गुरुवार, 9 नवंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 09 Nov 2023

मन को सुसंस्कृत बनाया जाना चाहिए। उसे हित-अनहित में- अनौचित्य-औचित्य में अन्तर करना सिखाया जाना चाहिए। अब तक जो ढर्रा चलता रहा है उनमें वह विवेचन विश्लेषण करना उसे सिखाया ही नहीं गया, फिर बेचारा करता क्या? जो समीपवर्ती लोगों से देखता सुनता रहा उसकी बन्दर की तरह नकल और तोते की तरह रटन्त हो जाती है। सुप्रचलन का स्वरूप कभी देखा ही नहीं, सुसंस्कारियों, विचारशीलों के साथ रहा ही नहीं तो उस मार्ग पर चलना कैसे सीखें? 

मन की शक्ति अपार है। उसकी सत्ता शरीर और आत्मा को मिलाकर ऐसी बनी है जैसी सीप और स्वाति कण का समन्वय होने से मोती बनता है। जीवन सम्पदा का वही व्यवस्थापक और कोषाध्यक्ष है। साथ ही उसे इतना अधिकार भी प्राप्त है कि वह अपने मित्र को- अपने साधनों को पूरी तरह भला या बुरा उपयोग कर सके। इतने सत्तावान का अनगढ़ होना सचमुच ही एक सिर धुनने लायक दुर्भाग्य है।  

“अन्य व्यक्ति को मारने के लिये तलवार ढाल आदि शस्त्रों की आवश्यकता पड़ती है, पर अपने को मारना हो तो एक नहन्नी (नाखून काटने वाली ही काफी होती है। इसी प्रकार जन-समाज को उपदेश देने के लिये मनुष्य को अनेक शास्त्रों के अभ्यास की आवश्यकता पड़ती है, पर यदि स्वयं धर्म प्राप्त करना हो तो केवल एक ही धर्म-वाक्य के ऊपर विश्वास रखकर वैसा किया जा सकता है।”  

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 जीवन के मूल्यवान क्षणों का सद्व्यय (भाग २)

आज के मनुष्य का एक प्रधान शत्रु-आलस्य है तनिक सा कार्य करने पर ही वह ऐसी मनोभावना बना लेता है कि ‘अब मैं थक गया हूँ, मैंने बहुत काम कर लिया है। अब थोड़ी देर विश्राम या मनोरंजन कर लूँ।’ ऐसी मानसिक निर्बलता का विचार मन में आते ही वह शय्या पर लेट जाता है अथवा सिनेमा में जा पहुँचता है या सैर को निकल जाता है और मित्र-मण्डली में व्यर्थ की गपशप करता है।

यदि आधुनिक मानव अपनी कुशाग्रता, तीव्रता, कुशलता और विकास का घमंड करता है तो उसे यह भी स्मरण रखना चाहिए कि समय की इतनी बरबादी पहले कभी नहीं की गयी। कठोर एकाग्रता वाले कार्यों से वह दूर भागता है। विद्यार्थी-समुदाय कठिन और गम्भीर विषयों से भागते हैं। यह भी आलस्य-जन्य विकार का एक रूप है। वे श्रम कम करते हैं, विश्राम और मनोरंजन अधिक चाहते हैं। स्कूल-कालेज में पाँच घंटे रहेंगे तो उसकी चर्चा सर्वत्र करते फिरेंगे, किन्तु उन्नीस घंटे जो समय नष्ट करेंगे, उसका कहीं जिक्र तक न करेंगे। यह जीवन का अपव्यय है।

व्यापारियों को लीजिये। बड़े-बड़े शहरों के उन दुकानदारों को छोड़ दीजिये, जो वास्तव में व्यस्त हैं। अधिकाँश व्यापारी बैठे रहते हैं और चाहें तो सोकर समय नष्ट करने के स्थान पर कोई पुस्तक पढ़ सकते हैं और ज्ञान-वर्धन कर सकते हैं, रात्रि-स्कूलों में सम्मिलित हो सकते हैं, मन्दिरों में पूजन-भजन के लिए जा सकते हैं, सत्संग-स्वाध्याय कर सकते हैं। प्राइवेट परीक्षाओं में बैठ सकते हैं। निरर्थक कार्यों-जैसे व्यर्थ की गपशप, मित्रों के साथ इधर-उधर घूमना-फिरना, सिनेमा, अधिक सोना, देर से जागना, हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहना- से बच सकते हैं।

दिन-रात के चौबीस घंटे रोज बीतते हैं, आगे भी बीतते जायेंगे। असंख्य व्यक्तियों के जीवन बीतते जाते हैं। यदि हम मन में दृढ़तापूर्वक यह ठान लें कि हमें अपने दिन से सबसे अधिक लाभ उठाना है, प्रत्येक क्षण का सर्वाधिक सुन्दर तरीके से उपयोग करना है तो कई गुना लाभ उठा सकते हैं।

📖 अखण्ड ज्योति, फरवरी १९५७ पृष्ठ ५

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1957/February/v1.5


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