प्रेम का अमृत छिड़क कर शुष्क जीवन को सजीव बनाइये
आत्मभाव का प्रयास करिए इससे आसपास रूखी, उपेक्षणीय, अप्रिय वस्तुओं का रूप बिल्कुल बदल जाएगा। विज्ञ लोग कहते हैं कि अमृत छिडकने से मुर्दे उठते हैं। हम कहते हैं कि प्रेम की दृष्टि से अपने चारों ओर निहारिए मुर्दे सी अस्पृश्य और अप्रिय वस्तुए सजीव और सजीव सर्वांग सुंदर बनकर आपके सामने आनंद नृत्य करने लगेंगी। ऐसा कहा गया है कि पारस को छूकर काला-कलूटा लोहा बहुमूल्य सोना हो जाता है। हम कहते हैं कि सच्चे प्रेम का अरूचिकर और उपेक्षणीय से स्पर्श कराइए वे कुंदन के समान जगमगाने लगेगी। 'दुनियाँ आपको काटने दौडती है, दुर्व्यवहार करती है, सताती है, पाप अंक में धकेलती हैं, इसका कारण एक ही है कि आपके मन मानस में प्रेम का सरोवर सूख गया है, उसमें एकांत शून्यता की सांय-सांय बीत रही है, उसका डरावना अंदर से निकल कर बाहर आ खड़ा होता है और दुनियाँ बुरी दीखने लगती है। जब कोई व्यक्ति दुनियाँ ' से बिलकुल घबराया हुआ, डरा हुआ, निराश, चिढ़ा हुआ सामने आता है और संन्यासी हो जाने का विचार प्रकट करता है तब हम उसके सिर पर हाथ फेरते हुए समझाया करते हैं कि दोस्त इस दुनियाँ में कुछ भी बुरा नहीं है, आओ अपने पीलिया का इलाज करें और संसार का उसके असली आनंददायी रूप में दर्शन करके शांति लाभ करें।
कुटिलता, अनुदारता, कंजूसी और संकीर्णता को छोड़ दीजिए। इसके स्थान पर सरलता और उदारता को विराजमान कीजिए। मुद्दतों से सूखे पडे हृदय सरोवर को प्रेम के अमृत जल से भर लीजिये। इस सरोवर ' लोगों को पानी पीकर प्यास बुझाने दीजिए,स्नान,करने, शांति लाभ करने दीजिए क्रीडा करके आनंदित होने दीजिए। अपना प्रेम उदारतापूर्वक सबके लिए खुला रखिए। आत्मीयता की शीतल छाया मे थके हुए पथिकों को विश्राम करने दीजिए। प्रेम इस भूलोक का अमृत है, आत्मभाव इसका पारस है। इस सुर दुर्लभ मानव जीवन को सफल बनाना है तो इन दोनों महातत्त्वों को उपार्जित करने से वंचित मत रहिए।
अपने प्रेम रूपी अमृत को चारों ओर छिडक दीजिए जिससे यह श्मशान सा भयंकर दिखाई पड़ने वाला जींवन देवी-देवताओं की क्रीडा भूमि बन जाए। अपने आत्मभाव रूपी पारस को कुरूप लोहा-लंगड से स्पर्श होने दीजिए जिससे स्वर्णमयी इंद्रपुरी बन कर खडी हो जाए। यह स्वर्ग सच्चे विश्ववासियों और दृढ़ निश्चय वालों के लिए बिलकुल सरल और सुसाध्य है। यह : आपके हाथ में है कि इच्छा और प्रयत्न द्वारा जीवन में स्वर्ग का प्रत्यक्ष आनंद उपलब्ध करें।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आंतरिक उल्लास का विकास पृष्ठ १२