रविवार, 29 मार्च 2020

👉 पारिवारिक कलह और मनमुटाव कारण तथा निवारण (भाग ७)

पिता के प्रति पुत्र के तीन कर्त्तव्य हैं - 1-स्नेह, 2-सम्मान तथा आज्ञा पालन। जिस युवक ने पिता का, प्रत्येक बुजुर्ग का आदर करना सीखा है, वही आत्मिक शान्ति का अनुभव कर सकता है।

स्मरण रखिये, आप जो कुछ गुप्त रखते हैं, दूसरों के समक्ष कहते हुए शर्माते है, वह निंदय है। जब कोई युवक पिता के कानों में बात डालते हुए हिचके, तो उसे तुरन्त सम्भल जाना चाहिए क्योंकि बुरे मार्ग पर चलने का उपक्रम कर रहा है। उचित अनुचित जानने का उपाय यह है कि आप उसे परिवार के सामने प्रकट कर सकें। जब किसी पदार्थ का रासायनिक विश्लेषण हो जाता है, तब सभी उसके शुभ अशुभ अंशों को जान जाते हैं। परिवार में यह विश्लेषण तब होता है, तब युवक का कार्य परिवार के सदस्यों के सम्मुख आता है।

परिवार से युवक का मन तोड़ने में विशेष हाथ पत्नी का होता है। उसे अपने स्व का बलिदान कर संपूर्ण परिवार की उन्नति का ध्यान रखना चाहिए। समझदार गृहणी समस्त परिवार को सम्भाल लेती है।

आज के युवक प्रेम-विवाह से प्रभावित हैं। जिसे प्रेम-विवाह कहा जाता है, वह क्षणिक वासना का ताँडव, थोथी समझ की मूर्खता, अदूरदर्शिता है। जिसे ये लोग प्रेम समझते हैं, वह वासना के अलावा और कुछ नहीं होता। उसका उफान शान्त होते ही प्रेम-विवाह टूक टूक हो जाता है। चुनावों में भारी भूलें मालूम होती है। समाज में प्रतिष्ठा का नाश हो जाता है। ऐसा व्यक्ति सन्देह की दृष्टि से देखा जाता है।

अनेक पुत्र विचारों में विभिन्नता होने के कारण झगड़ों का कारण बनते हैं। संभव है युवक पिता से अधिक शिक्षक हो। किन्तु पिता का अनुभव अपेक्षाकृत अधिक होता है। पुत्र को उदारतापूर्वक अपने विचार अपने पास रखने चाहिए और व्यर्थ के संपर्क से बचना चाहिए।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1951 पृष्ठ 25

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1951/January/v1.25

👉 बासन्ती रंग व उमंग

वसन्त में रंग व उमंग है। ये बासन्ती रंग व उमंग सदा ही भारतीय संस्कृति व संस्कारों से सराबोर हैं। बासन्ती बयार में ये घुले-मिले हैं। ये रंग हैं पवित्रता के, उमंग हैं प्रखरता की। इन रंगों में भगवान् का भावभरा स्मरण छलकता है, तो उमंग में सद्गुरु के प्रति समर्पण की झलक झिलमिलाती है। इस बासन्ती रंग में श्रद्धा के सजल आँसुओं के साथ इसकी उमंग में प्रज्ञा का प्रखर तेज है। इन रंगों में निष्ठा की अनूठी चमक के साथ इसकी उमंगों में अटूट नैतिकता सदा छायी रहती है।
  
वसन्त के ये रंग यदि विवेक का प्रकाश अपने में समेटे हैं, तो इसकी उमंगों में वैराग्य की प्रभा है। वसन्त के इन रंगों की अद्भुत छटा में त्याग की पुकार है और इसकी उमंगों में बलिदानी शौर्य की महाऊर्जा है। वसन्त के इन्हीं रंगों व उमंगों ने हमेशा ही भारतीय संस्कृति को संजीवनी व संस्कारों को नवजीवन दिया है। इन बासन्ती रंगों व उमंगों को अपने में धारण करके भारत माता की सुपुत्रियों व सपूतों ने हँसते-हँसते स्वयं को बलिदान करके सद्ज्ञान व सन्मार्ग को प्रकाशित किया है।
  
यदि कभी काल के कुटिल कुचक्र के कारण बासन्ती रंग व उमंग फीके पड़े हैं, तो इसी के साथ भारत की संस्कृति व संस्कारों की छवि भी धूमिल हुई है। जब कभी किसी ने बासन्ती रंग व उमंग को प्रकाशित व ऊर्जावान् करने का सत्प्रयास किए तो उसी के साथ भारत की संस्कृति व संस्कार भी अपने आप समुज्ज्वल हो गए। युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य ने भी इसी प्रक्रिया को अपनाकर युग परिवर्तन की बासन्ती बयार प्रवाहित की। उनके द्वारा प्रेरित व प्रवाहित परिवर्तन की बयार में बासन्ती रंगों का अनूठा उनका प्यार है, तो साथ हैं बासन्ती उमंगों के तपपुञ्ज अंगार भी। जो उन्हीं के इस जन्मशताब्दी वर्ष में नव वसन्त का सन्देश सुना रहे हैं।

✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ २१०

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform > 👉 शांतिकुंज हरिद्वार के प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए Youtube Channel `S...