अनुभव के अक्षर
इन प्रश्रों से मेरी अन्तर्भावनाओं को स्फुरणा मिली है कि शिष्यत्व की कठिन साधना के परम रहस्यमय एवं सदा से गोपनीय रखे गए कुछ विशेष सूत्रों को साधकों के सामने प्रकट किया जाय। जो इनकी साधना करेंगे उन पर देश- काल के सभी बन्धनों से परे सद्गुरु की परम चेतना अजस्र अनुदान बरसाती रहेगी। यह बात केवल वैचारिक उक्ति भर नहीं है। यह महासत्य है, जो युग- युग के, भारतभूमि एवं अन्यान्य देशों के समर्पित शिष्यों की शिष्यत्व साधना का सार है। ध्यान रहे कि ये सूत्र उन्हीं के हैं और जो व्याख्या है वह परम पूज्य गुरुदेव की अन्तःप्रेरणा से प्रकट हुई है। इस सब में यदि किसी का सच्चा स्वत्व है, तो वह गुरु- शिष्य की महान परम्परा का है। महान् गुरुओं की करूणा और समर्पित शिष्यों की साधना के निष्कर्ष हैं- ये सूत्र और उनकी क्रमिक व्याख्या। शिष्यों के लिए संजीवनी औषधि की भाँति होने के कारण- इस पुस्तक का नाम भी ‘शिष्य संजीवनी’ है।
यदि आप शिष्य हैं- अथवा होने की चाहत रखते हैं- तो यह शिष्य- संजीवनी औषधि आपके लिए है। प्रतिदिन इस पर मनन- चिन्तन करना, इन्हें क्रियान्वित करना आपका परम कर्त्तव्य है। ध्यान रहे यदि आपके अन्तःकरण में गुरु- प्रेम की दीवानगी हिलोरे मार रही है- तो यह साधना पथ आपके लिए है। यह साधना केवल उनके लिए है जिन्हें अपने प्यारे गुरुवर के बिना रहा नहीं जाता। जो अपने अस्तित्त्व को सद्गुरु की चेतना में समर्पित- विसर्जित और विलीन कर देना चाहते हैं। शिष्य संजीवनी की यह महाऔषधि उनके लिए है- जो श्रेष्ठ शिष्यों की अग्रिम कतार में खड़ा होना चाहते हैं। जो बार- बार अनेक बार, अनगिनत बार अपने गुरुवर द्वारा ली जाने वाली कठोरतम परीक्षा में खरे उतरना चाहते हैं। जिनकी एक मात्र चाहत है कि जिएँगे तो गुरुदेव के लिए और मरेंगे तो गुरुदेव के लिए। गुरुवर के लिए जीवन, गुरुवर के लिए मरण, जिनके जीवन का मकसद है। ऐसे शिष्यों के लिए जीवन औषधि है यह शिष्य संजीवनी।
ऐसे मरजीवड़े शिष्यों के लिए शिष्यत्व की कठिन साधना में उतरने के लिए कुछ विशेष बातें माननी जरूरी हैं। गुरु भक्त शिष्यों की महान् परम्परा उनसे कहती है- इससे पहले तुम्हारे नेत्र देख सकें, उन्हें आँसू बहाने की क्षमता से मुक्त हो जाना चाहिए। इसके पहले तुम्हारे कान सुन सकें, उन्हें बहरे हो जाना चाहिए। और इसके पहले तुम सद्गुरुओं की उपस्थिति में बोल सको, तुम्हारी वाणी को चोट पहुँचाने की वृत्ति से मुक्त हो जाना चाहिए। इसके पहले तुम्हारी आत्मा सद्गुरुओं के समक्ष खड़ी हो सके, उसके पाँवों को हृदय के रक्त से धो लेना चाहिए।
क्रमशः जारी
- डॉ. प्रणव पण्डया
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