🌹 मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनाएँगे, तो युग अवश्य बदलेगा
🔴 परिस्थितियों का हमारे ऊपर बड़ा प्रभाव पड़ता है। आस-पास का जैसा वातावरण होता है, वैसा बनने और करने के लिए मनोभूमि का रुझान होता है और साधारण स्थिति के लोग उन परिस्थितियों के साँचे में ढल जाते हैं। घटनाएँ हमें प्रभावित करती हैं, व्यक्ति का प्रभाव अपने ऊपर पड़ता है। इतना होते हुए भी यह मानना पड़ेगा कि सबसे अधिक प्रभाव अपने विश्वासों का ही अपने ऊपर पड़ता है। परिस्थितियाँ किसी को तभी प्रभावित कर सकती हैं, जब मनुष्य उनके आगे सिर झुका दे। यदि उनके दबाव को अस्वीकार कर दिया जाए तो फिर कोई परिस्थिति किसी मनुष्य को अपने दबाव में देर तक नहीं रख सकती। विश्वासों की तुलना में परिस्थितियों को प्रभाव निश्चय ही नगण्य है।
🔵 कहते हैं कि भाग्य की रचना ब्रह्मा जी करते हैं। सुना जाता है कि कर्म-रेखाएँ जन्म से पहले ही लिख दी जाती हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि तकदीर के आगे तदवीर की नहीं चलती। ये किंवदंतियाँ एक सीमा तक ही सच हो सकती हैं। जन्म से अंधा, अपंग उत्पन्न हुआ या अशक्त, अविकसित व्यक्ति ऐसी विपत्ति सामने आ खड़ी होती है, जिससे बच सकना या रोका जा सकना अपने वश में नहीं होता। अग्निकाण्ड, भूकम्प, युद्ध, महामारी, अकाल-मृत्यु दुर्भिक्ष, रेल, मोटर आदि का पलट जाना, चोरी, डकैती आदि के कई अवसर ऐसे आ जाते हैं और ऐसी विपत्ति सामने आ खड़ी होती है, जिससे बच सकना या रोका जा सकना अपने वश में नहीं होता।
🔴 ऐसी कुछ घटनाओं के बारे में भाग्य या होतव्यता की बात मानकर संतोष किया जाता है। पीड़ित मनुष्य के आंतरिक विक्षोभ को शांत करने के लिए भाग्यवाद की तड़पन दूर करने के लिए डॉक्टर लोग नींद की गोली खिला देते हैं , मर्फिया का इंजेक्शन लगा देते हैं, कोकीन आदि की फुरहरी लगाकर पीड़ित स्थान को सुन्न कर देते हैं। ये विशेष परिस्थितियों के विशेष उपचार हैं। यदा-कदा ही ऐसी बात होती है, इसलिए इन्हें अपवाद ही कहा जाएगा।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.97
🔴 परिस्थितियों का हमारे ऊपर बड़ा प्रभाव पड़ता है। आस-पास का जैसा वातावरण होता है, वैसा बनने और करने के लिए मनोभूमि का रुझान होता है और साधारण स्थिति के लोग उन परिस्थितियों के साँचे में ढल जाते हैं। घटनाएँ हमें प्रभावित करती हैं, व्यक्ति का प्रभाव अपने ऊपर पड़ता है। इतना होते हुए भी यह मानना पड़ेगा कि सबसे अधिक प्रभाव अपने विश्वासों का ही अपने ऊपर पड़ता है। परिस्थितियाँ किसी को तभी प्रभावित कर सकती हैं, जब मनुष्य उनके आगे सिर झुका दे। यदि उनके दबाव को अस्वीकार कर दिया जाए तो फिर कोई परिस्थिति किसी मनुष्य को अपने दबाव में देर तक नहीं रख सकती। विश्वासों की तुलना में परिस्थितियों को प्रभाव निश्चय ही नगण्य है।
🔵 कहते हैं कि भाग्य की रचना ब्रह्मा जी करते हैं। सुना जाता है कि कर्म-रेखाएँ जन्म से पहले ही लिख दी जाती हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि तकदीर के आगे तदवीर की नहीं चलती। ये किंवदंतियाँ एक सीमा तक ही सच हो सकती हैं। जन्म से अंधा, अपंग उत्पन्न हुआ या अशक्त, अविकसित व्यक्ति ऐसी विपत्ति सामने आ खड़ी होती है, जिससे बच सकना या रोका जा सकना अपने वश में नहीं होता। अग्निकाण्ड, भूकम्प, युद्ध, महामारी, अकाल-मृत्यु दुर्भिक्ष, रेल, मोटर आदि का पलट जाना, चोरी, डकैती आदि के कई अवसर ऐसे आ जाते हैं और ऐसी विपत्ति सामने आ खड़ी होती है, जिससे बच सकना या रोका जा सकना अपने वश में नहीं होता।
🔴 ऐसी कुछ घटनाओं के बारे में भाग्य या होतव्यता की बात मानकर संतोष किया जाता है। पीड़ित मनुष्य के आंतरिक विक्षोभ को शांत करने के लिए भाग्यवाद की तड़पन दूर करने के लिए डॉक्टर लोग नींद की गोली खिला देते हैं , मर्फिया का इंजेक्शन लगा देते हैं, कोकीन आदि की फुरहरी लगाकर पीड़ित स्थान को सुन्न कर देते हैं। ये विशेष परिस्थितियों के विशेष उपचार हैं। यदा-कदा ही ऐसी बात होती है, इसलिए इन्हें अपवाद ही कहा जाएगा।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.97