एक दिन एक आदमी एक ज्योतिषी से मिला ज्योतिषी ने उसे बताया की तुम्हारी जिन्दगी थोड़ी सी हैं केवल महीने भर की आयु बाकी हैं, वह आदमी बहुत चिंतित हुआ वह चिंता में डूब गया उसने एक संत ये यहाँ दस्तक दी, संत के चरणों में खूब रोया और मृत्यु से बचा लेने की प्रार्थना की।
संत ने पूछा तुम क्या करते हो? उसने जबाब दिया मूर्तिकार हूँ, मुर्तिया बनाता हूँ। संत ने उसे उपाय सुझाया तुम अपनी जैसी शक्ल की आठ मुर्तिया बनाओ।
मुर्तिया हू- ब- हू तुम्हारे जैसी ही होनी चाहिए, सो जिस दिन मृत्यु का बात आये, उस दिन सब को एक से वस्त्र पहना कर लाइन में खड़ा कर देना और इनके बीचो बीच में तुम स्वयं खड़े हो जाना तथा जैसे ही यमदूत तुमको लेने आये तो तुम एक मिनट के लिए अपनी साँस रोक लेना।
यमदूत तुमको पहचान नहीं पायेंगे, और इस तरह वे तुम्हे छोड़ कर चले जायेगे तथा तुम्हरी मृत्यु की घडी टल जायेगी। मूर्तिकार ने ऐसा ही किया मृत्यु के दिन यमदूत उसे लेने आए यमदूतो ने देखा कि एक जैसे नौ आदमी खड़े हैं। मुश्किल में पड़ गए इसमें असली कौन हैं और नकली कौन हैं, मालूम ही नहीं पड़ रहा और बेचारे यमदूत खाली हाथ ही लौट गए।
यमलोक जाकर यमराज से शिकायत की वहां नौ लोग खड़े हैं समझ में नहीं आता किसको लाना हैं। यमराज ने भी सुना तो उसे भी आश्चर्य हुआ क्यों कि पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ यमराज ने सोचा, मृत्युलोक में कोई नया ब्रह्मा पैदा हो गया हैं, जो एक जैसे अनेक व्यक्ति बनाने लगा हैं। यमराज जी ने ब्रह्मा जी को बुलवाया और पूछा ये क्या मामला हैं ? एक जैसी शक्ल के नौ- नौ आदमी ?
यमदूत पेशोपेश में हैं कि कौन असली हैं और कौन नकली, लेकर किसको जाना हैं यह कैसा तमाशा हैं ? ब्रह्मा जी ने देखा तो उनका भी सर चकराया, ब्रह्मा जी बोले मैंने तो पूरी पृथ्वी पर एक जैसे दो आदमी नहीं बनाये, लगता हैं सचमुच में कोई नया ब्रह्मा पैदा हो गया हैं, जिसने एक जैसे दो नहीं बल्कि नौ- नौ आदमीं बना दिए हैं। ब्रह्मा जी बोले मामला जटिल हैं इसका निपटारा विष्णु जी कर सकते हैं।
विष्णु जी को बुलवाया गया विष्णु जी ने सभी मूर्तियों की परिक्रमा की, उन्हें ध्यान से देखा तो असली बात समझ में आ गई। विष्णु जी ने ब्रह्मा जी से कहा - प्रभु क्या कमाल की कला हैं क्या सुन्दर और सजीव मुर्तिया बनायीं हैं जिसने यह मुर्तिया बनायीं हैं अगर मुझे मिल जाए तो में स्वयं उसका अभिनन्दन करूँगा, मैं स्वयं उसकी कला को पुरस्कृत करूँगा।
विष्णु द्वारा इतनी प्रशंसा सुननी थी कि बीच की मूर्ति (जिसमे स्वयं मूर्तिकार था) बोल पड़ी - प्रभु मैंने ही बनायीं हैं, मैं ही मूर्तिकार हूँ । विष्णु जी ने उसका कान पकड़ा और कहा - चल निकल बाहर हम तुझे ही खोज रहे थे और यमदूत पकड़कर उसे अपने साथ ले गए।
इसलिए कहते हे न यहाँ इस धरती पर हर आदमी अपनी जरा सी प्रशंसा भर से बहक जाता हैं। प्रशंसा में फूल जाना और अपनी औकात को भूल जाना ही मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी हैं, कोई आपकी कितनी भी तारीफ करे तो आपको जरा सावधान रहना चाहिए क्योंकि हो सकता है वह ही आपके लिए कोई जाल तैयार कर रहा हो। जीवन में हमेशा संयम बरते और ध्यान रखे ।
