सोमवार, 13 मार्च 2023

👉 आध्यात्म पथ के पथिकों! अपरिग्रही बनो!!

मन से हर एक को सदैव अपरिग्रही होना चाहिए। आदर्श यही सामने रहना चाहिए कि सच्ची जरूरतें पूरी करने के लिए ही कमायें, जोड़ने जमा करने या ऐश उड़ाने के लिए नहीं। यदि गरीब आदमी लखपती बनने के मनसूबे बाँधता है तो वह परिग्रही है। धन वैभव के बारे में यही आदर्श निश्चित किया होना चाहिए कि सच्ची जरूरतों की पूर्ति के लिए कमायेंगे, उतनी ही इच्छा करेंगे, उससे अधिक संग्रह न करेंगे। धन को जीवन का उद्देश्य नहीं वरन् एक साधन बनाना चाहिए।

“आत्मोन्नति और परमार्थ” जीवनोद्देश्य तो यही होना चाहिए। जीवन धारण करने योग्य पैसा कमाने के अतिरिक्त शेष समय इन्हीं कार्यों में लगाना चाहिए। पैसे की आज जो सर्वभक्षी तृष्णा हर एक के मन में दावानल की तरह धधक रही है यह सर्वथा त्याज्य है। सादगी और अपरिग्रह में सच्चा आनन्द है। मनुष्य उतना ही आनन्दित रह सकता है जितना अपरिग्रही होगा। परिग्रही के सिर पर तो अशान्ति और अनीति सवार रहती है। इसी मर्म को समझते हुए योग शास्त्र के आचार्यों ने आध्यात्म पथ के पथिक को अपरिग्रही बनने का आदेश किया है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1944/February/v1


All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 आत्मविकास के कुछ उपाय:-

यदि आप आत्मनिर्भर हैं, तो स्मरण रखिए आपने ऐसी सम्पदा प्राप्त कर ली है, जो सम्पद् में, विपद् और आनन्द के क्षणों में आपको सदैव ऊँचा उठायेगी। बस, आपको आवश्यक यह है कि प्रतिदिन कुछ नवीन, कुछ उपयोगी ज्ञान की अभिवृद्धि करते रहें, ज्ञान के कोष को बढ़ाते रहें, आगे बढ़ते रहें।

यदि आप आत्म प्रताड़ना करते हैं, अपने विषय में हीनभाव रखते हैं, तो आप भावनाओं की बीमारी से त्रस्त है। यह बीमारी आपको आपकी महत्ता का अनुभव नहीं होने देती। इससे मुक्ति का उपाय यह है कि आप कार्यों को बिना भावना की परवाह किए सम्पन्न करते जाइए। यह नियम बना लीजिए कि अपने किए हुए किसी भी कार्य की बुराई न करेंगे, अपने विषय में उच्च और पवित्र धारणाएँ बना लीजिए और उन्हें पुष्ट करते रहिए। कार्य करने से आप की हीनता लुप्त होगी। अधिक सोचने से वह पुष्ट होती है। सोचिए कम कार्य अधिक कीजिए । जो व्यक्ति अपनी अधिक टीका-टिप्पणी करता है, और गलतियाँ निकाला करता है, वह आपका विकास एवं परिष्कार रोक लेता है।

आप अपने संतोष और उत्साह के लिए दूसरों पर निर्भर मत रहिए। दूसरों का अनुकरण कीजिए। ऐसा करने से आपकी मौलिकता, गुण और विशेषताएं सभी प्रकट न होंगी। स्वयं सोचिए कि क्या उत्तम है? वही कीजिए चाहे कोई कुछ भी कहे। आपकी विशेषताएं प्रकाश में आयेंगी और लोग चमत्कृत होंगे।

यदि आप घमंडी, अहंभाव से भरे हुए, दूसरों से प्रशंसा चाहने वाले या क्रोधी हैं, तो उसका अभिप्राय यह है कि आप अंदर ही अंदर अपनी हीनता से डरते हैं। हीनता की प्रतिक्रिया आपके मानसिक जगत् में ही हो रही है।

अपनी वेशभूषा और शृंगार की अधिक देख-रेख करने वाला व्यक्ति बाहरी टीपटाप में विकास और गंभीरता की कमी छिपाता है। वास्तविक परिपक्वता आन्तरिक एवं बौद्धिक है। जो व्यक्ति सही अर्थों में विकसित हुआ है, उसकी पोशाक साधारण होती है, वह गहरे रंग नहीं पसंद करता, आभूषणों से घृणा करता है, सरल सीधा स्वच्छ और भले मानुषों जैसा पोशाक पहनता है।

