👉 बड़े कामों के लिए वरिष्ठ प्रतिभाएँ
🔶 धूर्तता इन दिनों इस कदर बढ़ी हुई है कि वह कानूनी दंड व्यवस्था से लेकर धर्मोपदेश स्तर की नीति मर्यादा को भी अँगूठा दिखाती है। सदाशयता का जोर-शोर से समर्थन करने वाले ही जब नये-नये मुखौटे बदलकर कृत्य-कुकृत्य करने की दुरभिसंधियाँ रचते रहे हैं, तो उन्हें कौन किस प्रकार समझाए? जागते हुए को कोई क्या कहे? क्या सोते से जाग पड़ने की आवश्यकता समझाए? प्रचार माध्यम अब अपनी विश्वसनीयता खोते चले जा रहे हैं, क्योंकि उपदेष्टा ही कथन के ठीक विपरीत आचरण करें तो उसे क्या कहकर, किस प्रकार समझाया जाए? उसकी बात पर कोई क्यों और किस आधार पर, कितना विश्वास करे?
🔷 उपाय एक ही शेष रह जाता है कि ऐसी प्रतिभाएँ नये सिरे से उभरें, जो अपना निज का आदर्श प्रस्तुत करते हुए सिद्ध करें कि सही मार्ग पर चलना न तो घाटे का सौदा है, न असंभव और अव्यवहारिक। खरा उदाहरण प्रस्तुत करना ही एकमात्र ऐसा उपाय अभी भी शेष है, जिसके आधार पर आदर्श अपनाने के लिए लोगों को सहमत एवं प्रोत्साहित किया जा सकता है। चोर, जुआरी, लावारिस, व्यभिचारी, नशेबाज, अनाचारी जब अपनी कथनी और करनी में एकता दिखाकर अनेकों को अपने साथ चलने के लिए सहमत कर सकते हैं, तो आदर्शों का अनुकरण करने के लिए तैयार करना भी कठिन नहीं है।
🔶 प्राचीन काल में ऋषि ऐसे ही जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया करते थे। उच्च आदर्शों के अनुरूप स्वयं के आचरण बनाने-ढालने के कष्टसाध्य क्रम को ही तपश्चर्या कहा जाता रहा है। वशिष्ठ हों या विश्वामित्र, चरक हों या याज्ञवल्क्य, सभी ने समय के अनुरूप नयी शोध की, उसे स्वयं पर घटित करके उसकी प्रामाणिकता सिद्ध की और इसी आधार पर सारे समाज को लाभान्वित किया। बुद्ध इसी आधार पर अवतार कहलाए और गाँधी इसी प्रक्रिया की कसौटी पर कसे जाकर राष्ट्रपिता का सम्मान पा सके। वर्तमान समय की समस्याएँ भी, युग प्रतिभाओं से इसी स्तर के समाधान चाहती हैं।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार पृष्ठ 45