रविवार, 25 दिसंबर 2022

👉 आत्मदेव को साधें

परोक्ष देवता अगणित हैं और उनकी साधना उपासना के हमात्म्य तथा विधा भी बहुतेरे; किन्तु इतने पर भी यह निश्चित नहीं कि वे अभीष्ट अनुग्रह करेंगे ही- इच्छित वरदान देंगे ही। यह भी हो सकता है कि निराशा हाथ लगे। मान्यता को अघात पहुँचे और परिश्रम निरर्थक चला जाय।   

इस बुद्धिवादी युग में देव मान्यता के सम्बन्ध में सन्देह भी प्रकट किया जाता है। यहाँ तक कि अविश्वास एवं उपहास भरी चर्चायें भी होती हैं। ऐसी दशा में हमें सार्वजनीन  ऐसे देवता का आश्रय लेना चाहिए,जो साम्प्रदायिक अन्धविश्वासों से ऊपर उठा एवं सर्वमान्य हो। साथ ही जिसके अनुग्रह और वरदान के सम्बन्ध में भी अँगुली न उठे। 

ऐसे देवता एक और हैं और वह हैं- आत्मदेव। अपना सुसंस्कृत आपा एवं परिष्कृत व्यक्तित्व। इसका आश्रय रहने पर कोई न अभावग्रस्त रह सकता है और न निराशतिरस्कृत

अन्य सभी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कष्टसाध्य साधनायें करनी पड़ती हैं। आत्मदेव की सत्ता सबके भीतर समान रूप से रहते हूए भी उसे उत्कृष्ट बनाने के लिए निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता होती है। अपने चिन्तन, चरित्र और व्यवहार को ऊँचे स्तर का बनाने के लिए आत्म विकास का आश्रय लेना पड़ता है। यही है सुनिश्चित फलदायिनी आत्मदेव की साधना।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 भावनाएँ भक्तिमार्ग में नियोजित की जायें

भावनाओं की शक्ति भाप की तरह हैं यदि उसका सदुपयोग कर लिया जाय तो विशालकाय इंजन चल सकते हैं पर यदि उसे ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाय तो वह बर्बाद ही होगी किसी के काम न आ सकेगी। भावनाओं में भक्ति का स्थान बहुत ऊँचा है। उसका सहारा लेकर मनुष्य नर से नारायण बन सकता है। किन्तु यदि उसे एक कल्पना-आवेश मात्र मन बहलाव रहने दिया जाय तो उससे किसी का कुछ प्रयोजन सिद्ध न होगा। रविशंकर महाराज ने आज के भक्तों की तीन रोगों से ग्रसित गिनाया है (गाना) (2) रोना (3) दिखावा।

भजन कीर्तन के नाम पर दिन-रात झाँझ बजती और हल्ला होता है। गाना वही सार्थक है जो विवेक पूर्वक गाया जाय जिसमें प्रेरणा हो और उसे हृदयंगम करने का लक्ष्य सामने रखा गया हो। जहाँ केवल कोलाहल कही उद्देश्य हो वहाँ, भक्ति का प्रकाश कैसे उत्पन्न होगा।

रोना-अर्थात् संसार को शोक-संताप से भरा भव सागर मानना। इस दुनिया से छुटकारा पाकर-किसी अन्य लोक में जा बसने की कल्पना, अपने आपसे भागने के बराबर है। भगवान के सुरम्य उद्यान का सौंदर्य निहार कर आनंद विभोर होने की भक्ति-भावना यदि विश्व के कण-कण में संव्याप्त भगवान को देखने की अपेक्षा सर्वत्र दुःख और पाप ही देखें तो इसे बुद्धि विपर्यय ही कहा जायेगा। भक्ति भाव नहीं। पलायन नहीं-भक्ति का तात्पर्य दुखों का निराकरण एवं दुखियों की सहायता करना है। जहाँ। केवल घृणा का विषाद छाया रहे वहाँ भक्ति की आत्मा जीवित कैसे रहेगी। अपने को आर्त और दुखी के रूप में प्रस्तुत करने वाला इस कुरूप चित्रण से अपने सृष्टा को ही अपमानित करता है।

