शनिवार, 30 जुलाई 2016

👉 समाधि के सोपान (भाग 3) 30 July 2016


🔴 पुन: वह घडी समीप है। दिन संध्या में- समा रहा है। बाहर सब कुछ शांत है। और जब प्रकृति शांत होती है तब आत्मा अधिक शांतिपूर्वक, अधिक तत्परता से ह्र्दय की अन्तर्गुहा में समाहित होती है। इन्द्रिय तथा उसकी गतिविधियों को शांत होने दो। जीवन अपने आप में छोटा है, इच्छायें उच्छंखल है। अन्तत: थोड़ा समय तो ईश्वर को दो। वह थोड़ा ही चाहता है। केवल इतना ही कि तुम अपने आपको पहचानो क्योकि स्वयं को पहचान कर ही तुम- ईश्वर को पहचान पाते हो। क्योकि ईश्वर और आत्मा एक ही है। कुछ लौग कहते हैं कि है मानव, स्मरण रखो तुम धूलिकण के समान हो। यह शरीर तथा मन के संबंध में ही सत्य है। किन्तु- उच्चतर, अधिक बलवान, अधिक सत्य, अधिक पवित्र अनुभूति कहती है- हे मानव, स्मरण रख कि तू आत्मा है।

🔵 प्रभु कहते हैं तुम अविनाशी और अनश्वर आत्मा हो। अन्य सभी का नाश हो जाता है। रूप कितना भी सशक्त क्यों न हो उसका नाश होता ही है। मृत्यु और विनाश सभी रूपों को नियति है। विचार परिवर्तन के अधीन है। व्यक्तित्व विचार और रूप के ताने बाने से बना है। इसलिए हे आत्मन निरपेक्ष हो जाओ। स्मरण रखो कि तुम विचार और रूप के परे आत्मा हो। तुम ईश्वर के साथ एक रूप हो इसी बोध में सभी गुण सन्निहित हैं। मात्र इसी बोध में तुम अमर हो। इस बोध में ही तुम शुद्ध और पवित्र हो।

🔴 स्वामी बनने की चेष्टा न करो, तुम स्वयं स्वामी हो। तुम्हारे लिए बनने जैसी कोई बात नहीं है। तुम हो ही। होने की प्रक्रिया कितनी भी उदात्त क्यों न प्रतीत हो वह घड़ी अवश्य आयेगी जब तुम जानोगे कि प्रगति समय की सीमा में है, जबकि 'पूर्णता' शाश्वत में। और तुम समय के नहीं हो! तुम हो शाश्वतत्व के!

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

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