मनुष्य संसार में सबसे अधिक गुण, समृद्धियाँ, शक्तियाँ लेकर अवतरित हुआ है। शारीरिक दृष्टि से हीन होने पर भी परमेश्वर ने उसके मस्तिष्क में ऐसी-2 गुप्त आश्चर्यजनक शक्तियाँ प्रदान की हैं, जिनके बल से वह हिंस्र पशुओं पर भी राज्य करता है, दुष्कर कृत्यों से भयभीत नहीं होता आपदा और कठिनाई में भी वेग से आगे बढ़ता है। मनुष्य का पुरुषार्थ उसके प्रत्येक अंग में कूट कूट कर भरा गया है। मनुष्य की सामर्थ्य ऐसी है कि वह अकेला समय के प्रवाह और गति को मोड़ सकता है। धन, दौलत, मान, ऐश्वर्य, सब पुरुषार्थ द्वारा प्राप्त हो सकते हैं।
अपने गुप्त मन से पुरुषार्थ का गुप्त सामर्थ्य निकालिए। वह आपके मस्तिष्क में है। जब तक आप विचारपूर्वक इस अन्तःस्थित वृत्ति को बाहर नहीं निकालते तब तक आप भेड़ बकरी बने रहेंगे। जब आप इस शक्ति को अपने कर्मों से बाहर निकालेंगे, तब प्रभावशाली बन सकेंगे। संसार के चमत्कार कहाँ से प्रकट हुए? संसार के बाहर से नहीं आये, और ब्रह्म शक्ति आकर उन्हें प्रस्तुत नहीं कर गई है। उनका जन्म मनुष्य के भीतर से हुआ था। संसार की सभी शक्तियाँ, सभी गुण, सभी तत्व, सभी चमत्कार मनुष्य के मस्तिष्क में से निकले हैं। उद्गम स्थान हमारा अन्तःकरण ही है।
संसार में छोटे-मोटे लोगों के तुम क्यों गुलाम बनते हो ? क्यों मिमियाते, झींकते या बड़बड़ाते हो, दुःख, चिन्ता और क्लेशों से क्यों विचलित हो उठते हो। नहीं, मनुष्य के लिए इन सबसे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। वह तो अचल, दृढ़, शक्तिशाली और महाप्रतापी है। इसी क्षण से अपना दृष्टिकोण बदल दीजिये। अपने आप को महाप्रतापी, पुरुषार्थी पुरुष मानना शुरू कर दीजिए। तत्पर हो जाइये। सावधानी से अपनी कमजोरी और कायरता छोड़ दीजिये। बल और शक्ति के विचारों से आपका सुषुप्त अंश जाग्रत हो उठेगा।
सामर्थ्य और शक्ति आपके अन्दर है। बल का केन्द्र आपका मस्तिष्क है, वह नित्य, स्थायी और निर्विकार है फिर किस वस्तु के अभाव को महसूस करते हो? किस शक्ति को बाहर ढूंढ़ते फिरते हो? किस का सहारा ताकते हो ? अपनी ही शक्ति से आपको उठना और उन्नति करनी है। उसी से प्रभावशाली व्यक्तित्व बनाना है। आपको किसी भी बाहरी वस्तु की आवश्यकता नहीं है। आपके पास पुरुषार्थ का गुप्त खजाना है उसे खोलकर काम में लाइये।
मनुष्य को संसार में महत्ता प्रदान करने वाला पुरुषार्थ ही है। उसी की मात्रा से एक साधारण तथा महान व्यक्ति में अन्तर है। पुरुषार्थ की बुद्धि पर ही मनुष्य की उन्नति निर्भर है। सामर्थ्य सम्पन्न मनुष्य ही सुख, सम्पत्ति, यश, कीर्ति एवं शान्ति प्राप्त कर सकता है।
पुरुषार्थ का निर्माण कई मानसिक तत्वों के सम्मिश्रण से होता है। (1) साहस- इन सबमें मुख्य है। दैनिक जीवन, नये कार्यों, तथा कठिनाई के समय हमें कोई भी वाह्य शक्ति आश्रय प्रदान नहीं कर सकती। साहसी वह कार्य कर दिखाता है जिसे बलवान भी नहीं कर पाते। साहस का सम्बन्ध मनुष्य के अन्तः स्थित निर्भयता की भावना से है। उसी से साहस की वृद्धि होती है। (2) दृढ़ता- दूसरा तत्व है जो पुरुषार्थ प्रदान करता है। दृढ़ व्यक्ति अपने कार्यों में खरा और पूरा होता है। वह एकाग्र होकर अपने कर्तव्य पर डटा रहता है। (3) महानता की महत्वाकाँक्षा- पुरुषार्थी को नवीन उत्तरदायित्व-जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने का निमंत्रण देती है और मुसीबत में धैर्य एवं आश्वासन प्रदान करती है।
स्वेटमार्डन साहब के अनुसार बड़प्पन की भावना रखने से हमारी आत्मा की सर्वोत्कृष्ट शक्तियों का विकास होता है, वे जागृत हो जाती हैं। इस गुण के बल पर पुरुषार्थी जिस दिशा में बढ़ता है, उसी में ख्याति प्राप्त करता चलता है वह अपने महत्व को समझता है, और अपने सभी शक्तियों के द्वारा सदा आत्म महत्व के बढ़ाता रहता है।
अखण्ड ज्योति सितम्बर 1948
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