यदि आप अपने प्रति ईमानदार हैं, तो न तो आप अपनी अच्छाई छिपायेंगे, न झूठा शेखी बघारेंगे। आप समझेंगे कि मनुष्य होने के नाते आपकी भी दूसरों की तरह कुछ कमजोरियाँ हैं। आप अपने को दूसरों से यदि अच्छा नहीं समझेंगे, तो बुरा भी न मानेंगे। आप अपनी विशेषताएं प्रकट करेंगे। प्रत्येक व्यक्ति अपनी विशेषताएं रखता है। यदि व्यक्तित्व का ठीक तरह अध्ययन किया जाय, तो आप भी महान बन सकते हैं।

यदि आप झूठे दिखावे को पसन्द नहीं करते हैं, इसका अभिप्राय यह है कि आप अपने मन में आत्मा की आवाज के अनुसार सत्य का अन्वेषण कर रहे हैं। आप उन्नति की ओर उठ रहे हैं।

यदि आप सच्चे हैं, तो आप अपने या दूसरे किसी के विषय में भी बढ़ा-चढ़ा कर मिथ्या भाषण करेंगे। आपके कार्य कुशलता लिए हुए होंगे और आप दूसरों को दिखाकर व्यर्थ का उपहास न करेंगे। यदि आज अपने प्रति सच्चे नहीं हैं, तो आप स्वार्थ की रीतियों से दूसरों को धोखा देने का प्रयत्न करेंगे। जैसे आप वास्तव में नहीं हैं, वैसा दिखाकर आप अपनी महत्ता कम कर रहे हैं। यदि आप जैसे आप हैं, वैसे ही दूसरों को दिखाते हैं, तो आपका व्यक्ति अपने स्वाभाविक रूप में विकसित होता रहेगा।

जब तक मनुष्य अपने मानसिक जगत् में परिपक्वता प्राप्त नहीं करता, छोटी-मोटी बातों में फंसा रहता है, अपनी भावनाओं पर संयम नहीं रख पाता तब तक वह बच्चा ही बना हुआ है।

मानसिक दृष्टिकोण से बालक न बनिए। संसार की विभीषिकाओं, आपत्तियों और संघर्ष को सहन करने की आत्मशक्ति का निरन्तर विकास करते रहिए।

📖 अखण्ड ज्योति मार्च 1950 पृष्ठ 13

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 सच्चा सुधार

मनुष्य में अपूर्णता और त्रुटियाँ भरी हुई हैं, इससे अज्ञानवश बहुत से पाप होते रहते हैं। समय आने पर जिनके लिए वह स्वयं पश्चाताप करता है और सुधार के मार्ग पर चल खड़ा होता है। इसलिए किसी व्यक्ति का सच्चा दोष देखने पर भी हमें चाहियें, कि हम उसके प्रति घृणा द्वेष, क्रोध अथवा और किसी प्रकार का अपमान पूर्वक बर्ताव न करें अर्थात् सख्ती से सुधार की चेष्टा न करे।

बहुत बार हमारे क्रोध और अपमान को दोषी व्यक्ति सह लेता है। क्योंकि पाप के भय से वह भयभीत होता है। उसकी दूषित वृत्ति कुछ समय के लिए दब जाती है, परन्तु सर्वदा के लिए उसका नाश नहीं होता। हमारे द्वारा किये गये अपमान का बदला लेना उसके मन में खटकता रहता है, जो उसकी दोषाग्नी में घृत जैसा काम करता है।

हमारे लिए उसकी दोष पूर्ण चेष्टा होने शुरू हो जाती है, जो काम, क्रोध और हिंसा की वृत्तियाँ को जगा कर हमारे पतन का कारण होती है, यदि किसी का सच्चा सुधार करना हो तो उसके दोषों को जड़ से उखाड़ना चाहियें।

प्रेम, सेवा, स्वार्थ त्याग, द्वारा उसके मन पर अधिकार करना चाहियें क्योंकि मन ही अच्छी बुरी वृत्तियों का स्थान है। परन्तु इस प्रकार दोषों को दूर करने के लिए असीम स्वार्थ त्याग और आत्म विश्वास की आवश्यकता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform > 👉 शांतिकुंज हरिद्वार के प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए Youtube Channel `S...