संत ने पूछा तुम क्या करते हो? उसने जबाब दिया मूर्तिकार हूँ, मुर्तिया बनाता हूँ। संत ने उसे उपाय सुझाया तुम अपनी जैसी शक्ल की आठ मुर्तिया बनाओ।
मुर्तिया हू- ब- हू तुम्हारे जैसी ही होनी चाहिए, सो जिस दिन मृत्यु का बात आये, उस दिन सब को एक से वस्त्र पहना कर लाइन में खड़ा कर देना और इनके बीचो बीच में तुम स्वयं खड़े हो जाना तथा जैसे ही यमदूत तुमको लेने आये तो तुम एक मिनट के लिए अपनी साँस रोक लेना।
यमदूत तुमको पहचान नहीं पायेंगे, और इस तरह वे तुम्हे छोड़ कर चले जायेगे तथा तुम्हरी मृत्यु की घडी टल जायेगी। मूर्तिकार ने ऐसा ही किया मृत्यु के दिन यमदूत उसे लेने आए यमदूतो ने देखा कि एक जैसे नौ आदमी खड़े हैं। मुश्किल में पड़ गए इसमें असली कौन हैं और नकली कौन हैं, मालूम ही नहीं पड़ रहा और बेचारे यमदूत खाली हाथ ही लौट गए।
यमलोक जाकर यमराज से शिकायत की वहां नौ लोग खड़े हैं समझ में नहीं आता किसको लाना हैं। यमराज ने भी सुना तो उसे भी आश्चर्य हुआ क्यों कि पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ यमराज ने सोचा, मृत्युलोक में कोई नया ब्रह्मा पैदा हो गया हैं, जो एक जैसे अनेक व्यक्ति बनाने लगा हैं। यमराज जी ने ब्रह्मा जी को बुलवाया और पूछा ये क्या मामला हैं ? एक जैसी शक्ल के नौ- नौ आदमी ?
यमदूत पेशोपेश में हैं कि कौन असली हैं और कौन नकली, लेकर किसको जाना हैं यह कैसा तमाशा हैं ? ब्रह्मा जी ने देखा तो उनका भी सर चकराया, ब्रह्मा जी बोले मैंने तो पूरी पृथ्वी पर एक जैसे दो आदमी नहीं बनाये, लगता हैं सचमुच में कोई नया ब्रह्मा पैदा हो गया हैं, जिसने एक जैसे दो नहीं बल्कि नौ- नौ आदमीं बना दिए हैं। ब्रह्मा जी बोले मामला जटिल हैं इसका निपटारा विष्णु जी कर सकते हैं।
विष्णु जी को बुलवाया गया विष्णु जी ने सभी मूर्तियों की परिक्रमा की, उन्हें ध्यान से देखा तो असली बात समझ में आ गई। विष्णु जी ने ब्रह्मा जी से कहा - प्रभु क्या कमाल की कला हैं क्या सुन्दर और सजीव मुर्तिया बनायीं हैं जिसने यह मुर्तिया बनायीं हैं अगर मुझे मिल जाए तो में स्वयं उसका अभिनन्दन करूँगा, मैं स्वयं उसकी कला को पुरस्कृत करूँगा।
विष्णु द्वारा इतनी प्रशंसा सुननी थी कि बीच की मूर्ति (जिसमे स्वयं मूर्तिकार था) बोल पड़ी - प्रभु मैंने ही बनायीं हैं, मैं ही मूर्तिकार हूँ । विष्णु जी ने उसका कान पकड़ा और कहा - चल निकल बाहर हम तुझे ही खोज रहे थे और यमदूत पकड़कर उसे अपने साथ ले गए।
इसलिए कहते हे न यहाँ इस धरती पर हर आदमी अपनी जरा सी प्रशंसा भर से बहक जाता हैं। प्रशंसा में फूल जाना और अपनी औकात को भूल जाना ही मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी हैं, कोई आपकी कितनी भी तारीफ करे तो आपको जरा सावधान रहना चाहिए क्योंकि हो सकता है वह ही आपके लिए कोई जाल तैयार कर रहा हो। जीवन में हमेशा संयम बरते और ध्यान रखे ।