ऐसे ही अनुयायी ढूँढ़ने की बेचैनी है; जो अपना जीवनक्रम साधु-ब्राह्मण परम्परा अपनाकर संयम और तप का श्रीगणेश करें। मात्र पूजा-पत्री से ही सब कुछ मिल जाने के भ्रम जंजाल में न भटकें। ऐसे लोगों को औसत भारतीय स्तर के निर्वाह से अपनी जीवनचर्या का नया अध्याय आरम्भ करना चाहिए और कटिबद्ध होना चाहिए कि जो क्षमता बचती है, उसे भगवान के खेत में बोने का साहस जुटायेंगे।
जीवन का स्वरूप क्या हो? भविष्य में किस दिशा में बढ़ा जाय? इसका निर्धारण करने के लिए जिस अन्तराल से संदेश मिलते हैं, उस पर आकांक्षाओं की प्रधानता रहती है। इच्छाओं को अनुचित ठहराने ओर सही राह पर लाने में बुद्धि का उतना योगदान नहीं होता जितना भावनाओं का। बुद्धि तो राज दरबारियों की तरह शासक की हाँ में हाँ मिलाने लगती है। उसी का समर्थन करती है। वही उपाय बताती है जैसी कि मालिक की मर्जी होती है।
हमारे मार्गदर्शक गुरुदेव ने इतना ही कहा था कि हमारे परामर्षों को आदर्शो की कसौटी पर कसते रहना। यदि वे खरे हों, तो अपनी अनगढ़ अक्ल को उसमें विक्षेप-व्यतिरेक उत्पन्न न करने देना। इसी समर्पण को उन्होंने भक्ति का सार-संक्षेप बताया। इन दिनों हमारे अन्तराल में ऐसे ही अनुयायी ढूँढ़ने की बेचैनी है; जो अपना जीवनक्रम साधु-ब्राह्मण परम्परा अपनाकर संयम और तप का श्रीगणेश करें। मात्र पूजा-पत्री से ही सब कुछ मिल जाने के भ्रम जंजाल में न भटकें। ऐसे लोगों को औसत भारतीय स्तर के निर्वाह से अपनी जीवनचर्या का नया अध्याय आरम्भ करना चाहिए और कटिबद्ध होना चाहिए कि जो क्षमता बचती है, उसे भगवान के खेत में बोने का साहस जुटायेंगे।
जीवन का स्वरूप क्या हो? भविष्य में किस दिशा में बढ़ा जाय? इसका निर्धारण करने के लिए जिस अन्तराल से संदेश मिलते हैं, उस पर आकांक्षाओं की प्रधानता रहती है। इच्छाओं को अनुचित ठहराने ओर सही राह पर लाने में बुद्धि का उतना योगदान नहीं होता जितना भावनाओं का। बुद्धि तो राज दरबारियों की तरह शासक की हाँ में हाँ मिलाने लगती है। उसी का समर्थन करती है। वही उपाय बताती है जैसी कि मालिक की मर्जी होती है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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