शुक्रवार, 5 मई 2023

👉 तितिक्षा ही हमें सुदृढ़ बनाती है। (भाग 3)

पथरीली और रेतीली भूमि में-असह्य सूर्य ताप के बीच, पानी का घोर अभाव सहते हुए भी यह पौधे जीवित रहते और हरे-भरे बने रहते हैं। इन्हें रेगिस्तान का राजा कहा जाता है। पथरीली भूमि में दूसरे पौधे जीवित नहीं रह पाते क्योंकि वहाँ मिट्टी तो होती नहीं। पौधों के लिए आवश्यक पानी कैसे ठहरे? पानी के बिना पौधे कैसे जियें?

कैक्टस पौधों की सचेतना ऐसी है कि वे पानी के लिए जमीन पर निर्भर नहीं रहते। जब वर्षा होती है तब सीधे इन्द्र भगवान से अपनी आवश्यकता भर का पानी माँग लेते हैं और अपनी कोशिकाओं में भर लेते हैं।

प्रधानतया तो यह जल भण्डार तने में ही रहता है पर यदि उस जाति में पत्ते निकले तो उसमें भी उसी तरह की जल संग्राहक कोशिकाएं रहेंगी। यह तने पत्तियों की आवश्यकता भी स्वयं ही पूरी कर लेते हैं। सूर्य नारायण से आवश्यक प्रकाश प्राप्त करते रहने की क्षमता भी अपने में बनाये रहते हैं। तने में भरा हुआ जल भण्डार इतना प्रचुर होता है कि यदि लगातार छह वर्षों तक पानी न बरसे, इन्द्र देव रूठे रहें तो भी उनका एक तिहाई पानी ही मुश्किल से चुक पाता है।

सूर्य का ताप उनकी तरलता को भाप बना कर उड़ा न ले जाय इसके लिए उनका सुरक्षा आवरण बहुत मजबूत होता है। तनों का बाह्यावरण मोटा ही नहीं मजबूत भी होता है और उसमें ऐसे एक मार्गी छेद होते हैं जो सूर्य से प्रकाश तो ग्रहण करते हैं पर अपनी तरलता बाहर नहीं निकलने देते।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति मार्च 1972 पृष्ठ 55


✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 5 May 2023

कोई नियम, निर्देश, प्रतिबन्ध या कानून मनुष्य को सदाचारी बनने के लिए विवश नहीं कर सकते। वह अपनी चतुरता से हर प्रतिबन्ध का उल्लंघन करने की तरकीब निकाल सकता है, पर यदि आत्मिक अंकुश लगा रहेगा तो बाह्य जीवन में अनेक कठिनाइयाँ होते हुए भी वह सत्य और धर्म पर स्थिर रह सकता है। उसे कोई प्रलोभन, भय या आपत्ति सत्पथ से डिगा नहीं सकती। यह आध्यात्मिक अंकुश ही हमारे उन सारे सपनों का आधार है जिनके अनुसार समाज को सभ्य बनाने और युग परिवर्तन होने की आशा की जाती है।

स्मरण रहे, सहज मौन ही हमारे ज्ञान की कसौटी है। ‘जानने वाला बोलता नहीं और बोलने वाला जानता नहीं’-इस कहावत के अनुसार जब हम सूक्ष्म रहस्यों को जान लेते हैं तो हमारी वाणी बंद हो जाती है। ज्ञान की सर्वोच्च भूमिका में सहज मौन स्वयमेव पैदा हो जाता है।  मौन मनुष्य के ज्ञान की गंभीरता का चिह्न है।

सत्य ही सब तरह से हमारे लिए उपासनीय है। सत्य के मार्ग पर प्रारंभ में कुछ कठिनाइयाँ आ सकती हैं, किन्तु यह जीवन को उत्कृष्ट और महान् बनाने का राजमार्ग है। जिस तरह आग में तपाकर, कसौटी पर घिसकर सोने की परख होती है, उसी तरह सत्य की कसौटी पर खरा उतरने के लिए आने वाली कठिनाइयों का सामना करना ही उचित भी है और आवश्यक भी।

जो यह चाहते हैं कि कोई हमारी सहायता करे, हमें जीवन पथ पर चलने की दिशा दिखावे,  वे अंधकार में ही निवास करते हैं। ऐसी स्थिति से समाज में दासवृत्ति को जीवन और पोषण मिलता है, क्योंकि तब हम दूसरों का मुँह ताकते हैं। दूसरों से आशा करते हैं, ऐसे परावलम्बी व्यक्ति कभी सफलता प्राप्त नहीं कर सकते, न अपनी स्वतंत्रता की रक्षा ही कर सकते हैं। हमें अपने ही पैरों पर आगे बढ़ना होगा। अपने आप ही अपनी मंजिल का रास्ता खोजना होगा, अपने पुरुषार्थ से ही अपने अधिकारों की रक्षा करनी होगी।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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