🌹 अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।
🔴 हम एक-एक करके सताए जाते हैं, इसका एक ही कारण है कि सामूहिक प्रतिरोध की क्षमता खो गई। उसे जगाया जाना चाहिए। आज जो एक पर बीत रही है, वह कल अपने पर भी बीत सकती है। दूसरे पर होने वाले अत्याचार का प्रतिरोध हम न करेंगे तो हमारी सहायता के लिए क्यों आएगा? यह सोचकर व्यक्तिगत सुरक्षा की इस चपेट में अपने को भी चोट लगे, आर्थिक तथा दूसरे प्रकार की क्षति उठानी पड़े तो भी इसे मनुष्यता के उत्तरदायित्व का मूल्य समझकर चुकाना चाहिए। इसे सहन करना ही चाहिए। शूरवीरों को आघात सहने का ही पुरस्कार मिलता है और वे इसी आधार पर लोक-श्रद्धा के अधिकारी बनते हैं।
🔵 लोक-श्रद्धा के अधिकारी तीन ही हैं-१ संत, (२) सुधारक, (३) शहीद। जिन्होंने अपने आचरणों, विचारों और भावनाओं में आदर्शवादिता एवं उत्कृष्टता का समावेश कर रखा है, वे संत हैं। विपन्न परिस्थितियों को बदलकर जो सुव्यवस्था उत्पन्न करने में संलग्न हैं-अनौचित्य के स्थान पर औचित्य की प्रतिष्ठापना कर रहे हैं, वे सुधारक हैं। अन्याय से जूझने में जिन्होंने आघात सहे और बर्बादी हो हँसते हुए शिरोधार्य किया है, वे शहीद हैं। ऐसे महामानवों के प्रति मनुष्यता सदा कृतज्ञ रही है और इतिहास उनका सदा अभिनंदन करता रहा है। भले ही आपत्ति सहनी पड़े, पर इस गौरव से गौरवान्वित हो सकता हो, उसे अपने को धन्य ही मानना चाहिए। अनीति का सामूहिक प्रतिरोध करने की प्रवृत्ति हमें जन-मानस में जाग्रत करनी चाहिए और जिन्होंने इस संदर्भ में कुछ कष्ट सहा हो, शौर्य दिखाया हो, त्याग किया हो, उनका भाव भरा सार्वजनिक अभिनंदन किया जाना चाहिए, ताकि वैसा प्रोत्साहन दूसरों को भी मिले और जन-जीवन में अनीति से लड़ने की उमंग उठ पड़े।
🔴 हमें कई बार ऐसी बात मानने और ऐसे काम करने के लिए विवश किया जाता है, जिन्हें स्वीकार करने को अपनी आत्मा नहीं कहती, फिर भी हम दबाव में आ जाते हैं और इंकार नहीं कर पाते। इच्छा न होते हुए भी उस दबाव में आकर वह करने लगते हैं, जो न करना चाहिए। ऐसे दबावों में मित्रों या बुजुर्गों का निर्देश इतने आग्रहपूर्वक सामने आता है कि गुण-दोष का ध्यान रखने वाला असमंजस में पड़ जाता है। क्या करें, क्या न करें? कुछ सूझ नहीं पड़ता। कमजोर प्रकृति के मनुष्य प्रायः ऐसे अवसरों पर ‘ना’ नहीं कह पाते और इच्छा न रहते हुए भी वैसा करने लगते हैं। इस बुरी स्थिति में साहसपूर्वक इनकार कर देना चाहिए।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.57
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.9
🔴 हम एक-एक करके सताए जाते हैं, इसका एक ही कारण है कि सामूहिक प्रतिरोध की क्षमता खो गई। उसे जगाया जाना चाहिए। आज जो एक पर बीत रही है, वह कल अपने पर भी बीत सकती है। दूसरे पर होने वाले अत्याचार का प्रतिरोध हम न करेंगे तो हमारी सहायता के लिए क्यों आएगा? यह सोचकर व्यक्तिगत सुरक्षा की इस चपेट में अपने को भी चोट लगे, आर्थिक तथा दूसरे प्रकार की क्षति उठानी पड़े तो भी इसे मनुष्यता के उत्तरदायित्व का मूल्य समझकर चुकाना चाहिए। इसे सहन करना ही चाहिए। शूरवीरों को आघात सहने का ही पुरस्कार मिलता है और वे इसी आधार पर लोक-श्रद्धा के अधिकारी बनते हैं।
🔵 लोक-श्रद्धा के अधिकारी तीन ही हैं-१ संत, (२) सुधारक, (३) शहीद। जिन्होंने अपने आचरणों, विचारों और भावनाओं में आदर्शवादिता एवं उत्कृष्टता का समावेश कर रखा है, वे संत हैं। विपन्न परिस्थितियों को बदलकर जो सुव्यवस्था उत्पन्न करने में संलग्न हैं-अनौचित्य के स्थान पर औचित्य की प्रतिष्ठापना कर रहे हैं, वे सुधारक हैं। अन्याय से जूझने में जिन्होंने आघात सहे और बर्बादी हो हँसते हुए शिरोधार्य किया है, वे शहीद हैं। ऐसे महामानवों के प्रति मनुष्यता सदा कृतज्ञ रही है और इतिहास उनका सदा अभिनंदन करता रहा है। भले ही आपत्ति सहनी पड़े, पर इस गौरव से गौरवान्वित हो सकता हो, उसे अपने को धन्य ही मानना चाहिए। अनीति का सामूहिक प्रतिरोध करने की प्रवृत्ति हमें जन-मानस में जाग्रत करनी चाहिए और जिन्होंने इस संदर्भ में कुछ कष्ट सहा हो, शौर्य दिखाया हो, त्याग किया हो, उनका भाव भरा सार्वजनिक अभिनंदन किया जाना चाहिए, ताकि वैसा प्रोत्साहन दूसरों को भी मिले और जन-जीवन में अनीति से लड़ने की उमंग उठ पड़े।
🔴 हमें कई बार ऐसी बात मानने और ऐसे काम करने के लिए विवश किया जाता है, जिन्हें स्वीकार करने को अपनी आत्मा नहीं कहती, फिर भी हम दबाव में आ जाते हैं और इंकार नहीं कर पाते। इच्छा न होते हुए भी उस दबाव में आकर वह करने लगते हैं, जो न करना चाहिए। ऐसे दबावों में मित्रों या बुजुर्गों का निर्देश इतने आग्रहपूर्वक सामने आता है कि गुण-दोष का ध्यान रखने वाला असमंजस में पड़ जाता है। क्या करें, क्या न करें? कुछ सूझ नहीं पड़ता। कमजोर प्रकृति के मनुष्य प्रायः ऐसे अवसरों पर ‘ना’ नहीं कह पाते और इच्छा न रहते हुए भी वैसा करने लगते हैं। इस बुरी स्थिति में साहसपूर्वक इनकार कर देना चाहिए।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.57
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.9