गुरुवार, 17 जनवरी 2019

👉 कामयाबी की बाधा

एक बार स्वामी विवेकानन्द के आश्रम में एक व्यक्ति आया जो देखने में बहुत दुखी लग रहा था।

वह व्यक्ति आते ही स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला...
“महाराज! मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ मैं अपने दैनिक जीवन में बहुत मेहनत करता हूँ, काफी लगन से भी काम करता हूँ लेकिन कभी भी सफल नहीं हो पाया। भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है कि मैं पढ़ा लिखा और मेहनती होते हुए भी कभी कामयाब नहीं हो पाया हूँ।“

स्वामी जी उस व्यक्ति की परेशानी को पल भर में ही समझ गए। उन दिनों स्वामी जी के पास एक छोटा सा पालतू कुत्ता था, उन्होंने उस व्यक्ति से कहा...
“तुम कुछ दूर जरा मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा।“

उस व्यक्ति ने बड़े आश्चर्य से स्वामी जी की ओर देखा और फिर कुत्ते को लेकर कुछ दूर निकल पड़ा। काफी देर तक अच्छी खासी सैर करा कर जब वो व्यक्ति वापस स्वामी जी के पास पहुँचा तो स्वामी जी ने देखा कि उस व्यक्ति का चेहरा अभी भी चमक रहा था, जबकि कुत्ता हाँफ रहा था और बहुत थका हुआ लग रहा था।

स्वामी जी ने उससे पूछा....
“कि ये कुत्ता इतना ज्यादा कैसे थक गया? जबकि तुम तो अभी भी साफ सुथरे और बिना थके दिख रहे हो।“

व्यक्ति ने कहा....
“मैं तो सीधा अपने रास्ते पे चल रहा था, लेकिन ये कुत्ता गली के सारे कुत्तों के पीछे भाग रहा था और लड़कर फिर वापस मेरे पास आ जाता था। हम दोनों ने एक समान रास्ता तय किया है लेकिन फिर भी इस कुत्ते ने मेरे से कहीं ज्यादा दौड़ लगाई है इसीलिए ये थक गया है।“

स्वामी जी ने मुस्कुरा कर कहा....
“यही तुम्हारे सभी प्रश्नों का जवाब है, तुम्हारी मंजिल तुम्हारे आस पास ही है वो ज्यादा दूर नहीं है लेकिन तुम मंजिल पे जाने की बजाय दूसरे लोगों के पीछे भागते रहते हो और अपनी मंजिल से दूर होते चले जाते हो।“
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"मित्रों! यही बात हमारे दैनिक जीवन पर भी लागू होती है हम लोग हमेशा दूसरों का पीछा करते रहते है कि वो डॉक्टर है तो मुझे भी डॉक्टर बनना है, वो इंजीनियर है तो मुझे भी इंजीनियर बनना है, वो ज्यादा पैसे कमा रहा है तो मुझे भी कमाना है। बस इसी सोच की वजह से हम अपने टेलेंट को कहीं खो बैठते हैं और जीवन एक संघर्ष मात्र बनकर रह जाता है, तो दूसरों की होड़ मत कीजिए और अपनी मंजिल खुद तय कीजिए।

अगर आप होड़ या प्रतिद्वंदिता करना ही चाहिते हैं तो स्वयं के सम्मुख स्वयं को ही रखिए, अपना मापदंड स्वयं बनिये, आप इस तरह देखिये कि....
'आप स्वयं पिछले महीने/वर्ष जो थे उससे कुछ बेहतर हुए या नहीं' यही आपका उचित मापदंड होना चाहिये।
अर्थात स्वयं से ही स्वयं को नापिए।

इसके अतिरिक्त जितना ध्यान आप दूसरों को देखने और उनकी कमियों पर कुढ़ने या खुश होने पर लगाते हैं, उतना ध्यान अगर स्वयं की कमियों को ढ़ूढकर उन्हें दूर करने एवं स्वयं की खूबियों को ढ़ूढकर उन्हें निखारने में लगाएं तो आपको कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता।

इस प्रकार देखा जाए तो आपकी कामयाबी या नाकामयाबी का मूल कारण कहीं न कहीं आप स्वयं ही हैं।

दोस्तों! आत्मनिरिक्षण एवं आत्मोन्नति आपका स्वयं का दायित्व है न की किसी और का।।"
🙏आपका दिन शुभ हो🙏

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👉 प्रेरणादायक प्रसंग 17 Jan 2019

👉 मुस्कुराहट का महत्व 😊

👍_अगर आप एक अध्यापक हैं और जब आप मुस्कुराते हुए कक्षा में प्रवेश करेंगे तो देखिये सारे बच्चों के चेहरों पर मुस्कान छा जाएगी।

👍_अगर आप डॉक्टर हैं और मुस्कराते हुए मरीज का इलाज करेंगे तो मरीज का आत्मविश्वास दोगुना हो जायेगा।

👍_अगर आप एक ग्रहणी है तो मुस्कुराते हुए घर का हर काम किजिये फिर देखना पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बन जायेगा।

👍_अगर आप घर के मुखिया है तो मुस्कुराते हुए शाम को घर में घुसेंगे तो देखना पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बन जायेगा।

