हम हर समय चिन्ताशील व क्रियाशील नजर आते हैं। फिर भी हमारा लक्ष्य क्या है? इसका हमें पता तक नहीं, वही आश्चर्य का विषय है। सभी लोग धन बटोरते हैं पर उसका हेतु क्या है? उसका उत्तर विरले ही ठीक से दे सकेंगे। सभी करते हैं तो हम भी करें, सभी खाते हैं तो हम भी खाएं, सभी कमाते हैं तो हम भी कमाएं, इस प्रकार अन्धानुकरण वृत्ति ही हमारे विचारों और क्रियाओं की आधार शिला प्रतीत होती है। अन्यथा जिनके पास खाने को नहीं वे खाद्य-सामग्री संग्रह करें तो बुद्धिगम्य बात है पर जिनके घर लाखों रुपये पड़े हैं वे भी बिना पैसे-वाले जरूरतमंद व्यक्ति की भाँति पैसा पैदा करने में ही व्यस्त नजर आते हैं।
आखिर कमाई-संग्रह क्यों और कहाँ तक? इसका भी तो विचार होना चाहिये। पर हम चैतन्य शून्य लक्ष्य-विहीन एवं यन्त्रवत जड़ से हो रहे हैं। क्रिया कर रहे हैं पर हमें विचार का अवकाश कहाँ? जिस प्रकार कहाँ जाना है यह जाने बिना कोई चलता ही रहे तो इस चलते रहने का क्या अर्थ होगा? लक्ष्य का निर्णय किये बिना हमारी क्रिया निरर्थक होगी, जहाँ पहुँचना चाहिए वहाँ पहुंचने पर भी हमारी गति समाप्त नहीं होगी। कहीं के कही पहुँच जायेंगे परिश्रम पूरा करने पर भी फल तदनुरूप नहीं मिल सकेगा।
खाना, पीना, चलना, सोना यही तो जीवन का लक्ष्य नहीं है पर इनसे अतिरिक्त जो जीवन की गुत्थियाँ हैं उसको सुलझाने वाले बुद्धिशील व्यक्ति कितने मिलेंगे? जन्म लेते हैं, इधर उधर थोड़ी हलचल मचाते हैं और चले जाते हैं। यही क्रम अनादिकाल से चला आ रहा है। पर आखिर यह जन्म धारण क्यों? और यह मृत्यु भी क्यों? क्या इनसे मुक्त होने का भी कोई उपाय है?
है तो कौन सा? और उसकी साधना कैसे की जाय? विचार करना परमावश्यक है। यह तो निश्चित है कि मरना अवश्यंभावी है, पर वह मृत्यु होगी कब? यह अनिश्चित है, इसीलिए लक्ष्य को निर्धारित कर उसी तक पहुँचने के लिये प्रगतिशील बना जाए, समय को व्यर्थ न खोकर प्राप्त साधनों को लाभ के अनुकूल बनाया जाए और लक्ष्य पर पहुँचकर ही विश्राम लिया जाय। यही हमारा परम कर्त्तव्य है।
📖 अखण्ड ज्योति 1948 नवम्बर पृष्ठ 15
All World Gayatri Pariwar Official Social Media Platform
Shantikunj WhatsApp
8439014110
Official Facebook Page
Official Twitter
Official Instagram
Youtube Channel Rishi Chintan
Youtube Channel Shantikunjvideo