मानवी साहसिकता और धर्मनिष्ठा का तकाजा है कि जहाँ भी अनीति पनपती देखें वहाँ उसके उन्मूलन का प्रयत्न करें। यह न सोचें कि जब अपने ऊपर सीधी विपत्ति आवेगी तब देखा जावेगा। आग अपने छप्पर में लगे तभी उसे बुझाया जाय, इसकी अपेक्षा यह अधिक उत्तम है कि जहाँ भी आग लगी है वहाँ बुझाने को-आत्म रक्षा का अग्रिम मोर्चा मानकर तुरन्त विनाश से लड़ पड़ा जाय। यदि सीधे टकराने की सामर्थ्य अथवा स्थिति न हो तो कम से कम असहयोग एवं विरोध की दृष्टि से जितना कुछ बन पड़े उतना तो करना ही चाहिए।
बुरे कार्य के कारण अपमानित होने का डर ही उन्नति का श्रीगणेश है। उन्नति करनी है तो अपने आपको अनन्त समझो और निश्चय करो कि मैं उन्नति पथ पर अग्रसर हूँ, परन्तु अपनी समझ और अपने निश्चय को यथार्थ बनाने के लिए कटिबद्ध हो जाओ। अपने उन्नत विचारों को शब्दों की अपेक्षा कार्य रूप में प्रकट करो। प्रयत्न करते हुए अपने आपको भूल जाओ। जब तुम अनन्त होने लगो तो अपने आपको महाशक्ति का अंश मानकर गौरव का अनुभव करो, परन्तु शरीर, बुद्धि और धन के अभिमान में चूर न हो जाओ।
भगवान् को इष्ट देव बनाकर उसे प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। इष्ट का अर्थ है-लक्ष्य। हम भगवान् के समतुल्य बनें। उसी की जैसी उदारता, व्यापकता, व्यवस्था, उत्कृष्टता, तत्परता अपनाएँ, यही हमारी रीति-नीति होनी चाहिए। इस दिशा में जितना मनोयोगपूर्वक आगे बढ़ा जाएगा उसी अनुपात से ईश्वरीय संपर्क का आनंद और अनुग्रह का लाभ मिलेगा।
बुरे कार्य के कारण अपमानित होने का डर ही उन्नति का श्रीगणेश है। उन्नति करनी है तो अपने आपको अनन्त समझो और निश्चय करो कि मैं उन्नति पथ पर अग्रसर हूँ, परन्तु अपनी समझ और अपने निश्चय को यथार्थ बनाने के लिए कटिबद्ध हो जाओ। अपने उन्नत विचारों को शब्दों की अपेक्षा कार्य रूप में प्रकट करो। प्रयत्न करते हुए अपने आपको भूल जाओ। जब तुम अनन्त होने लगो तो अपने आपको महाशक्ति का अंश मानकर गौरव का अनुभव करो, परन्तु शरीर, बुद्धि और धन के अभिमान में चूर न हो जाओ।
भगवान् को इष्ट देव बनाकर उसे प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। इष्ट का अर्थ है-लक्ष्य। हम भगवान् के समतुल्य बनें। उसी की जैसी उदारता, व्यापकता, व्यवस्था, उत्कृष्टता, तत्परता अपनाएँ, यही हमारी रीति-नीति होनी चाहिए। इस दिशा में जितना मनोयोगपूर्वक आगे बढ़ा जाएगा उसी अनुपात से ईश्वरीय संपर्क का आनंद और अनुग्रह का लाभ मिलेगा।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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