गुरुवार, 8 जून 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 8 June 2023

🔷 मनुष्य की गरिमा के तीन आधार स्तम्भ हैं-

1) जीवन की पवित्रता,
2) क्रियाकलाप की प्रामाणिकता  और
3) लोकसेवा के प्रति श्रद्धा

जिनके पास यह तीन विभूतियाँ हैं, उनके लिए महामानव बनने का द्वार सदैव खुला पड़ा है।

🔶 आशाजनक विचारों में बड़ी विलक्षण शक्ति भरी हुई है।  हमारी अभिलाषाएँ यदि वे सात्विक और पवित्र हैं तो अवश्य पूर्ण होंगी, हमारे मनोरथ सिद्ध होंगे। हमारे लिए जो कुछ होगा वह अच्छा ही होगा, बुरा कभी न होगा। इस तरह के शुभ, दिव्य और आशामय विचारों का  शारीरिक, मानसिक, सांसारिक एवं आध्यात्मिक उन्नति पर  अनुकूल असर होता है।

🔷 समय को बर्बाद करने वाला और श्रम से जी चुराने वाला अपना शत्रु आप है। उसे बाहरी शत्रुओं की क्या आवश्यकता? अपनी बर्बादी के लिए यह दो दुर्गुण जिसने पाल रखे हैं, उसे शनि और राहु की दशा की प्रतीक्षा न करनी पड़ेगी। उसके ऊपर साढ़ेसाती नहीं, अजर-अमर सत्यानाशी शनि देवता सदा ही चढ़े रहेंगे। राहु का दुर्दिन स्थायी रूप से उसके सिर पर मँडराता रहेगा।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 क्रोध को कैसे जीता जाय? (भाग 2)

अपनी ओर से तो क्रोध पैदा न होने देने का प्रबन्ध मनुष्य उपर्युक्त विधि से चाहे कर ले किन्तु उस स्थिति में क्या होगा जब दूसरे हमारा अपमान करते हैं, या हमें हानि पहुँचाते हैं। मनुष्य सामाजिक प्राणी है, और हमारे आस-पास के जितने आदमी होते हैं वे प्रायः स्वार्थी ही होते हैं। जब एक की हानि होगी तभी दूसरे का लाभ होगा। ऐसी दशा में हानि पहुँचाने वाले के प्रति क्रोध कैसे न होने दिया जाय। इस सम्बन्ध में हमें उदारवृत्ति का अनुगमन करना चाहिए। जब संसार स्वार्थमय है और इसका प्रत्येक व्यक्ति दूसरे से कुछ लेकर या छीन कर ही अपनी स्वार्थ लिप्सा पूरी करता है, तो उस पर क्रोधित होने का कोई कारण नहीं है। दुनिया के इस रवैये को समझ लेने के बाद क्रोध न आना चाहिए। अपना कर्त्तव्य यही है कि हम अपनी हानि को पूरी करें और उससे हमेशा बचते रहें।

लाभ-हानि के क्षेत्र के बाहर भी कुछ काम ऐसे होते हैं जिनसे दूसरे लोग हमें व्यर्थ में हानि पहुँचाते हैं या कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि अनजाने में दूसरों के द्वारा कुछ काम ऐसे हो जाते हैं जिसके कारण हमें क्रोध हो सकता है, जैसे कि आपकी पत्नी या पुत्र से असावधानी के कारण आपका गिलास या कलम टूट जाय। कभी-कभी कोई ऐसे नौकर मिल जाते हैं कि आप कहते हैं कि बाजार से आम ले आओ, वह ले आता है नींबू। इसी तरह मान लीजिये किसी ने आपके बच्चे को मार दिया, आपको क्रोध आ जाता है। इस प्रकार के छोटे-छोटे कारणों से क्रोध आता है। ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए।

महात्मा गाँधी ने बताया है कि जब क्रोध आये तो हमें उस समय कोई काम ही न करना चाहिए। क्रोध की दशा स्थायी नहीं होती। थोड़ी देर तक ही मनुष्य हिताहित ज्ञान शून्य हो सकता है, बाद में विचार शक्ति काम करने लगती है और मनुष्य का क्रोध कम हो जाता है। करीब-करीब इसी सिद्धान्त का अनुसरण अब्राहम लिंकन ने भी अनेक अवसरों पर किया था। एक बार उसकी सेना के एक बड़े उच्च पदाधिकारी ने उसके बताये गये युद्ध सम्बन्धी अनुशासन को नहीं माना, फलतः बड़ी हानि उठानी पड़ी। यह सुनकर उसे बड़ा क्रोध आया। उसने उस पदाधिकारी के नाम एक कड़ा पत्र लिखा, किन्तु लिखने में विचार शक्ति से काम लेना पड़ता है। परिणाम यह हुआ कि उसका क्रोध ठंडा हो गया और वह पत्र भेजा नहीं गया। मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि मानसिक आवेग में लिखना उसकी तीव्रता को कम कर देता है।

अखण्ड ज्योति- जून 1949 पृष्ठ 9

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