रविवार, 27 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 27 Aug 2023

आज दहेज का असुर भाषण-लेखों और प्रस्तावों की मार खाकर भी दहेज का असुर मरता नहीं। रक्तबीज की तरह वह चोट खाकर और भी अधिक विकराल बनता चला जा रहा है। इसका अंत ऐसे होगा कि युग निर्माण योजना के सदस्य बच्चे यह प्रतिज्ञा करेंगे कि वे विचारशील साथी से ही विवह करेंगे। दहेज और विवाहोन्माद में होने वाले भारी अपव्यय को हटाकर बिना खर्च की विधि से विवाह करेंगे। यदि अभिभावक इस निश्चय को मान्यता न देंगे तो वे आजीवन कुमार या कुमारी ही रहकर पवित्र जीवन व्यतीत करेंगे।

हम गायत्री उपासक भगवान् की सर्वश्रेष्ठ सजीव प्रतिमा नारी के रूप में ही मानते हैं। नारी में भगवान् की अनन्त करुणा, पवित्रता और सदाशयता का दर्शन करना हमारी भक्ति-भावना का दार्शनिक आधार है। उपासना में ही नहीं, व्यावहारिक जीवन में भी हमारा दृष्टिकाण यही रहना चाहिए। नारी मात्र को हम पवित्र दृष्टि से देखें, वासना की दृष्टि से न उसे सोचें, न उसे देखें और न उसे छुएँ।

नारी को वासना के उद्देश्य से सोचना या देखना उसकी महानता का वैसा ही तिरस्कार करना है जैसे किसी देव मंदिर की प्रतिमा को चुराकर पत्थर को अपनी किसी आवश्यकता को पूर्ण करने के उद्देश्य से देखना। यह दृष्टि जितनी निन्दनीय और घृणित है उतनी ही हानिकारक और विग्रह उत्पन्न करने वाली भी। हमें उस स्थिति को अपने भीतर से और सारे समाज से हटाना होगा और नारी को उस स्वरूप में पुनः प्रतिष्ठित करना होगा। जिस की एक दृष्टि मात्र से मानव प्राणी धन्य होता रहा है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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