धर्म का आडम्बर अब इतना अधिक बढ़ता चला जा रहा है कि कई बार तो यह भ्रम होने लगता है कि हम धर्मयुग में रह रहे हैं। कथा, कीर्तन, प्रवचन, सत्संग, पारायण, लीला, सम्मेलन आदि के माध्यम से जगह-जगह विशालकाय आयोजन होते हैं और उनमें एकत्रित विशाल भीड़ को देखने से प्रतीत होता है कि धर्म रुचि आकाश छूने जा रही है, पर जब गहराई में उतर कर देखते हैं तो लगता है कि यह धर्म दिखावा बहुत से लोग अपनी आंतरिक अधार्मिकता को झुठला कर आत्म प्रवंचना करने के लिए अथवा लोगों की दृष्टि में धार्मिक बनने के लिए रच कर खड़ा करते हैं। यह आवरण इसलिए खड़े किये जाते हैं ताकि उनकी यथार्थता पर पर्दा पड़ा रहे और लोग उन्हें उस ऊँचे स्तर का समझते रहे जिस पर कि वे वस्तुतः नहीं हैं।
                  
कुछ लोग वस्तुतः इन आयोजनों को सद्भावना के साथ सदृश्य के लिए भी करते हैं पर वे यह भूल जाते हैं कि धर्म आवरण का आरंभिक प्रयाग भक्ति-भावना लाभ तो मिलेगा जब आस्थाओं और क्रिया-कलापों में उच्च स्तरीय परिवर्तन संभव हो। इस कार्य के लिए उपयुक्त पथ प्रदर्शक वे हो सकते हैं जिनने अपने को मन, वचन, कर्म से सच्चा भक्त बनने में सफलता प्राप्त की हो और इस श्रेय पथ में प्रगति का प्रकाश वे ही पा सकते हैं जिन्होंने आवरण से आगे बढ़कर अपने आपको सुधारने सँभालने के लिए उत्कट प्रयास किया हो।
    
भावनाओं की शक्ति की भक्ति मार्ग में यदि नियोजन किया जा सके तो मनुष्य इतनी प्रगति कर सकता है जिससे उसकी अपूर्णता, चरम पूर्णता में परिणत हो सके।

📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1973 पृष्ठ 2
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1973/January/v1.2

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 विपत्ति में अधीर मत हूजिए।

जिस बात को हम नहीं चाहते हैं और देवगति से वह हो जाती है, उसके होने पर भी जो दुखी नहीं होते किन्तु उसे देवेच्छा समझ कर सह लेते हैं, वही धैर्यवान पुरुष कहलाते हैं। दुःख और सुख में चित्त की वृत्ति को समान रखना धैर्य कहलाता है। जिसने शरीर धारण किया है उसे सुख-दुःख दोनों का ही अनुभव करना होगा। शरीर धारियों को केवल सुख ही सुख या केवल दुःख ही दुःख कभी भी प्राप्त नहीं हो सकता। जब यही बात है, शरीर धारण करने पर सुख-दुःख दोनों का ही भीग करना है, तो फिर दुःख में अधिक उद्विग्न क्यों हो जायँ ? दुख-सुख तो शरीर के साथ लगे ही रहते हैं। 

हम धैर्य धारण करके उनकी प्रगति को ही क्यों न देखते रहें जिन्होंने इस रहस्य को समझ कर धैर्य का आश्रय ग्रहण किया है, संसार में वे ही सुखी समझे जाते हैं। धैर्य की परीक्षा सुख की अपेक्षा दुःख में ही अधिक होती है। दुःखों की भयंकरता को देखकर विचलित होना प्राणियों का स्वभाव है। किन्तु जो ऐसे समय में भी विचलित नहीं होता वही ‘पुरुषसिंह’ धैर्यवान् कहलाता है। आखिर हम अधीर होते क्यों है? इसका कारण हमारे हृदय की कमजोरी के सिवा और कुछ भी नहीं है। इस बात को सब कोई जानते हैं कि आज तक संसार में ब्रह्मा से लेकर कृमिकीट पर्यन्त सम्पूर्ण रूप से सुखी कोई भी नहीं हुआ। सभी को कुछ न कुछ दुःख अवश्य हुए हैं। फिर भी मनुष्य दुःखों के आगमन से व्याकुल होता है, तो यह उसकी कमजोरी ही कही जा सकती है। 

