रविवार, 30 अक्तूबर 2016
👉 मैं क्या हूँ ? What Am I ? (भाग 15)
🌞 पहला अध्याय
🔴 अध्यात्म शास्त्र कहता है कि- ऐ अविनाशी आत्माओ! तुम तुच्छ नहीं, महान हो। तुम्हें किसी अशक्तता का अनुभव करना या कुछ माँगना नहीं है। तुम अनन्त शक्तिशाली हो, तुम्हारे बल का पारावार नहीं। जिन साधनों को लेकर तुम अवतीर्ण हुए हो, वे अचूक ब्रह्मास्त्र हैं। इनकी शक्ति अनेक इन्द्रवज्रों से अधिक है। सफलता और आनन्द तुम्हारा जन्मजात अधिकार है। उठो! अपने को, अपने हथियारों को और काम को भली प्रकार पहचानो और बुद्धिपूर्वक जुट जाओ। फिर देखें, कैसे वह चीजें नहीं मिलतीं, जिन्हें तुम चाहते हो। तुम कल्पवृक्ष हो, कामधेनु हो, सफलता की साक्षात् मूर्ति हो। भय और निराशा का कण भी तुम्हारी पवित्र रचना में नहीं लगाया गया है। यह लो अपना अधिकार सँभालो।
🔴 यह पुस्तक बतावेगी कि तुम शरीर नहीं हो, जीव नहीं हो, वरन् ईश्वर हो। शरीर की, मन की जितनी भी महान् शक्तियाँ हैं, वे तुम्हारे औजार हैं। इन्द्रियों के तुम गुलाम नहीं हो, आदतें तुम्हें मजबूर नहीं कर सकतीं, मानसिक विकारों का कोई अस्तित्व नहीं, अपने को और अपने वस्त्रों को ठीक तरह से पहचान लो। फिर जीव का स्वाभाविक धर्म उनका ठीक उपयोग करने लगेगा। भ्रमरहित और तत्त्वदर्शी बुद्धि से हर काम कुशलतापूर्वक किया जा सकता है। यही कर्म कौशल योग है। गीता कहती है- 'योगः कर्मसु कौशलम्।' तुम ऐसे ही कुशल योगी बनो। लौकिक और पारलौकिक कार्यों में तुम अपना उचित स्थान प्राप्त करते हुए सफलता प्राप्त कर सको और निरन्तर विकास की ओर बढ़ते चलो, यही इस साधन का उद्देश्य है।
ईश्वर तुम्हें इसी पथ पर प्रेरित करे। ..........
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🔴 अध्यात्म शास्त्र कहता है कि- ऐ अविनाशी आत्माओ! तुम तुच्छ नहीं, महान हो। तुम्हें किसी अशक्तता का अनुभव करना या कुछ माँगना नहीं है। तुम अनन्त शक्तिशाली हो, तुम्हारे बल का पारावार नहीं। जिन साधनों को लेकर तुम अवतीर्ण हुए हो, वे अचूक ब्रह्मास्त्र हैं। इनकी शक्ति अनेक इन्द्रवज्रों से अधिक है। सफलता और आनन्द तुम्हारा जन्मजात अधिकार है। उठो! अपने को, अपने हथियारों को और काम को भली प्रकार पहचानो और बुद्धिपूर्वक जुट जाओ। फिर देखें, कैसे वह चीजें नहीं मिलतीं, जिन्हें तुम चाहते हो। तुम कल्पवृक्ष हो, कामधेनु हो, सफलता की साक्षात् मूर्ति हो। भय और निराशा का कण भी तुम्हारी पवित्र रचना में नहीं लगाया गया है। यह लो अपना अधिकार सँभालो।
🔴 यह पुस्तक बतावेगी कि तुम शरीर नहीं हो, जीव नहीं हो, वरन् ईश्वर हो। शरीर की, मन की जितनी भी महान् शक्तियाँ हैं, वे तुम्हारे औजार हैं। इन्द्रियों के तुम गुलाम नहीं हो, आदतें तुम्हें मजबूर नहीं कर सकतीं, मानसिक विकारों का कोई अस्तित्व नहीं, अपने को और अपने वस्त्रों को ठीक तरह से पहचान लो। फिर जीव का स्वाभाविक धर्म उनका ठीक उपयोग करने लगेगा। भ्रमरहित और तत्त्वदर्शी बुद्धि से हर काम कुशलतापूर्वक किया जा सकता है। यही कर्म कौशल योग है। गीता कहती है- 'योगः कर्मसु कौशलम्।' तुम ऐसे ही कुशल योगी बनो। लौकिक और पारलौकिक कार्यों में तुम अपना उचित स्थान प्राप्त करते हुए सफलता प्राप्त कर सको और निरन्तर विकास की ओर बढ़ते चलो, यही इस साधन का उद्देश्य है।
ईश्वर तुम्हें इसी पथ पर प्रेरित करे। ..........