👍_अगर आप एक बिजनेसमैन हैं और आप खुश होकर कंपनी में घुसते हैं तो देखिये सारे कर्मचारियों के मन का प्रेशर कम हो जायेगा और माहौल खुशनुमा हो जायेगा।

👍_अगर आप दुकानदार हैं और मुस्कुराकर अपने ग्राहक का सम्मान करेंगे तो ग्राहक खुश होकर आपकी दुकान से ही सामान लेगा।

👍_कभी सड़क पर चलते हुए अनजान आदमी को देखकर मुस्कुराएं, देखिये उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ जाएगी।

मुस्कुराइए
😊क्यूंकि मुस्कराहट के पैसे नहीं लगते ये तो ख़ुशी और संपन्नता की पहचान है।

मुस्कुराइए
😊क्यूंकि आपकी मुस्कराहट कई चेहरों पर मुस्कान लाएगी।

मुस्कुराइए
😊क्यूंकि ये जीवन आपको दोबारा नहीं मिलेगा।

मुस्कुराइए
😊क्योंकि क्रोध में दिया गया आशीर्वाद भी बुरा लगता है और मुस्कुराकर कहे गए बुरे शब्द भी अच्छे लगते हैं।

मुस्कुराइए
😊क्योंकि दुनिया का हर आदमी खिले फूलों और खिले चेहरों को पसंद करता है।

मुस्कुराइए
😊क्योंकि आपकी हँसी किसी की ख़ुशी का कारण बन सकती है।

मुस्कुराइए
😊 क्योंकि परिवार में रिश्ते तभी तक कायम रह पाते हैं जब तक हम एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते रहते है
और सबसे बड़ी बात

मुस्कुराइए
😊 क्योंकि यह मनुष्य होने की पहचान है। एक पशु कभी भी मुस्कुरा नही सकता।
इसलिए स्वयं भी मुस्कुराए और औराें के चहरे पर भी मुस्कुराहट लाएं.

यही जीवन है।
आनंद ही जीवन है।।

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👉 आज का सद्चिंतन 17 Jan 2019


👉 Let Desires Be Judicious and Focused

There is no reason why an illusion prevails in common mass that path of truth and honesty leads to loss and damage only! Probably due to the dishonest people amassing huge wealth in short time by all means of fraud and dishonesty. Seeing fast growing wealth, others also desire to acquire the same status by any means – right or wrong. They are impressed by the influential arrogance and lavish life styles of the rich. But they forget that wealth acquired through fraud and corruption is fragile like a wall of sand, collapsible by the slightest breeze of air.  And such pompous glory is only imaginary, people surely praise the rich on face, just to achieve their own selfish gains, but from inside, they do not have any real respect for such rich.

On the contrary, a person working hard with honesty and leading a simple life of high morals and principles may be progressing slowly, but that progress is firm-rooted and sound and his fame is global and immortal, extending beyond the boundaries of space and time.

Pt. Shriram Sharma Aacharya
Badein Aadmi Nahi, Mahamanav Baniyein (Not a Big-Shot, Be Super-Human), Page 3"

👉 आत्मचिंतन के क्षण 17 Jan 2019

◾  गुणों का चिंतन न करें, केवल अवगुणों पर ही दृष्टिपात करें तो अपना प्रत्येक प्रियजन भी अनेकों बुराइयों, दोषों में ही ग्रस्त दिखाई देगा। अतः स्नेह, आत्मीयता, सौजन्यता तथा प्रेमपूर्ण व्यवहार में कमी आयेगी, जिससे जीवन के सुखों का अभाव हो जायेगा। अपने बच्चों के छोटे-मोटे दोष भूल जाने की पिता की दृष्टि ही सच्ची होती है। माँ यदि बेटों की गलतियाँ ढूँढा करे तो उसे दण्ड देने से ही फुरसत न मिले। अवगुणों को उपेक्षा की दृष्टि से ही देखना उचित है।

◾  खोयी हुई दौलत फिर कमाई जा सकती है। भूली हुई विद्या फिर याद की जा सकती है। खोया हुआ स्वास्थ्य चिकित्सा द्वारा लौटाया जा सकता है, पर खोया हुआ समय किसी प्रकार लौट नहीं सकता। उसके लिए केवल पश्चाताप ही शेष रह जाता है।

◾  यह कहना उचित नहीं कि इस कलियुग में सज्जन घाटे और दुर्जन लाभ में रहते हैं। सनातन नियमों में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। सत्य और तथ्य देश-काल, पात्र का अंतर किये बिना सदा सुस्थिर और अक्षुण्ण ही रहते हैं। सन्मार्ग पर चलने वाले की सद्गति और कुमार्ग पर चलने वाले की दुर्गति होने की सचाई में कभी भी किसी प्रकार का अंतर नहीं आ सकता। कलियुग-सतयुग की कोई बाधा इस सत्य को झुठला नहीं सकती।

◾  अपनी बातों को ठीक मानने का अर्थ तो यही होता है कि दूसरे सब झूठे हैं- गलत हैं। इस प्रकार का अहंकार अज्ञान का द्योतक है। इस असहिष्णुता से घृणा और विरोध बढ़ता है। सत्य की प्राप्ति नहीं होती। सत्य की प्राप्ति तभी संभव है, जब हम अपनी भूलों, त्रुटियों और कमियों को निष्पक्ष भाव से देखें। हमें अपने विश्वासों का निरीक्षण और परीक्षण भी करना चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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