महापुरुषों के सिर पर सींग नहीं होते, वे भी हमारी तरह दो हाथ और दो पैर वाले साढ़े तीन हाथ के मनुष्यकार जीव होते हैं। किन्तु उनमें यही विशेषता होती है कि दुःखों के आने पर वे हमारी तरह अधीर नहीं हो जाते। उन्हें प्रारब्ध कर्मों का भोग समझ कर वे प्रसन्नता पूर्वक सहन करते हैं। पाँडव दुःखों से कातर होकर अपने भाइयों के दास बन गये होते, मोरध्वज पुत्र शोक से दुःखी होकर मर गये होते, हरिश्चन्द्र राज्यलोभ से अपने वचनों से फिर गये होते, श्री रामचन्द्र वन के दुःखों की भयंकरता से घबरा कर अयोध्यापुरी में रहे गये होते, शिवि राजा ने यदि शरीर के कटने के दुःख से कातर होकर कबूतर को बाज के लिये दे दिया होता, तो इनको अब तक कौन जानता? ये भी असंख्य नरपतियों की भाँति काल के गाल में चले गये होते, किन्तु इनका नाम अभी तक ज्यों का त्यों ही जीवित है। इसका एक मात्र कारण उनका धैर्य ही है।

अपने प्रियजन के वियोग से हम अधीर हो जाते हैं। क्योंकि हमें छोड़कर चल दिया। इस विषय में अधीर होने से क्या काम चलेगा? वह हमारे अधीर होने का कोई समुचित कारण भी तो नहीं। क्योंकि जिसने जन्म धारण किया है, उसे मरना तो एक दिन है ही। जो जन्मा वह मरेगा भी। सम्पूर्ण सृष्टि के पितामह ब्रह्मा है चराचर सृष्टि उन्हीं से उत्पन्न हुई है। अपनी आयु समाप्त होने पर वे भी नहीं रहते। क्योंकि वे भी भगवान विष्णु के नाभिकमल से उत्पन्न हुए हैं। अतः महाप्रलय में वे भी विष्णु के शरीर में अन्तर्हित हो जाते हैं। जब यह अटल सिद्धान्त हैं कि जायमान वस्तु का नाश होगा ही, तो फिर तुम उस अपने प्रियजन का शोक क्यों करते हो? उसे तो मरना ही था, आज नहीं तो कल और कल नहीं तो परसों। सदा कोई जीवित रहा भी है जो वह रहता? जहाँ से आया था, चला गया। एक दिन तुम्हें भी जाना है। जो दिन शेष है, उन्हें धैर्य के साथ गुणागार के गुणों के चिन्तन में बिताओ।

शरीर में व्याधि होते ही हम विकल हो जाते हैं। विकल होने से आज तक कोई रोग-विमुक्त हुआ है? यह शरीर व्याधियों का घर है। जाति, आयु, भोग को साथ लेकर ही तो यह शरीर उत्पन्न हुआ है। पूर्व जन्म के जो भोग हैं, वे तो भोगने पड़ेंगे।

दान पुण्य, जप, तप, और औषधि-उपचार करो अवश्य, किन्तु उनसे लाभ न होने पर अधीर मत हो जाओ। क्योंकि भोग की समाप्ति में ही, दान, पुण्य और औषधि कारक बन जाते है। बिना कारण के कार्य नहीं होता तुम्हें क्या पता कि तुम्हारी व्याधि के नाश में क्या कारण बनेगा? इसलिये प्राप्त पुरुषों ने शास्त्र में जो उपाय बताये हैं उन्हें ही करो। साथ ही धैर्य भी धारण किये रहो। धैर्य से तुम व्याधियों के चक्कर से सुखपूर्वक छूट सकोगे।