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
👉 हमारी युग निर्माण योजना भाग 3
🌹 युग की वह पुकार जिसे पूरा होना ही है
🔵 जीवन संघर्ष अब इतना कठिन होता जाता है कि सुख शान्ति के साथ जिन्दगी के दिन पूरे कर लेना अब सरल नहीं रहा। हर व्यक्ति अपनी-अपनी समस्याओं में उलझा हुआ है। चिन्ता, भय, विक्षोभ और परेशानी से उसका चित्त अशान्त बना रहता है। शारीरिक व्यथाएं, मानसिक परेशानियां, पारस्परिक, दुर्भाव, न सुलझने वाली उलझनें, आर्थिक तंगी, अनीति भरे आक्रमण, छल और विश्वासघात, प्रवंचना, विडम्बना, असफलताएं और आपत्तियां, घात-प्रतिघात और उतार-चढ़ाव का जोर इतना बढ़ गया है कि साधारण रीति से जीवन व्यतीत कर सकना कठिन होता जाता है।
🔴 संघर्ष इतना प्रबल हो चला है कि जन-साधारण को निरन्तर विक्षुब्ध रहना पड़ता है। इस प्रबल मानसिक दबाव को कितने ही लोग सहन नहीं कर पाते, फलस्वरूप, आत्म-हत्याओं की, पागलों की, निराश हताश और दीन-दुखियों की संख्या दिन-दिन बढ़ती ही चली जा रही है।
🔵 व्यक्तिगत जीवन में हर आदमी को निराशा, तंगी और चिन्ता घेरे हुए हैं। सामाजिक जीवन में मनुष्य अपने को चारों और भेड़ियों से घिरी हुई स्थिति में फंसा अनुभव करता है। राजनीति इतनी विषम हो गई है कि उसमें सत्ताधारी लोगों की मनमानी के आगे जनहित को ठुकराया ही जाता रहता है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अविश्वास और भय का इतना बाहुल्य है कि अणु-युद्ध में सारी मानव सभ्यता का विनाश एक-दो घण्टे के भीतर-भीतर ही हो जाने का खतरा नंगी तलवार की तरह दुनिया के सिर पर लटक रहा है।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🔵 जीवन संघर्ष अब इतना कठिन होता जाता है कि सुख शान्ति के साथ जिन्दगी के दिन पूरे कर लेना अब सरल नहीं रहा। हर व्यक्ति अपनी-अपनी समस्याओं में उलझा हुआ है। चिन्ता, भय, विक्षोभ और परेशानी से उसका चित्त अशान्त बना रहता है। शारीरिक व्यथाएं, मानसिक परेशानियां, पारस्परिक, दुर्भाव, न सुलझने वाली उलझनें, आर्थिक तंगी, अनीति भरे आक्रमण, छल और विश्वासघात, प्रवंचना, विडम्बना, असफलताएं और आपत्तियां, घात-प्रतिघात और उतार-चढ़ाव का जोर इतना बढ़ गया है कि साधारण रीति से जीवन व्यतीत कर सकना कठिन होता जाता है।
🔴 संघर्ष इतना प्रबल हो चला है कि जन-साधारण को निरन्तर विक्षुब्ध रहना पड़ता है। इस प्रबल मानसिक दबाव को कितने ही लोग सहन नहीं कर पाते, फलस्वरूप, आत्म-हत्याओं की, पागलों की, निराश हताश और दीन-दुखियों की संख्या दिन-दिन बढ़ती ही चली जा रही है।
🔵 व्यक्तिगत जीवन में हर आदमी को निराशा, तंगी और चिन्ता घेरे हुए हैं। सामाजिक जीवन में मनुष्य अपने को चारों और भेड़ियों से घिरी हुई स्थिति में फंसा अनुभव करता है। राजनीति इतनी विषम हो गई है कि उसमें सत्ताधारी लोगों की मनमानी के आगे जनहित को ठुकराया ही जाता रहता है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अविश्वास और भय का इतना बाहुल्य है कि अणु-युद्ध में सारी मानव सभ्यता का विनाश एक-दो घण्टे के भीतर-भीतर ही हो जाने का खतरा नंगी तलवार की तरह दुनिया के सिर पर लटक रहा है।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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