बुधवार, 26 अप्रैल 2017

👉 प्रभु! तुम्हारा विश्वास शक्ति बने, याचना नहीं

🔵 हे प्रभु! मेरी केवल यही कामना है कि मैं संकटों से घबराकर भागूँ नहीं, उनका सामना करूँ। इसलिए मेरी यह प्रार्थना नहीं है कि संकट के समय तुम मेरी रक्षा करो, बल्कि मैं तो इतना ही चाहता हूँ कि तुम उनसे जूझने का बल दो। मैं यह भी नहीं चाहता कि जब दुःख-सन्ताप से मेरा चित्त व्यथित हो जाय, तब तुम मुझे सांत्वना दो। मैं अपनी अञ्जली के भाव-सुमन तुम्हारे चरणों में अर्पित करते हुए इतना ही माँगता हूँ कि तुम मुझे अपने दुःखों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति दो।

🔴 जब किसी कष्टदायक संकट की घड़ी में मुझे कहीं से कोई सहायता न मिले तो मैं हिम्मत न हारूँ। किसी और स्रोत से सहायता की याचना न करूँ, न उन घड़ियों में मेरा मनोबल क्षीण होने पाए। हे अन्तर्यामिन्! मुझे ऐसी दृढ़ता और शक्ति देना जिससे कि मैं कठिन से कठिन घड़ियों में भी-संकटों और समस्याओं के सामने भी दृढ़ रह सकूँ और तुम्हें हर पल अपने साथ देखते हुए मुसीबतों, परेशानियों को हँसी-खेल समझकर अपने चित्त को हलका रख सकूँ। मैं बस यही चाहता हूँ।
  
🔵 मेरे आराध्य! तुम्हारा विश्वास हर-हमेशा मेरे हृदय-मन्दिर में दीप-शिखा की तरह अखण्ड, अविराम प्रच्वलित रहे। मेरे प्रारब्ध के प्रबल झंझावात, परिस्थितियों की भयावह प्रतिकूलताएँ स्वयं मेरी अपनी मनोग्रन्थियाँ इस ज्योति को बुझा तो क्या, कँपा भी न सकें। विश्वास की यह च्योति हर पल मेरे अस्तित्व में आत्मबल की ऊर्जा एवं तात्कालिक सूझ का प्रकाश उड़ेलती रहे। यह विश्वास मेरे लिए शक्ति बने-याचना नहीं, सम्बल बने-क्षीणता नहीं। कहीं ऐसा न हो कि स्वयं के तमोगुण से घिरकर, तुम्हारे  विश्वास का झूठा आडम्बर रखकर कर्म से विमुख हो जाऊँ, कर्त्तव्य से मुख मोड़ लूँ। चाहे जैसी भी प्रतिकूलाएँ हों, व्यवहार में मुझे कितनी ही हानि क्यों न उठानी पड़े, इसकी मुझे जरा भी परवाह नहीं है, लेकिन प्रभु मुझे इतना कमजोर मत होने देना कि मैं आसन्न संकटों को देखकर हिम्मत हार बैठूँ और यह रोने बैठ जाऊँ कि अब क्या करूँ, मेरा सर्वस्व छिन गया।

🔴 मैं न अहंकारी बनूँ और न ही अकर्मण्य। स्वयं को तुम्हारे चरणों में समर्पित करते हुए मेरी इतनी ही चाहत है कि जीवन संग्राम में रणबाँकुरे योद्धा की तरह जुझारू बनूँ। तुम्हारे विश्वास की शक्ति से भयावह संकटों के चक्रव्यूहों का बेधन करूँ, उन्हें छिन्न-भिन्न करूँ।

🔵 प्रभु तुम्हारा और केवल तुम्हारा विश्वास ग्रहण कर लोगों ने अकिंचन अवस्था में रहते हुए भी इतिहास-पुरुष बनने का गौरव हासिल किया है। जीव और संसार की श्रेष्ठतम उपलब्धियाँ अर्जित की हैं। मेरी बस यही कामना है कि तुम्हारा विश्वास मेरे लिए वीरता का पर्याय बने, आलस्य नहीं। वीरता का सम्बल बने, आतुरता का आकुलाहट नहीं। बस इतनी ही कृपा करना।

🌹 डॉ प्रणव पंड्या
🌹 जीवन पथ के प्रदीप पृष्ठ 42

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