सोमवार, 11 अप्रैल 2022

👉 किसी का जी न दुखाया करो (भाग 1)

भाई! मनुष्यता के नाते तो किसी का मन न दुःखित किया करो। सम्भव है उसमें कुछ कमियाँ हों, कुछ बुराइयाँ भी हों। यह भी हो सकता है कि उसके विचार तुम से न मिलते हों, या तुम्हारी राय में उसके सिद्धान्त ठीक न हों। पर क्या इसीलिए तुम उसके मन पर अपने वाक्-प्रहारों द्वारा आघात पहुँचाओगे? तुम यह न भूल जाओ कि वह मनुष्य है, उसके भी मन होता है, तुम्हारे कठोर वचन सुनकर उसके भी हृदय में ठेस पहुँचती है और उसको भी अपने आत्माभिमान का अपनी सत्यता का अपनी मनुष्यता के अधिकार का कुछ मान है।

सम्भव है तुम्हारा वाक् चातुर्य इतना अच्छा हो कि तुम उसे अपनी युक्तियों द्वारा हरा दो। सम्भव है वह व्यर्थ विवाद करना ठीक न समझे और तुम अपनी टेक द्वारा उसे झुका दो। यह भी सम्भव है कि उसका ज्ञान अपूर्ण हो और वह बार बार तुमसे हार खाता रहे। पर इन अपने विवादों में ऐसे साधनों का प्रयोग तो न करो जो उसके हृदय पर मार्मिक चोट करते हों। संसार में सुन्दर युक्तियाँ क्या कम हैं? क्या ऐसी बातों का पूर्णतः अभाव ही हो गया है जो उसे परास्त भी कर दे, पर उस पर चोट न करें? क्या ऐसे तर्क संसार से चल बसे हैं जिनसे तुम अपना पक्ष भी स्थापित कर लो और उसका भी जी न दुःखे?

तुम भूल न जाओ कि संसार का सत्य तुम्हारे ही पल्ले नहीं पड़ गया है। यह भी याद रखो कि जो कुछ तुम सोचते हो वही पूर्णतः सत्य नहीं भी हो सकता है। तुम्हारे सभी विचार अच्छे हैं और दूसरे के सभी खराब, ऐसा भी तो नहीं कहा जा सकता। तुम आक्षेप कर सकते हो कि उसके खराब विचारों का हम विरोध करते हैं। विरोध करो। तुम्हें कौन रोक सकता है? पर इसमें दूसरे के जी को व्यथित करने की क्या आवश्यकता है? तुम्हारा मार्ग सही है, ठीक है। तुम दूसरों को सन्मार्ग पर लाना चाहते हो, उत्तम है। युक्तियों द्वारा दूसरे को परास्त करके स्वपक्ष स्थापित करना चाहते हो- श्रेष्ठ है। पर क्या ये कार्य बिना दूसरे के चित्त को पीड़ा पहुँचाये नहीं हो सकते?

क्रमशः जारी
-अखण्ड ज्योति फरवरी 1948 पृष्ठ 24

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1948/February/v1.24

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👉 आप पढ़े-लिखे लोगों तक हमारी आवाज पहुंचा दीजिए

हमारे विचारों को आप पढ़िए और हमारी आग की चिनगारी को लोगों में फैला दीजिए। आप जीवन की वास्तविकता के सिद्धान्तों को समझिए। ख्याली दुनियां में से निकलिए। आपके नजदीक जितने भी आदमी हैं उनमें आप हमारे विचारों को फैला दीजिए। यह काम आप अपने काम के साथ-साथ भी कर सकते हैं। आप युग साहित्य लेकर अपने पड़ोसियों को पढ़ाना शुरू कर दीजिए। उनको हमारे विचार दीजिए। हमको आगे बढ़ने दीजिए, सम्पर्क बनाने दीजिए ताकि हम उन विचारशीलों के पास, शिक्षितों के पास जाने में सफल हो सकें। इससे कम में हमारा काम बनने वाला नहीं।

जो हमारा विचार पढ़ेगा-समझेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं। दुनियां को हम पलट देने का दावा जो करते हैं वह सिद्धान्तों से नहीं, बल्कि अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए।
अब हमको नई पीढ़ी चाहिए। इसके लिए आप पढ़े-लिखे विचारशीलों में जाइए। उनकी खुशामद कीजिए, दरवाजा खटखटाइए और किसी भी तरह हमारी विचारधारा उन तक पहुंचाइए। हमने सारे विश्व को अपना कार्यक्षेत्र बनाया है। विचार क्रान्ति अभियान आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इस युग की सभी समस्याएं इसलिए पैदा हुई हैं कि आदमी की अक्ल खराब हो गई है।

न पैसा कम है, न कोई चीज कम है, बस अक्ल खराब है। बस इस अक्ल को ठीक करने के लिए ही हमें विचार क्रान्ति में हिस्सा लेना चाहिए। व्यक्ति, समाज, देश, धर्म और संस्कृति के विकास एवं विस्तार करने तथा मानवीय भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए ज्ञान यज्ञ का विस्तार करना चाहिए। आप घर-घर में जाइए, जन-जन के पास जाइए। अलख जगाइए। नवयुग का सन्देश सुनाइए। हमारा साहित्य पढ़वाइए। अगर आपने यह किया तो हमारा दावा है कि युग अवश्य बदलेगा।

~पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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