🔶 “ऐ कनाअत तदन्गरम गरदाँ। क वराये तो हेच नेमत नेस्त॥”
“ऐ सन्तोष! मुझे दौलतमंद बना दें, क्योंकि संसार की कोई दौलत तुझसे बढ़कर नहीं है।”
🔷 एक अफ्रीकी सानिया कपड़ा बेचने वालों के कूचे में इस तरह कह रहा था, “ऐ धनी लोगों ! अगर तुम लोगों में न्याय होता और हम लोगों में संतोष होता, तो संसार से भीख माँगने की प्रथा ही उठ जाती।” हे संतोष ! मुझे धनी बना दे क्योंकि तेरे बिना कोई धनी नहीं है। लुकमान ने एकाँतवास में संतोष धारण किया था। जिसके दिल में संतोष नहीं है, उसमें तत्वज्ञान की हिकमत नहीं है।
🔶 तात्पर्य यह है कि जगत में ‘संतोष’ ही सबसे बड़ा धन है। जिसमें संतोष नहीं है, वह भारी से भारी धनी होने पर भी निर्धन है। जिसके हृदय में असंतोष नहीं है वही सदा सुखी है। लाख, करोड़ और अरब-खरब की सम्पदा होने पर भी जो संतोषहीन है वह परम दुखी है। सन्तोषी मनुष्य ही सब सुख भोग सकता है।
📖 अखण्ड ज्योति जून 1961
“ऐ सन्तोष! मुझे दौलतमंद बना दें, क्योंकि संसार की कोई दौलत तुझसे बढ़कर नहीं है।”
🔷 एक अफ्रीकी सानिया कपड़ा बेचने वालों के कूचे में इस तरह कह रहा था, “ऐ धनी लोगों ! अगर तुम लोगों में न्याय होता और हम लोगों में संतोष होता, तो संसार से भीख माँगने की प्रथा ही उठ जाती।” हे संतोष ! मुझे धनी बना दे क्योंकि तेरे बिना कोई धनी नहीं है। लुकमान ने एकाँतवास में संतोष धारण किया था। जिसके दिल में संतोष नहीं है, उसमें तत्वज्ञान की हिकमत नहीं है।
🔶 तात्पर्य यह है कि जगत में ‘संतोष’ ही सबसे बड़ा धन है। जिसमें संतोष नहीं है, वह भारी से भारी धनी होने पर भी निर्धन है। जिसके हृदय में असंतोष नहीं है वही सदा सुखी है। लाख, करोड़ और अरब-खरब की सम्पदा होने पर भी जो संतोषहीन है वह परम दुखी है। सन्तोषी मनुष्य ही सब सुख भोग सकता है।
📖 अखण्ड ज्योति जून 1961