🔸 वातावरण परिवर्तन का स्थूल स्वरूप आंदोलनपरक होता है। सूक्ष्म वातावरण विचार संघात एवं सद्भावनात्मक प्रयोगों से प्रवावित होता है। विशिष्ट आध्यात्मिक उपचारों की प्रचंड उर्जा उत्पन्न करके भी वातावरण बदला जा सकता है। प्रखर प्रतिभाएं अपनी प्राण शक्ति से युग को बदल सकती हैं। अवतारी महामानव समय के प्रवाह को पलटते हैं। ठीक इसी प्रकार तप साधना की चेतनात्मक प्रचंड उर्जा सूक्ष्म जगत को परिष्कृत करके उसे इस योग्य बना सकती है कि उज्जवल भविष्य की संभावनाएं दैवी अनुग्रह की तरह उभरती, उमड़ती चली आएँ। व्यक्ति विशेष की तपश्चर्या और सामूहिक अध्यात्म साधना के यदि प्रबल प्रयास हो सकें तो वातावरण बदलने चमत्कार उत्पन्न हो सकते हैं।
🔹 मनुष्य समाज में वांछित परिस्थितिओं का निर्माण दो आधारों पर ही संभव है- एक है, मानवीय अंत:करण तथा दूसरा है, सूक्ष्म वातावरण। स्थूल साधन ,सुविधाएं एवं परिस्थितिओं में भी परिवर्तन लाना तो होगा, किन्तु वह वस्तुत: उपर्युक्त दोनों तथ्यों पर आधारित है। मूल आधारों में परिवर्तन या तो संभव ही नहीं, यदि हो भी जाए तो टिकाऊ नहीं रह सकता। मनुष्य के अन्त:करण के अनुसार ही उसकी गतिविधियां बनती हैं तथा उसी के अनुसार परिणाम उत्पन्न होने लगते हैं।
🔸 युग परिवर्तन के लिए व्यक्ति और समाज में उत्कृष्टता के तत्वों का अधिकाधिक समावेश करने के लिए प्रबल प्रयत्नों का किया जाना आवश्यक है। व्यक्ति को चरित्रनिष्ठ ही नहीं, समाजनिष्ठ भी हॊना चाहिए। मात्र अपने आप को अच्छा रखना ही पर्याप्त नहीं। अपनापन विस्तृत होना चाहिए और अपने शरीर अवयवों, परिवार सदस्यों की तरह ही समूचे समाज की श्रेष्ठता को सुरक्षित रखने और बढ़ाने के लिए भी प्रयत्न चलाने चाहिए।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य