जीवन की आवश्यक वस्तुएं जब नहीं प्राप्त होती है तो हम अधीर हो जाते हैं। घर में कल को खाने के लिए मुट्ठी भर अन्न नहीं है। स्त्री की साड़ी बिलकुल चिथड़ा बन गई है। बच्चा भयंकर बीमारी में पड़ा हुआ है, उसकी दवा-दारु का कुछ भी प्रबन्ध नहीं। क्या करूं? कहाँ जाऊँ? इन्हीं विचारों में विकल हुए हम रात रात भर रोया करते हैं और हमारी आँखें सूज जाती है। ऐसा करने से न तो अन्न ही आ जाता है और न स्त्री की साड़ी ही नई हो जाती है। बच्चे की भी दशा नहीं बदलती। सोचना चाहिये हमारे ही ऊपर ऐसी विपत्तियाँ हैं सो नहीं। विपत्तियों का शिकार किसे नहीं बनना पड़ा? त्रिलोकेश इन्द्र ब्रह्म हत्या के भय से वर्षों घोर अन्धकार में पड़े रहे। चक्रवर्ती महाराज हरिश्चन्द्र डोम के घर जाकर नौकरी करते रहे। उनकी स्त्री अपने मृत बच्चे को जलाने के लिये कफ न तक नहीं प्राप्त कर सकी। जगत के आदि कारण, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी को चौदह वर्षों तक घोर जंगलों में रहना पड़ा। वे अपने पिता चक्रवर्ती महाराज दशरथ को पावभर आटे के पिंड भी न दे सके। जंगल के इंगुदी फलों के पिंडों से ही उन्होंने चक्रवर्ती राजा की तृप्ति की।

शरीरधारी कोई भी ऐसा नहीं है जिसने विपत्तियों के कड़वे फलों का स्वाद न चखा हो। सभी उन अवश्य प्राप्त होने वाले कर्मों के स्वाद से परिचित हैं। फिर हम अधीर क्यों हों हमारे अधीर होने से हमारे आश्रित भी दुःखी होंगे, इसलिये हम धैर्य धारण करके क्यों नहीं उन्हें समझावें? जो होना होगा। बस, विवेकी और अविवेकी में यही अन्तर है। जरा, मृत्यु और व्याधियाँ दोनों को ही होती हैं किन्तु विवेकी उन्हें अवश्यंभावी समझ कर धैर्य के साथ सहन करता है और अज्ञानी व्याकुल होकर विपत्ति से विफल होकर विपत्तियों को और बढ़ा लेता है- महात्मा कबीर ने इस विषय पर क्या ही रोचक पद्य रचना की है यथा-

ज्ञानी काटे ज्ञान से, अज्ञानी काटे रोय।
मौत, बुढ़ापा, आपदा, सब काहु को होय॥

जो धैर्य का आश्रय नहीं लेते, वे दीन हो जाते हैं, परमुखापेक्षी बन जाते हैं। इससे वे और भी दुःखी होते हैं। संसार में परमुखापेक्षी बनना दूसरे के सामने जाकर गिड़गिड़ाना, दूसरे से किसी प्रकार की आशा करना, इससे बढ़कर दूसरा कष्ट और कोई नहीं है। इसलिए विपत्ति आने पर धैर्य धारण किये रहिए और विपत्ति के कारणों को दूर करने एवं सुविधा प्राप्त करने के प्रयत्न में लग जाइए। जितनी शक्ति अधीर होकर दुखी होने में खर्च होती है उससे आधी शक्ति भी प्रयत्न में लगा दी जाय तो हमारी अधिकांश कठिनाइयों का निवारण हो सकता है।

📖 अखंड ज्योति मई 1950 पृष्ठ 9

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform > 👉 शांतिकुंज हरिद्वार के प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए Youtube Channel `S...